Hot milf preeti
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Randi preeti ki garam choot
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आप बेरहमी के साथ
मेरा नाम विक्रांत है। वैसे तो मैं लखनऊ का रहने वाला हूँ, पर अभी मैं मुंबई में एक सरकारी पद पर नौकरी करता हूँ। इससे पहले मैं कुछ दिनों के लिए बैंगलोर में भी रहा हूँ।
मेरी यह कहानी तब की है जब मैंने नया-नया बैंगलोर में ज्वाइन किया था, ज्वाइन करने के कुछ ही दिनों के बाद मेरी ट्रेनिंग शुरू कर दी गई, जो कि 3 महीनों की थी।
ट्रेनिंग समाप्त करने के बाद ज्यों ही मैं दुबारा ऑफिस में लौट कर आया त्यों ही मेरे बॉस ने मुझे उन नए आए हुए लड़कों और लड़कियों की देख-रेख की जिम्मेदारी दे दी।
चूँकि मेरे ऑफिस में कंप्यूटर में डाटा फीड करने का कुछ ज्यादा काम था, तो मेरे ऑफिस ने अनुबंध प्रक्रिया पर काम करने के लिए कुछ लड़कों और लड़कियों को लिया हुआ था।
मेरी यह कहानी उन्हीं में से एक लड़की की है जिसका नाम स्नेहा (नाम बदला हुआ है) था। उनकी देख-रेख करते समय मुझे कभी-कभी उनके कंप्यूटर पर जाकर फीड किए गए डाटा को भी चैक करना पड़ता था। ऐसा करते-करते मेरी उन सबसे बहुत अच्छी दोस्ती हो गई थी।
पहले तो मैंने उन सब में कोई ज्यादा रूचि नहीं ली क्योंकि मैं उस समय पर अपना ज्यादा ध्यान सिर्फ अपने काम में ही दे रहा था।
वो काम बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण था जिसको कि दो चरणों में पूरा करना था।
पहला चरण था उस डाटा को कंप्यूटर में फीड करना और फिर उन सभी फीड किए गए डाटा का सत्यापन करना। काम के प्रथम चरण को पूरा करते-करते हम सभी को लगभग दो महीने निकल गए।
जब काम का पहला चरण पूरा हो गया तो हम सभी लोगों को थोड़ी सी राहत की सांस मिली। पहला चरण पूरा होने के बाद मैं भी थोड़ा सा तनाव मुक्त हो गया था क्योंकि अब सिर्फ कंप्यूटर में फीड किए गए डाटा को ही चैक करना रह गया था।
मेरी सेक्स की असली कहानी की शुरुआत अब होती है।
अब जब डाटा चैक करने की बारी आई तो हर एक लड़के और लड़की के साथ एक कंप्यूटर पर ऑफिस के एक कर्मचारी को लगाया गया, जिससे कि
डाटा वेरिफिकेशन में किसी तरह की कोई गलती न रह जाए। इस वेरिफिकेशन करने में मुझे मेरी उस ड्रीम लड़की के साथ काम करने का मौका मिल गया।
शायद हम दोनों की किस्मत में भी यही लिखा था। अब जब मैंने उस लड़की के साथ डाटा वेरिफिकेशन करना शुरू किया तो मैंने पाया कि वो लड़की काम से ज्यादा मुझ में रूचि ले रही थी। हमेशा मेरे बारे में कुछ न कुछ पूछती रहती थी, लेकिन मैं अपने ऑफिस में नया होने की वजह से थोड़ा सा डर रहा था कि यदि किसी को इस बात का पता चल गया तो ऑफिस में मेरी बहुत बदनामी होगी।
इसीलिए मैं पूरी तरह से उस में रूचि नहीं ले पा रहा था। धीरे-धीरे 10-12 दिन ऐसे ही निकल गए।
फिर एक दिन की बात है कि मैं ऑफिस टाइम से थोड़ा पहले पहुँच गया और अपना कंप्यूटर चालू करके काम करना शुरू कर दिया। तभी मुझे पीछे से किसी ने ‘गुड-मॉर्निंग’ बोला। जब मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो स्नेहा मेरे पीछे खड़ी थी और मुझे कंप्यूटर रूम में अकेला देख कर मुस्करा रही थी।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो बोली- सर आज आप इतने पहले क्यूँ आ गए?
तो मैंने सोचा कि आज मौका अच्छा है और मैंने उससे मजाक करना शुरू कर दिया और बोला- रूम पर अकेले मन नहीं लग रहा था तो
सोचा क्यों न आज ऑफिस ही जल्दी चला जाए, इसलिए आज जल्दी ऑफिस आ गया।
फिर उससे यूँ ही बात करता रहा।
बात करते-करते उस ने मुझसे पूछा- सर क्या आपकी कोई गर्ल-फ्रेंड है?
तो मैंने बोला- हाँ!
तो उसने फिर पूछा- कहाँ है?
तो मैंने बोला- यहीं है और मेरे सामने खड़ी है!
यह सुन कर वो हँसने लगी।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो उसने कुछ नहीं बोला और काम करने में व्यस्त हो गई।
उसी दिन काम करते-करते उसने मुझसे बोला- सर मुझे अपना नंबर दे दीजिए क्योंकि मुझे आपसे कुछ काम है और मैं शाम को आपसे फ़ोन करके बात करुँगी।
मैं शाम को रूम पर पहुँच कर उसके फ़ोन का इंतजार करने लगा कि उसको ऐसा क्या काम है, जो फ़ोन पर बात करना चाहती है।
तभी उसका फ़ोन आया और मैंने फ़ोन उठा कर पूछा- ऐसा कौन सा काम है..!
तो उसने मुझसे पूछा- सर कल तो सन्डे है और ऑफिस भी बंद है..!
तो मैंने कहा- हाँ तो?
वो बोली- सर क्या आप मेरे साथ मूवी देखने चलना पसंद करेंगे?
तो मैंने तुरंत ‘हाँ’ कर दिया और अगले दिन गरुड़ा मॉल में मिलने का प्लान बनाया।
अगले दिन सुबह 10 बजे मूवी में हम दोनों ने कोने की सीट ली। मूवी एक इंग्लिश मूवी थी और मॉर्निंग का समय था इसीलिए बहुत कम ही लोग थे।
जैसे ही मूवी शुरू हुई उसने मेरा मुँह पकड़ कर मेरे होंठों पर एक चुम्बन कर लिया और बोली- सर, मैं आप से बहुत प्यार करती हूँ, आई लव यू..!
फिर मैंने भी कहा- मुझे भी तुम बहुत अच्छी लगती हो।
और वहीं पर हम एक-दूसरे के गले से लग गए। फिर मैंने धीरे से अपना एक हाथ उसके सीने पर रखा तो उसने मेरे हाथ को अपने सीने पर कसके दबा दिया।
फिर मैं धीरे-धीरे अपने हाथ को उसके पेट पर से होते हुए उसकी चूत के ऊपर ले गया और कपड़ों के ऊपर से ही चूत को रगड़ना शुरू कर दिया।
स्नेहा अपनी आँखों को बंद करके पूरा मजा ले रही थी।
थोड़ी देर बाद उसका पानी निकल गया और वो बोली- सर.. आज आपने मुझे बहुत मजा दिया है।
तो मैंने बोला- तुमको तो मजा मिल गया लेकिन मेरा क्या होगा..!
तो उसने बिना कुछ बोले सीधे अपना हाथ मेरे लण्ड पर रख दिया और उसको दबाने लगी तो मैंने कहा- ऐसे मजा नहीं आएगा..!
तो उसने पूछा- फिर कैसे..!
तो मैंने कहा- चलो मेरे कमरे पर चलते हैं। तो उसने तुरंत ‘हाँ’ कर दी और बोली- सर मैं तो कब से इस दिन का इंतजार कर रही थी।
फिर हम लोग मूवी को बीच में ही छोड़ दी और कमरे पर आ गए।
कमरे पर आते ही मैंने उसको कसके पकड़ लिया और धीरे-धीरे करके उसके सारे कपड़े निकाल कर उसको पूरा नंगा कर दिया। क्या बदन था उसका… बहुत ही सेक्सी लग रही थी..!
उसकी तनी हुई चूचियाँ देख कर मैं अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख सका और उनको अपने मुँह में ले कर चूसने लगा। ज्यों ही मैंने उसकी चूचियाँ चूसनी शुरू किया, उसकी साँसें तेज हो गईं और उसने मुझे अपनी बांहों में कसके भर लिया।
फिर मैंने उसको अपने हाथों में उठाया और ला कर बिस्तर पर लिटा दिया। अब मैंने उसकी पैंटी को निकाल कर अलग कर दिया।
वाह क्या चूत थी उसकी… गुलाबी सी और उसकी चूत का दाना तो कसम से क्या लग रहा था बिलकुल तना हुआ..! फिर मैंने अपने मुँह को ज्यों ही उसकी चूत पर रखा, वो उछल पड़ी।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो बोलने लगी- सर… गुदगुदी होती है..!
तो मैंने कहा- थोड़ी सी गुदगुदी बर्दाश्त करो.. फिर मजा ही मजा है!
अब धीरे-धीरे उसको मजा आने लगा फिर 69 की अवस्था में आ गए लेकिन चूंकि यह उसका पहली बार था तो वो मेरे लण्ड को अच्छे से नहीं चूस पा रही थी।
थोड़ी देर के बाद स्नेहा ने कहा- सर प्लीज अब और बर्दाश्त नहीं होता है, अब अपना लण्ड मेरी चूत में डाल कर मेरी चूत को फाड़ दो।
जब मैंने अपना लण्ड उसकी चूत पर रख के हल्का सा धक्का दिया तो वो अन्दर नहीं गया, तो मुझे एहसास हुआ कि इसकी चूत की सील अभी नहीं टूटी है।
फिर मैंने थोड़ी सी वैसलीन को अपने लण्ड और उसकी चूत पर लगाया।
अब धीरे-धीरे मैं अपने लण्ड को उसकी चूत में धकेलने लगा। लेकिन मुझे सफलता नहीं मिल पा रही थी, तो मैंने एक जोर का झटका दिया और मेरा आधा लण्ड उसकी चूत में घुस गया था और वो रोने लगी।
‘सर.. बहुत दर्द हो रहा है… प्लीज.. अपने लण्ड को बाहर निकाल लो!’
तो मैंने उसके होंठों को चूसते हुए कहा- थोड़ा बर्दाश्त करो.. अभी दर्द कम हो जाएगा..!
मैं उसके होंठों को चूसता रहा और साथ साथ उसके मम्मों को दबाता रहा। कुछ समय के बाद जब उसका दर्द कम हुआ तो उसने नीचे से चूतड़ों को उचकाना शुरू किया और कहने लगी- सर.. और तेज.. और तेज और तेज… आज मेरी चूत को आप फाड़ दो… बुझा दो.. इसकी सारी प्यास.. ये मुझे बहुत परेशान करती है!
मैं उसकी चूत को 20 मिनट तक चोदता रहा, तभी उसका बदन अकड़ने लगा और उसने तेजी की साथ अपना पानी छोड़ दिया। लेकिन मेरा अभी नहीं हुआ था इसलिए उसको डॉगी-स्टाइल में किया और उसकी गांड में अपने लण्ड को पेल दिया।
स्नेहा मुझे मना करती रही- सर नहीं… दर्द हो रहा है..!
लेकिन मैंने उसकी एक न सुनी और उसकी गांड को कसके चोदा और अपना सारा पानी उसकी गांड में ही डाल दिया। फिर कुछ देर तक हम दोनों लेटे रहे और सो गए।
जब हम दोनों उठे तो उस से चला नहीं जा रहा था, तो मैंने उसे एक दर्द-निवारक दवा दी।
उसने दवा खाई और कहने लगी- सर.. आप बहुत ही बेरहमी के साथ चुदाई करते हो.. शुरुआत में तो दर्द हो रहा था.. लेकिन बाद में बहुत मजा आया.. लव यू सर..!
फिर मैं उसको सड़क तक छोड़ने गया और फिर मिलने का वादा किया। मेरी कहानी कैसी लगी
मेरी यह कहानी तब की है जब मैंने नया-नया बैंगलोर में ज्वाइन किया था, ज्वाइन करने के कुछ ही दिनों के बाद मेरी ट्रेनिंग शुरू कर दी गई, जो कि 3 महीनों की थी।
ट्रेनिंग समाप्त करने के बाद ज्यों ही मैं दुबारा ऑफिस में लौट कर आया त्यों ही मेरे बॉस ने मुझे उन नए आए हुए लड़कों और लड़कियों की देख-रेख की जिम्मेदारी दे दी।
चूँकि मेरे ऑफिस में कंप्यूटर में डाटा फीड करने का कुछ ज्यादा काम था, तो मेरे ऑफिस ने अनुबंध प्रक्रिया पर काम करने के लिए कुछ लड़कों और लड़कियों को लिया हुआ था।
मेरी यह कहानी उन्हीं में से एक लड़की की है जिसका नाम स्नेहा (नाम बदला हुआ है) था। उनकी देख-रेख करते समय मुझे कभी-कभी उनके कंप्यूटर पर जाकर फीड किए गए डाटा को भी चैक करना पड़ता था। ऐसा करते-करते मेरी उन सबसे बहुत अच्छी दोस्ती हो गई थी।
पहले तो मैंने उन सब में कोई ज्यादा रूचि नहीं ली क्योंकि मैं उस समय पर अपना ज्यादा ध्यान सिर्फ अपने काम में ही दे रहा था।
वो काम बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण था जिसको कि दो चरणों में पूरा करना था।
पहला चरण था उस डाटा को कंप्यूटर में फीड करना और फिर उन सभी फीड किए गए डाटा का सत्यापन करना। काम के प्रथम चरण को पूरा करते-करते हम सभी को लगभग दो महीने निकल गए।
जब काम का पहला चरण पूरा हो गया तो हम सभी लोगों को थोड़ी सी राहत की सांस मिली। पहला चरण पूरा होने के बाद मैं भी थोड़ा सा तनाव मुक्त हो गया था क्योंकि अब सिर्फ कंप्यूटर में फीड किए गए डाटा को ही चैक करना रह गया था।
मेरी सेक्स की असली कहानी की शुरुआत अब होती है।
अब जब डाटा चैक करने की बारी आई तो हर एक लड़के और लड़की के साथ एक कंप्यूटर पर ऑफिस के एक कर्मचारी को लगाया गया, जिससे कि
डाटा वेरिफिकेशन में किसी तरह की कोई गलती न रह जाए। इस वेरिफिकेशन करने में मुझे मेरी उस ड्रीम लड़की के साथ काम करने का मौका मिल गया।
शायद हम दोनों की किस्मत में भी यही लिखा था। अब जब मैंने उस लड़की के साथ डाटा वेरिफिकेशन करना शुरू किया तो मैंने पाया कि वो लड़की काम से ज्यादा मुझ में रूचि ले रही थी। हमेशा मेरे बारे में कुछ न कुछ पूछती रहती थी, लेकिन मैं अपने ऑफिस में नया होने की वजह से थोड़ा सा डर रहा था कि यदि किसी को इस बात का पता चल गया तो ऑफिस में मेरी बहुत बदनामी होगी।
इसीलिए मैं पूरी तरह से उस में रूचि नहीं ले पा रहा था। धीरे-धीरे 10-12 दिन ऐसे ही निकल गए।
फिर एक दिन की बात है कि मैं ऑफिस टाइम से थोड़ा पहले पहुँच गया और अपना कंप्यूटर चालू करके काम करना शुरू कर दिया। तभी मुझे पीछे से किसी ने ‘गुड-मॉर्निंग’ बोला। जब मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो स्नेहा मेरे पीछे खड़ी थी और मुझे कंप्यूटर रूम में अकेला देख कर मुस्करा रही थी।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो बोली- सर आज आप इतने पहले क्यूँ आ गए?
तो मैंने सोचा कि आज मौका अच्छा है और मैंने उससे मजाक करना शुरू कर दिया और बोला- रूम पर अकेले मन नहीं लग रहा था तो
सोचा क्यों न आज ऑफिस ही जल्दी चला जाए, इसलिए आज जल्दी ऑफिस आ गया।
फिर उससे यूँ ही बात करता रहा।
बात करते-करते उस ने मुझसे पूछा- सर क्या आपकी कोई गर्ल-फ्रेंड है?
तो मैंने बोला- हाँ!
तो उसने फिर पूछा- कहाँ है?
तो मैंने बोला- यहीं है और मेरे सामने खड़ी है!
यह सुन कर वो हँसने लगी।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
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तो मैंने कहा- हाँ तो?
वो बोली- सर क्या आप मेरे साथ मूवी देखने चलना पसंद करेंगे?
तो मैंने तुरंत ‘हाँ’ कर दिया और अगले दिन गरुड़ा मॉल में मिलने का प्लान बनाया।
अगले दिन सुबह 10 बजे मूवी में हम दोनों ने कोने की सीट ली। मूवी एक इंग्लिश मूवी थी और मॉर्निंग का समय था इसीलिए बहुत कम ही लोग थे।
जैसे ही मूवी शुरू हुई उसने मेरा मुँह पकड़ कर मेरे होंठों पर एक चुम्बन कर लिया और बोली- सर, मैं आप से बहुत प्यार करती हूँ, आई लव यू..!
फिर मैंने भी कहा- मुझे भी तुम बहुत अच्छी लगती हो।
और वहीं पर हम एक-दूसरे के गले से लग गए। फिर मैंने धीरे से अपना एक हाथ उसके सीने पर रखा तो उसने मेरे हाथ को अपने सीने पर कसके दबा दिया।
फिर मैं धीरे-धीरे अपने हाथ को उसके पेट पर से होते हुए उसकी चूत के ऊपर ले गया और कपड़ों के ऊपर से ही चूत को रगड़ना शुरू कर दिया।
स्नेहा अपनी आँखों को बंद करके पूरा मजा ले रही थी।
थोड़ी देर बाद उसका पानी निकल गया और वो बोली- सर.. आज आपने मुझे बहुत मजा दिया है।
तो मैंने बोला- तुमको तो मजा मिल गया लेकिन मेरा क्या होगा..!
तो उसने बिना कुछ बोले सीधे अपना हाथ मेरे लण्ड पर रख दिया और उसको दबाने लगी तो मैंने कहा- ऐसे मजा नहीं आएगा..!
तो उसने पूछा- फिर कैसे..!
तो मैंने कहा- चलो मेरे कमरे पर चलते हैं। तो उसने तुरंत ‘हाँ’ कर दी और बोली- सर मैं तो कब से इस दिन का इंतजार कर रही थी।
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वाह क्या चूत थी उसकी… गुलाबी सी और उसकी चूत का दाना तो कसम से क्या लग रहा था बिलकुल तना हुआ..! फिर मैंने अपने मुँह को ज्यों ही उसकी चूत पर रखा, वो उछल पड़ी।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो बोलने लगी- सर… गुदगुदी होती है..!
तो मैंने कहा- थोड़ी सी गुदगुदी बर्दाश्त करो.. फिर मजा ही मजा है!
अब धीरे-धीरे उसको मजा आने लगा फिर 69 की अवस्था में आ गए लेकिन चूंकि यह उसका पहली बार था तो वो मेरे लण्ड को अच्छे से नहीं चूस पा रही थी।
थोड़ी देर के बाद स्नेहा ने कहा- सर प्लीज अब और बर्दाश्त नहीं होता है, अब अपना लण्ड मेरी चूत में डाल कर मेरी चूत को फाड़ दो।
जब मैंने अपना लण्ड उसकी चूत पर रख के हल्का सा धक्का दिया तो वो अन्दर नहीं गया, तो मुझे एहसास हुआ कि इसकी चूत की सील अभी नहीं टूटी है।
फिर मैंने थोड़ी सी वैसलीन को अपने लण्ड और उसकी चूत पर लगाया।
अब धीरे-धीरे मैं अपने लण्ड को उसकी चूत में धकेलने लगा। लेकिन मुझे सफलता नहीं मिल पा रही थी, तो मैंने एक जोर का झटका दिया और मेरा आधा लण्ड उसकी चूत में घुस गया था और वो रोने लगी।
‘सर.. बहुत दर्द हो रहा है… प्लीज.. अपने लण्ड को बाहर निकाल लो!’
तो मैंने उसके होंठों को चूसते हुए कहा- थोड़ा बर्दाश्त करो.. अभी दर्द कम हो जाएगा..!
मैं उसके होंठों को चूसता रहा और साथ साथ उसके मम्मों को दबाता रहा। कुछ समय के बाद जब उसका दर्द कम हुआ तो उसने नीचे से चूतड़ों को उचकाना शुरू किया और कहने लगी- सर.. और तेज.. और तेज और तेज… आज मेरी चूत को आप फाड़ दो… बुझा दो.. इसकी सारी प्यास.. ये मुझे बहुत परेशान करती है!
मैं उसकी चूत को 20 मिनट तक चोदता रहा, तभी उसका बदन अकड़ने लगा और उसने तेजी की साथ अपना पानी छोड़ दिया। लेकिन मेरा अभी नहीं हुआ था इसलिए उसको डॉगी-स्टाइल में किया और उसकी गांड में अपने लण्ड को पेल दिया।
स्नेहा मुझे मना करती रही- सर नहीं… दर्द हो रहा है..!
लेकिन मैंने उसकी एक न सुनी और उसकी गांड को कसके चोदा और अपना सारा पानी उसकी गांड में ही डाल दिया। फिर कुछ देर तक हम दोनों लेटे रहे और सो गए।
जब हम दोनों उठे तो उस से चला नहीं जा रहा था, तो मैंने उसे एक दर्द-निवारक दवा दी।
उसने दवा खाई और कहने लगी- सर.. आप बहुत ही बेरहमी के साथ चुदाई करते हो.. शुरुआत में तो दर्द हो रहा था.. लेकिन बाद में बहुत मजा आया.. लव यू सर..!
फिर मैं उसको सड़क तक छोड़ने गया और फिर मिलने का वादा किया। मेरी कहानी कैसी लगी
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साक्षी संग रंगरेलियाँ
दोस्तो, इस बार की कहानी का विषय मुझे अपनी आईडी पर आए एक मेल से ही मिला और मजे की बात कि यह मेल एक अविवाहित लड़की ने भेजी थी। इसका नाम साक्षी है, यह देहरादून के एक हॉस्टल में रहकर वहीं के एक कालेज में अपनी पढ़ाई कर रही है।
हालांकि किसी अविवाहित लड़की की सील ना तोड़ने संबंधी मेरी पत्नी के निर्देश से बचने के लिए मैंने उससे पूछा- पहले सैक्स किया है या नहीं?
तो उसने बिना किसी झिझक के बताया- मैं 5-6 बार सैक्स कर चुकी हूँ।
मैं बोला- यानि बॉयफ्रेंड हैं।
तो वह बोली- बॉयफ्रेंड हैं, पर कोई एक नहीं है। न ही मैं किसी एक से चुदी हूँ। हर बार नए लौड़े को अपनी चूत में लेना मुझे अच्छा लगा है।
मैंने उससे पूछा- हर बार अलग क्यूँ? एक ही से क्यों नहीं?
इस पर वह बोली- मैं यह नहीं समझ पा रही हूँ कि कैसे कोई औरत पूरी जिंदगी एक ही आदमी का लौड़ा लेकर रह सकती है।
मैं बोला- ऐसा मत बोलो यार। तकरीबन सभी हिंदुस्तानी औरतें शादी के बाद सिर्फ़ अपने आदमी से ही चुदवाकर खुश रहती हैं। मैं भी विवाहित हूँ, और जितना जानता हूँ उस हिसाब से शादी से पहले भी मेरी पत्नी के पीछे कई लड़के लगे रहे पर उसने उनमें से किसी के भी साथ संबंध नहीं बनाए।
मैं इस विषय में और बोलने वाला था पर उसने यह बोलकर रोक दिया- मैं आपको अपनी सोच बता रही हूँ। इसलिए मेरी बात सुनिए अपनी बात मत बताइए।
अब मैं उसकी बात पर ही आया और उससे पूछा- आपका कोई बॉयफ्रेंड आपके इस बदलाव पर ऐतराज नहीं करता है क्या?
तो वह बोली- मैं अपने नए पार्टनर के बारे में किसी को बतलाती ही नहीं हूँ। और बुरा लगे तो वह भी अपने रास्ते निकल ले। जिसने मुझे अच्छे से चोदा है, मैं जिससे चुदवाती हूँ वही मेरा बढ़िया फ्रेंड है।
मैं बोला- पर नए दोस्त बनाने में क्या हर्ज है। अच्छे दोस्त तो बना सकती हो ना?
वह बोली- नहीं, लड़के दोस्त बन जाएँ तो उनकी नियत सुधर जाए, यह नहीं कहा जा सकता। मैं अपनी सहेलियों को देखती हूँ जो उनका बॉयफ्रेंड हैं, बस उनके साथ ही घूमना-फिरना और सिर्फ़ उससे ही चुदवाना बस। क्यूंकि यदि वो लड़की उस लड़के के ही किसी दोस्त से भी बात कर ले तो बस, वह उससे इस बारे में कई सवाल करने शुरू कर देता है और यदि वह संतुष्ट नहीं हुआ तो पहले ही उसे चोद चाद कर मजे ले चुका होता है, तब उसे जलील कर और उसकी बदनामी कर उससे अलग हो जाता है और बेचारी लड़की उसके नाम की माला जपती हुई या तो आत्महत्या जैसा कदम उठा लेती हैं या फिर घर वालों की पसंद के लड़के के साथ शादी कर यूं ही अपनी बेरंगी जिंदगी को रोते-धोते गुजार लेती है। यह सब मैं अपने आसपास का माहौल व लड़कों का चालचलन देखकर ही बोल रही हूँ। मुझ पर भरोसा ना हो, तो आप किसी दूसरी लड़की से इस बारे में बात करके सच्चाई का पता लगा सकते हैं।
मुझे उसकी यह बात ठीक लगी और इसकी बात से हमारी नई पीढ़ी कैसी होगी, इसका पता भी लगा।
खैर साक्षी से मेरी बात का सिलसिला अब चल पड़ा। फिर उसने अपना फोन नंबर भी मुझे दिया और अब हम फोन पर घंटों सैक्स चैट व सामान्य बातें करते रहते।
एक दिन हम सैक्स चैट कर रहे थे तभी साक्षी मुझसे बोली- आप मेरे लिए एक दिन का समय निकालकर मुझे चोद नहीं सकते?
मैं बोला- मैं समय निकालकर तुम्हारे पास पहुँच गया, तब भी तुम हॉस्टल में हो हम मिल कहाँ पाएँगे?
साक्षी बोली- आप यहाँ तक आ जाओ बस। बाकी सब इन्तजाम मैं कर दूंगी।
मैं बोला- ठीक है, मैं अपने आने का जमाता हूँ।
इसके बाद मैं अपने आफिस से छुट्टी की जुगाड़ में लगा। अपने सीनियर से बात की तो उन्होंने पूछा- कहाँ जाना है?
मैंने कहा- देहरादून। वहाँ के एक स्कूल में अपने बेटे को पढ़ाने की सोच रहा हूँ। इसलिए फीस व दीगर खर्चे तथा वहाँ का माहौल देखने के लिए एक बार वहाँ जाना जरूरी हैं, आप छुट्टी दे देते तो मैं पता करके आ जाता।
अब सीनियर बोले- देहरादून में तो अपने जीएम का बेटा भी पढ़ने गया हैं। तुम जीएम साहब से बात कर लो, वो बेहतर बता देंगे।
यह बोलकर उन्होने मुझे अपनी छुट्टी के लिए जीएम के पास जाने की राह भी दिखा दी।
अब मैं पशोपेश में पड़ गया, कहीं जीएम ने भी छुट्टी नहीं दी तो? मुझ पर साक्षी को चोदने का भूत ऐसा सवार हुआ कि मैंने सोचा कि यदि नहीं बोलेंगे तो फिर कोई दूसरा बहाना मारूँगा पर उनके पास जाकर एक बार पूछकर तो देख ही लेता हूँ।
यह सोचकर मैं अपने जीएम के केबिन में गया और उनसे देहरादून की पढ़ाई के बारे में पूछा तो वे बोले- क्या बात है, प्लांट का काम छोड़कर तुमने पढ़ाई की बात कैसे शुरू कर दी।
अब मैंने उन्हे देहरादून में अपने बेटे की पढ़ाई कराने का खर्चा व स्कूल आदि देखने की बात करते हुए वहाँ जाने के लिए छुट्टी मांगी तो उन्होंने थोड़ी ना-नुकुर के बाद मेरी छुट्टी स्वीकृत कर दी।
मेरा काम तो बन गया था सो अब मैं ना उसके पास रूका, ना ही उनके बेटे की पढ़ाई के बारे में कुछ पूछा।
बाहर आकर अपने सीनियर को बताया कि बुधवार से मुझे अगले एक सप्ताह की छुट्टी मिल गई है, मैं देहरादून जा रहा हूँ सर।
सीनियर भी ओके बोलकर मेरी अनुपस्थिति का काम मेरे साथी को समझाने लगे।
उस दिन ड्यूटी से बाहर आकर मैंने अपने रिजर्वेशन के बारे में पता लगाया। यह ज्यादा भीड़ का समय नहीं था इसलिए मेरे आने-जाने का इंतजाम ट्रेन में हो गया। अगले दिन जाने की सब व्यवस्था करने के बाद मैंने साक्षी को फोन किया और बताया कि मैं इस ट्रेन से दिल्ली फिर वहाँ से दून एक्सप्रेस से तुम्हारे पास पहुँच रहा हूँ। यह ट्रेन सुबह वहाँ पहुँचेगी।
साक्षी बोली- ठीक है, हॉस्टल से मैं बाहर रहने का इंतजाम करती हूँ।
इसके बाद मैंने साक्षी के लिए गिफ्ट खरीदने का काम स्नेहा के ऊपर छोड़ा। दूसरे दिन नियत समय पर मैं ट्रेन पकड़कर दिल्ली जाने निकल पड़ा।
हमारे शहर से दिल्ली फिर दिल्ली से दूसरी ट्रेन पकड़कर मैं देहरादून पहुँचा।
रास्ते में भी साक्षी से बात करके मैं उसे अपनी लोकेशन बताता रहा।
देहरादून के स्टेशन में पहुँचकर मैंने साक्षी को फोन किया तो वह बोली- बस मैं थोड़ी देर में ही स्टेशन पहुँच रही हूँ।
सुबह करीब 9 बजे मैं देहरादून के स्टेशन पर था। थोड़ी देर बाद ही साक्षी मेरे पास पहुँच गई। वह क्रीम रंग के सलवार-सूट में थी, देखने में काफी सुंदर है, भरा बदन और थोड़ी मोटी भी। उसके दूध और चूतड़ दोनों ही काफी फूले हुए हैं।
मैंने पूछा- तुम तो आजकल की लड़कियों में चल रहे दुबले होने के फैशन से एकदम अलग हो यार?
वह बोली- जो लड़कियाँ फैशन या शर्म के कारण कम खाती हैं, मैं उनमें से नहीं हूँ। खाने में मैं बिल्कुल नहीं शर्माती हूँ ना ऊपर ना ही नीचे।
इसी तरह की सामान्य बात और थोड़े प्यार के बाद मुझे साथ लेकर वह आगे बढ़ी। स्टेशन के बाहर हमने टैक्सी पकड़ी। उसने ड्रायवर को एक होटल का नाम बताया और हम कुछ ही देर में उस होटल में पहुँचे।
यह होटल बहुत शानदार था। होटल के हर कमरों के नाम रखे हुए थे। साक्षी ने मेरे लिए मेग्नेट हाउस बुक करवाया था।
होटल पहुँचकर ही मैंने उसे कहा- यह बहुत ज्यादा मंहगा होगा, मेरा बजट तो बिगड़ जाएगा इससे।वह बोली- आप चिंता मत करो, यह होटल ही ठीक रहेगा।
दूसरी होटल में हमारे साथ रूकने पर कई तरह के सवाल पूछे जाते इसलिए मैंने इस होटल को प्राथमिकता दी।
मैंने सहमति में अपना सिर हिलाया- अब क्या कर सकता हूँ? साक्षी के सामने भी अपनी इज्जत का सवाल है। सो अब जो भी स्थिति बनेगी उसे भुगतूँगा, यह सोचकर अपने रूम में पहुँचा व साइड टेबल पर अपना बैग रखा।
साक्षी ने दरवाजे को बंद किए, वैसे ही उसके पास पहुँचकर मैंने उसे अपने बाजुओं में समेट लिया। हमारे होंठ जुड़े, मैं अपने हाथ उसके वक्ष पर रखकर दबाने लगा।
उसके उरोजों का आकार 36 तो होगा ही, या शायद इससे भी ज्यादा।
उसके कुर्ते का हुक खोलकर उतारने के लिए कुर्ती को ऊपर उठा ही रहा था कि डोरबेल बज उठी।
हम हड़बड़ा गए। उसने जल्दी-जल्दी खुद को ठीक किया और दरवाजे की ओर बढ़ी। इधर मैं भी पलंग से उठकर अपने बैग को खोलकर अभी पहनने वाले कपड़े निकालने लगा।
बाहर वेटर था जो हमारे लिए चाय नाश्ता लाया था। चाय देकर वेटर बाहर निकल गया।
साक्षी बोली- चलिए बाकी सब बाद में, पहले हमारे शहर की चाय ले लीजिए।
यह बोलकर उसने चाय व उसके साथ स्नेक्स टेबल को पलंग के पास खिंचकर उस पर रख दिए।
मेरा लंड टनटनाया हुआ था। हालांकि डोरबेल बजने के बाद अनचाहे भय के कारण यह थोड़ा सुस्त पड़ा था, पर अब फिर इसमें तनाव आना शुरू हो गया था।
मैंने उसे कहा- हमारी मुलाकात अच्छे से हो भी नहीं पाई कि वेटर ने आकर सब गड़बड़ कर दिया।
साक्षी बोली- उह ! कोई बात नहीं पहले यह हो जाए, फिर हम दोनो यहीं हैं तो ऐसी गड़बड़ियों को किनारे करके करेंगे खूब चुदाई।
मैं बोला- ठीक है। फिर इसके बाद मैं नहा-धोकर फ्रेश हो लूंगा, फिर लगेंगे चुदाई में।
वह बोली- ठीक है।
हम चाय नाश्ता करने लगे। तभी मैंने साक्षी से उसकी चुदाई के अनुभवों के बारे में जानना चाहा।
साक्षी बोली- मैंने अपनी चूत की सील कब और कैसे तुड़वाई, किस-किसके लौड़ों को अपनी चूत के अंदर लिया, वह सब बताऊँगी पर वह बाद में। अभी पिछली बार जिसने मेरे साथ चुदाई की, उसके बारे में बताती हूँ।
मैं बोला- हाँ वही बताइए, ताकि मैं भी तो जान सकूँ कि आपकी इस प्यारी चूत ने कैसे कैसे लौड़ों का स्वाद चखा है।
साक्षी जोर से हंसी व बोली- मेरी चूत को अब तक कुछ अच्छे लौड़े भी मिले हैं। पर पिछली बार जो मिला वो एकदम गेलचोदा मिला था।
मैं बोला- गेलचोदा? क्या मतलब हुआ इसका?
वह बोली- अब उसका अर्थ नहीं मैं आपको पूरी स्टोरी ही बताती हूँ।
मैं भी चाय के साथ स्नेक्स का मजा लेते हुए बोला- हाँ बताइए।
साक्षी ने अपने शब्दों में बताया:
हमारे ही कालेज का एक लड़का बहुत दिन से मेरे पीछे पड़ा था। पढ़ाई में वह मुझसे सीनियर हैं, यानि दो क्लास आगे।
एक दिन अन्तर्वासना में आपकी “फेसबुक सखी” पढ़कर मुझे चुदने की बहुत इच्छा हो रही थी, और मेरी चूत भी किसी नए लंड को लेने के मूड में थी, सो मैंने उस लड़के को लाइन दे दी।
वह खुशी से पागल हो गया। जल्दी ही मुझसे मिला और पूरी जिंदगी का साथ देने की बात करते हुए अभी कोर्टमैरिज करने की जिद करने लगा।
मैंने उससे कहा- मुझसे शादी-वादी की बात मत करिए। यह काम मैंने अपने घर वालों पर छोड़ा हुआ है।
तो वह बोला- ठीक है फिर हम दोनों किसी रेस्टारेंट में चलते हैं, जहाँ बैठकर हम आपस में ढेर सी बातें करेंगे।
मैं सोचने लगी कि यह भोसड़ी का अभी तक प्यार दुलार से ऊपर नहीं आ पाया है, ऐसे में मेरी चूत को तो खुराक मिल ही नहीं पाएगी। पर इसे छोड़ना भी नहीं हैं। सो मैंने आइडिया लगाया और बोली- ठीक है, मैं आपके साथ चलने तैयार हूँ, पर मेरी एक शर्त होगी।
उसने पूछा- क्या?
मैं बोली- हम दोनो जहाँ जहाँ होंगे, वहाँ और कोई नहीं होगा। यह कालेज व होस्टल का मामला हैं ना। यदि किसी ने भी मुझे आपके साथ बैठे देख लिया तो फिर मेरा जीना मुश्किल हो जाएगा।
वह अब मुझे सोच में पड़ता नजर आया, लिहाजा मैंने उससे कहा कि बेहतर होगा कि आप कोई होटल बुक कर लीजिए जहाँ हम दोनों इत्मीनान से बात कर सकेंगे।
वह इस पर मान गया, कहा- चलिए होटल ही ले लेते हैं।
अब वह मुझे लेकर एक होटल में आया। रूम बुक करने के बाद हम दोनो कमरे में पहुँचे। यहाँ फिर उसने अपनी प्यार भरी बातें शुरू कर दी। इसके जवाब में मैं उसे अपने लटके-झटके दिखाती रही। बात-बात में मैं उसके शरीर को छूकर पास आने का आमंत्रण दे रही थी। काफी देर बाद उसे समझ में आया कि वह मुझे चोद सकता है तो तब वह भी मेरे चूचों पर पहले अनजाने में फिर मुझे बोलकर भी हाथ लगाने लगा। अब उसके चेहरे से सैक्स का तनाव नजर आने लगा।
मैंने भी उसकी जांघ में हाथ रखकर उसके लौड़े को पाने की चाहत दिखाई। इससे वह जोश में आ गया, खड़ा होकर मुझे अपने से चिपका लिया।
मैंने उसे इस पर भी लिफ्ट दी और उससे चिपककर उसके लौड़े को गर्म करने लगी। अब उसने अपनी पैन्ट उतारना शुरू कर दिया। तब भी मैंने उस पर अपना प्यार लुटाना जारी रखा, पर वह मादरचोद मुझे चोदने की इतनी हड़बड़ी में था कि उसने मुझे भी अपने पूरे कपड़े उतारने नहीं दिए। मेरी जींस व पैन्टी नीचे कर उसने मेरी चूत में अपना लंड डाला और थोड़ी सी देर ही हिलने पर उसका माल झड़ गया। काम निकालने के बाद वह अपना पैन्ट पहनने के लिए खड़ा हो गया।
मैंने उससे पूछा- अरे हो गया क्या आपका?
वह बोला- हाँ, तभी तो उठा हूँ।
मुझे उसकी ऐसी चुदाई पर गुस्सा तो बहुत आया पर उसके सीनियर होने का लिहाज कर अपने गुस्से का कड़वा घूंट पी तो लिया पर उससे पूछा- आप ‘एनेस्थेटिस्ट’ में स्पेशलाइजेशन कर रहे हैं क्या?
मैंने(लेखक) पूछा- यह क्या होता है?
साक्षी बोली- मेडिसिन का हमारा मेन कोर्स होता है। उसके बाद सब अपनी पसंद के अलग-अलग सब्जेक्ट लेते हैं। एनेस्थेटिस्ट वे होते हैं जो मरीजों को आपरेशन या इलाज के दौरान बेहोश करने का काम करते हैं। आपरेशन थियेटर में मरीज को एनेस्थिया देने की बात आपने सुनी होगी।
मैं बोला- हाँ, समझा। आगे क्या हुआ वह बताओ।
साक्षी बोली:
मेरे यह कहने पर वह आश्चर्यचकित हो गया और पूछा- हाँ, पर यह तुम्हे कैसे पता लगा।
मैंने कहा- तुमने अभी मेरी चूत में क्या डाला? डाला या नहीं डाला? यह मुझे पता ही नहीं चला।
सच में उसका आखिरी साथी साक्षी का नहीं अपना काम करके उठ खड़ा होने वाला निकला। उसकी बात सुनकर मेरी हंसी रूकने का नाम नहीं ले रही थी।
साक्षी बोली- वो साला डाक्टर बन तो गया हैं पर मेरा दावा है कि उसकी बीवी उसके ही कम्पाउंडर से चुदवाकर अपनी प्यास बुझाएगी। उसकी इस मजेदार आपबीती बताते तक हमारी चाय खत्म हो गई पर कहीं हम चिपके और खाली कप प्लेट लेने वह वेटर फिर आ ना जाए, इसका डर था तो बतौर एहतियात अपनी जगह से उठते हुए मैंने कहा- अब मैं फ्रेश होकर आता हूँ, तब होगा चुदाई का कार्यक्रम। साक्षी बोली- हाँ आ जाइए जल्दी से।
मैं तौलिया लेकर बाथरूम की ओर तेज कदमों से बढ़ लिया।
होटल में टायलेट व वाशिंगरूम एक साथ ही थे। अपना तौलिया व शेविंग किट लेकर वहाँ गया और जल्दी से फ्रेश होकर बाहर निकला। मैं तौलिया लपेटे ही था, अंडरवियर सहित बाकी सभी कपड़े वहीं पलंग पर ही छोड़कर गया था। बाहर आकर अपनी आदत के अनुसार शेविंग बाक्स से निकालकर कंघी की, फिर पहनने के लिए अपना अंडरवियर उठाया। साक्षी कमरे का दरवाजा भीतर से बंद करके बैठी थी, अब वह मेरे पास पहुँची, और बोली- अब कंट्रोल नहीं हो रहा हैं यार ! उनसे हमारी मुलाकात तो कराइए जिसे स्नेहा जी रोज अपनी चूत में लेती हैं और सीमा, श्रद्धा, श्वेता, पुष्पा, रीमा, सोनम, पायल सहित कई लड़कियों ने काम्प्लीमेंट्री में जिसका टेस्ट लिया है।
ऐसा बोलकर उसने मेरा तौलिया खींचकर पलंग पर फेंक दिया।
अब मैं पूरा नंगा वहाँ खड़ा था, मेरा लौड़ा भी अब अपने पूर्णाकार में आ गया। साक्षी का हाथ पकड़कर मैंने उसे अपनी ओर खींचा और बोला- लो, यह हाजिर है मेरी जान तुम्हारे लिए ! यह भी बहुत बेचैन था तुमसे मिलने को ! इसीलिए अपना घर और काम व वहाँ मिल रही चूत को छोड़कर तुम्हारी चत को चूमने यहाँ तक भागा आया।
मेरे लण्ड को घूरकर देखती हुई वह बोली- बहुत अच्छा लगा, इससे मिलकर मैं धन्य हो गई।
मैं बोला- यार, धन्य तो यह हुआ है। जैसे लोग किसी पवित्र नदी के पानी से स्नान करने दूर दूर से सफर करके वहाँ जाते हैं, वैसे ही मेरा लौड़ा भी तुम्हारी इस प्यारी चूत के पानी में नहाने के लिए इतना लंबा सफर करके यहाँ तक आया है। अब हम देर न करके इन्हें मिलने देते हैं।
वह मेरे सीने से चिपककर अपने हाथों से मेरे लण्ड को सहलाने लगी। मैंन उसका चेहरा उठाकर होंठों को अपने मुख में ले लिया। पहले नीचे के होंठ, फिर ऊपर के होंठों को अच्छे से चूसने के बाद जीभ को उसके मुँह में घुमाया, साथ ही उसके कुर्ते का हुक खोलकर इसे ऊपर उठाकर उतार कर पलंग पर ही डाल दिया। अब ब्रा को भी उतारकर वहीं डालने के बाद सलवार के नाड़े को खींचा।
साक्षी ने पैर उठाकर उसे अपनी चिकनी मरमरी जांघों से नीचे सरकाते हुए अपने बदन से अलग किया। उसके शरीर पर केवल पैन्टी शेष थी।
अब मेरे हाथ उसके वक्ष के उन्नत शिखरों को अपने पंजे के भीतर समेटने का असफल कोशिश करने लगे। पर उसके बड़े उरोज मेरी मुट्ठी में नहीं आ पाए। आकार में बड़े व कड़े होने के कारण जब ये मेरे हाथ में नहीं समाए तो मैं इसके चेहरे से अपना मुँह हटाकर साक्षी के वक्ष पर आया, इसके गुलाबी निप्पल, दूधिया तथा भरे व उभरे बदन पर बहुत सुंदर लग रहे थे, निप्पल उसके जोश के कारण तनकर खड़े हो गए थे।
मैंने निप्पल को अपने मुँह में भरा व चूसना शुरू किया। एक निप्पल मेरे मुँह में था, दूसरे को मैं सहला रहा था। थोड़ी देर बाद ही मैंने अपना हाथ नीचे किया, उसकी पैन्टी को नीचे कर मस्त उभरी हुई चूत पर हाथ फेरने लगा।
साक्षी की चूत एकदम चिकनी थी, बाल उसने आज ही साफ किए होंगे पर हाथ फेरने से ऐसा लग रहा था मानो यहाँ कभी बाल हुए ही नहीं हैं, न ही अब होंगे।
मैं वहीं घुटने मोड़कर बैठ गया। उसकी चूत सामान्य लड़कियों की चूत से ज्यादा फूली हुई थी। इतनी मस्त चूत देखकर मैं गदगद हो गया और अपना मुँह उसकी चूत में लगा दिया। चूत के ऊपरी हिस्से को जी भर कर चाटने के बाद नीचे छेद में जीभ डाली।
साक्षी भी पूरे मूड में थी, लिहाजा अपने हाथों से मेरा सिर पकड़कर बिस्तर पर आई, बिस्तर पर लेट गई और अपनी टांगें फैला दी। इससे उसकी चूत मुझे खुली मिल गई, लिहाजा इसे ऊपर से नीचे तक अच्छे से चाटा। उसकी चूत तो शुरू से ही गीली थी, चाटने से मुझे लग रहा था कि उससे पानी छूट रहा है, रज का स्वाद आ रहा था।
थोड़ी ही देर में उसकी सिसकती आवाज फूटी- ऊपर आओ ना जल्दी।
मुझे लगा कि साक्षी पूरी तरह से गरमा गई है, इसलिए जल्दी ही करना होगा। मैं अब उसकी चूत से अपनी जीभ रगड़ते हुए ऊपर की ओर बढ़ा, वह मेरे दोनों कंधों को पकड़कर ऊपर खींचने लगी। मैंने जीभ उसकी ठोड़ी से लेकर चेहरे पर घुमाई और अब लौड़े को उसकी चूत में ऊपर से नीचे तक रगड़ा, रगड़ने के बाद लौड़े को चूत के छेद पर लगाया।
साक्षी इतनी जल्दी में थी कि अब मेरे शाट लगाने का विलम्ब भी उससे बर्दाश्त नहीं हुआ, उसने नीचे से खुद ही उछाल भरी, इससे चूत के छेद से लगा से लगे लण्ड का सुपाड़ा थोड़ा सा भीतर हुआ।
साक्षी बोली- फाड़ दे इस मादरचोद को ! अंदर घुसा ना भोसड़ी के।
मैं बोला- घुसाता हूँ ना ! तेरी माँ की चूत ! अभी तो मेरे लण्ड का मुँह भी तेरी चूत में नहीं घुसा है।
इसी बीच मैंने एक जोर का शाट मारा, मुझे अहसास हुआ कि लण्ड का पूरा सुपाड़ा सहित कुछ और भाग उसकी चूत में समा गया है। इस शाट से वह उछली और बोली- अबे फट गई रे ! तू भोसड़ी के, थोड़ा आराम से चोद ना ! मुफ्त का माल है इसलिए मेरी चूत ही फाड़ डालेगा क्या बे गांडू?
वह आगे और कुछ बोले, इसके पहले ही मैंने उसके होंठों को अपने होंठों के बीच दबा लिया। नीचे उसे दर्द हो रहा होगा, इसलिए मैंने अपने चोदने की गति धीमी किया क्योंकि जब भी मैं अपने लण्ड को भीतर करता, तब वह अपने हाथ मेरे सीने में लगाकर मुझे करीब आने से रोकती, तथा अपनी चूत को पीछे करती। इसलिए मैंने प्रयास किया कि मेरा लण्ड जहाँ पर अभी है, उससे आगे अभी ना बढ़े। सो अपने झटकों की स्पीड एकदम कम करके मैंने चुदाई जारी रखी। थोड़ी ही देर में वह सामान्य हुई और उसके हाथ मेरे दोनों पुट्ठों पर पहुँचकर उसे अपने और करीब लाने का प्रयास करने लगे।
मैंने पूछा- अब ठीक है ना? डालूँ और अंदर?
वह बोली- अबे बहनचोद, पूरे मोहल्ले के लौड़े लाया है क्या साथ में? डाल इसकी मां को चोदूँ, मैं भी देखूँ, कितने लौड़ों को झेल सकती हैं मेरी फ़ुद्दी ! बाड़ दे पूरा !
मैं भी मस्त हो गया और अब शॉट लगाने शुरू कर दिए। साक्षी भी नीचे से अपनी कमर उठाकर मुझे अपनी स्पीड बढ़ाने का संकेत दे रही थी। लिहाजा थोड़ी देर में ही मेरा लण्ड करीब आधे से भी ज्यादा उसकी चूत में घुस गया। धक्के लगाने की गति हम दोनों में ही करीब समान थी।
जब मुझे लगा कि मेरा अब होने वाला है, मैंने साक्षी से कहा- मेरा बस होने ही वाला है।
वह बोली- बस मैं भी आ रही हूँ, पर बीच में रूकना मत।
कुछ ही देर में मेरा माल निकल पड़ा, तभी साक्षी भी मुझे अपने से कसकर दबा लिय और वह भी ठण्डी पड़ गई। हम दोनों यूं ही बिस्तर पर पड़े रहे।
कुछ पल बाद साक्षी बोली- उठिए, मुझे यूरिनल जाना है।
मैं एक तरफ़ हुआ और उसे बाहर निकलने दिया। वह आई, फिर मैं पेशाब करने गया। आकर बिस्तर पर हम यूं ही नंगे पड़े रहे।
मैंने उससे पूछा- दर्द हुआ क्या?
वह बोली- अब तक मैंने जितनों से चुदवाया है ना, आपका लौड़ा उन सभी से मोटा है। पर मैंने सोचा कि जैसे उन लोगों का मैंने आराम से ले लिया, वैसे ही इसे भी ले लूंगी, पर यह बहुत मादरचोद लण्ड है। साला दर्द भी दिया और मजा भी।
मैं बोला- हाँ, मुझसे भी गलती हो गई, कोई तेल या क्रीम लगा लेनी थी पहले मुझे। पर शुरू में तेरी चूत से रज निकलने लगा था, सो
मुझे लगा कि चिकनाई आ गई होगी पर यह बहनचोद अभी रमां नहीं हुई है ना। हमारी साक्षी अल्हड़ ही है।
वह बोली- हाँ पढ़ाई में भी मेरा ध्यान चूत को टाइट रखने के तरीकों पर ही ज्यादा लगा रहता है ताकि मुझे जो चोदे, जब चोदे यही लगे कि क्या टाइट माल है। यानि ऐसा लगना चाहिए कि मेरी सील भी अभी ही टूटी है। क्यों आपको लगा ना ऐसा?
मैं बोला- हाँ, तभी तो मैंने तुम्हें दर्द ना हो यह सोचकर मैंने अपने लण्ड को आधा ही तुम्हारी चूत में डाला।
इस पर वह बोली- पूरा डालना था ना भोसड़ी के। आधा लण्ड बाहर रखकर तुमने आधा ही मजा लिया, और आधा ही दिया।
मैं बोला- अए बहनचोद, जब डाल रहा था, तब तो तेरी गाण्ड फट रही थी। अब आधा मजा आया तो मैं क्या करूँ?
वह बोली- अबे गांडू, छोड़ ना ये आधे मजे की बात ! चल अभी खाना खाकर फिर लग जाते हैं चुदाई में। जितना अंदर डाल सकता हो डाल लेना।
मैं बोला- ठीक है फिर ! मैं तो सोच रहा था कि अभी तुरंत ही चोदने को कहोगी।
वह बोली- अरे नहीं राजा, खाली चुदाई ही करना हो तो अलग बात है, लग जाते हैं अभी ! पर हमें चुदाई का मजा लेना है। इसलिए जब शरीर परमिशन दे तब ही करेंगे। ठीक हैं ना?
मैं बोला- ठीक है, जैसा तुम कहो। खाना कहाँ खाना है?
वह बोली- खाना खाने कहीं जाने की जरूरत नहीं हैं डीयर, यहीं लाने के लिए वेटर को बोलते हैं।
यह बोलकर उसने वेटर को बुलाने के लिए बेल बजाई। तब तक हम दोनों कपड़े पहनकर तैयार हो गए।
कुछ देर में ही वेटर आया। उसे हमने खाने का आर्डर दिया। अब दोनों पलंग पर ही चिपक कर बैठ गए।
मैंने कहा- और सुनाओ कोई मजेदार बात?
वह कुछ देर सोचकर बोली- मैं एक कहानी टाइम पास के लिए सुनाती हूँ। इसे मुझे मेरी एक सहेली ने सुनाया है। यह कहानी हमारे कालेज में भी बहुत पापुलर है।
मैं बोला- जी, सुनाइए।
साक्षी बोली- एक राजा की पत्नी उसे चोदने नहीं देती थी। परेशान राजा नदी के किनारे जाता और वहाँ रहने वाली बत्तख से कहता- “आओ बत्तख प्यारी, बैठो जांघ पर हमारी, खाओ पान सुपारी !”
उसकी आवाज सुनकर बत्तख आ जाती, तब राजा बत्तख से…
उसकी कहानी तो सामान्य थी, पर साक्षी के सुनाने के तरीके ने कहानी को बहुत मजेदार बना दिया। हम कुछ देर इसी तरह की बात करते रहे, तभी वेटर ने रूम में ही हमारा खाना ला दिया।
हम दोनों ने साथ ही खाना खाया। मैंने उससे हॉस्टल के बारे में पूछा, तो वह बोली- मैंने वार्डन मैम को बताया कि मेरे एक रिश्तेदार आए हैं, उनसे मिलने जा रही हूँ, पर रात को मुझे हॉस्टल में ही जाना होगा।
मैं बोला- हाँ यह बात तो है, रात को तुम्हें हॉस्टल में जाना ही होगा। पर मुझे एक बात बताओ साक्षी, तुम गाली बहुत देती हो, इसकी लत तुम्हें कैसे लगी?
वह बोली- अबे मादरजात ! गाली देना कोई लत थोड़े ही है। इससे मेरी उत्तेजना बढ़ती है। गाली सुनना व देना मुझे अच्छा लगता है। जो मुझे गाली नहीं देते है वो मुझे हिजड़े-गांडू लगते हैं।
मैं बोला- यानि साक्षी से बात करते समय मुँह में गालियाँ भरकर रखना होगा। कब उसे उत्तेजित होने का मूड हो, ताकि उसे गाली सुनाकर उसका मूड बनाया जा सके।
साक्षी बोली- खाली गाली ही नहीं, खूब गंदी बातें करना भी मुझे अच्छा लगता है।
“खूब गंदी बात यानि?” मैंने पूछा।
तो वह बोली- अच्छा आप बताओ आपने किसी को चुदते हुए देखा है?
मैं बोला- हाँ कई लड़कियों को चुदते हुए देखा है।
हंसते हुए मैंने कहा- जिसे भी मैंने चोदा है, जैसे अभी तुम्हें, तो उन्हें चुदते हुए तो देखा ही ना।
“अबे मादरजात ऐसे नहीं, किसी दूसरे को?”
मैंने कहा- वह तो मुझे ध्यान नहीं।
यह सुनकर वह बोली- बे साले चूतिया ! रह गए ना यूं ही झण्डू बाम?
मैं बोला- अच्छा, तुमने किस किस को चुदते हुए देखा है? यह बताओ तो?
वह बोली- कई लोगों को !
मैंने पूछा- जैसे?
वह बोली- एक तो मेरी वार्डन मैम अपने पुराने प्रेमी से चुदवाती थी, उनको देखा है, और मेरी एक सहेली ने हॉस्टल में ही अपने बॉयफ्रेंड से चुदवाया था थी, और मुझे ‘वहाँ कोई आ ना जाए’ इसकी चौकीदारी करते हुए वहीं आसपास ही डटे रहना पड़ा। तब मैंने अपनी नजरें कोई आ रहा हैं या नहीं इस पर लगाने के बदले अपनी सहेली को ही चुदते हुए देखते रही।
मैंने पूछा- किसकी चुदाई बढ़िया रही?
वह बोली- दोनों ही चुदाइयाँ मस्त रही ! मजा आ गया इन्हें देखकर।
हम लोगों के बीच इसी तरह की मसालेदार बात चलती रही।
कुछ देर बाद साक्षी बोली- कुछ असर हुआ या नहीं?
मैं समझ नहीं पाया, सो पूछा- किसका असर?
वह बोली- अरे लौड़े की गाण्ड में कुछ दम आया क्या?
मैं बोला- यार तू भी ना मादरचोद, एकदम कामचलाऊ टाइप की बात कर रही है। यानि जब खुद को नहीं चुदवाना है, तब मूड बनाकर चुदाई करेंगे, कहती है और जब घुसेड़ने की इच्छा हो रही है तब असर है या नहीं, पूछ रही है।
यह बोलकर मैं हंसा और कपड़े उतारने के लिए बिस्तर से उठा।
वह भी हंसने लगी, बोली- चल चुदवा लेती हूँ तेरे से ! नहीं तो बाद में मैं बात करने के लिए फोन करूँगी तो ‘काम से गए हैं या बाद में बात करता हूँ’ का उत्तर सुनाई पड़ेगा।
यह बोलकर वह भी उठकर कपड़े उतारने लगी। कपड़े उतारकर मैं साक्षी के पास पहुँचा, वह भी अपना सलवार कुर्ता उतार चुकी थी और ब्रा उतारने के लिए हाथ पीछे किए ही थे, तभी मैंने उसको अपने आगोश में ले लिया।
वह बोली- अबे भोसड़ी के ! अपनी कुतिया को नंगी तो हो जाने दे या मेरी चड्डी फाड़कर डालेगा अपना लंड?
मैंने उसकी कोहनी के थोड़ा नीचे अपने होंठ लगाए पर प्यार उसके बगल तक करता आया। ब्रा उतारकर उसने नीचे फेंकी और अपने एक हाथ को पूरा ऊपर कर लिया। इससे मुझसे उसकी पूरी बगल चाटने को खुली मिल गई।
उसे पलंग की ओर धकेलकर मैंने उसे लेटने का संकेत दिया। वह भी बिस्तर पर आई और वैसे ही लेट गई। उसने अपना हाथ ऊपर ही किया हुआ था। लिहाजा मैंने उसकी बगलों को खूब चाटा।
हाँ ! उसे यहाँ चाटने से गुदगुदी नहीं हो रही थी, यह मेरे लिए आश्चर्य की बात रही।
तो साक्षी की चूत का स्वाद तो मेरे लौड़े ने ले लिया है, पर जैसा उसने भी कहा था कि लौड़े को पूरा घुसेड़ना था। जबकि मैं उसे तकलीफ ना हो, इसलिए उसकी पहली चुदाई ज्यादा वहशी तरीके से नहीं की। पर अब जब उसने जमकर चुदने के लिए सहमति दे दी है तो फिर यदि अब उसे जमकर नहीं चोदा तो मैं ही उससे चूतिया कहा जाऊँगा।
हालांकि किसी अविवाहित लड़की की सील ना तोड़ने संबंधी मेरी पत्नी के निर्देश से बचने के लिए मैंने उससे पूछा- पहले सैक्स किया है या नहीं?
तो उसने बिना किसी झिझक के बताया- मैं 5-6 बार सैक्स कर चुकी हूँ।
मैं बोला- यानि बॉयफ्रेंड हैं।
तो वह बोली- बॉयफ्रेंड हैं, पर कोई एक नहीं है। न ही मैं किसी एक से चुदी हूँ। हर बार नए लौड़े को अपनी चूत में लेना मुझे अच्छा लगा है।
मैंने उससे पूछा- हर बार अलग क्यूँ? एक ही से क्यों नहीं?
इस पर वह बोली- मैं यह नहीं समझ पा रही हूँ कि कैसे कोई औरत पूरी जिंदगी एक ही आदमी का लौड़ा लेकर रह सकती है।
मैं बोला- ऐसा मत बोलो यार। तकरीबन सभी हिंदुस्तानी औरतें शादी के बाद सिर्फ़ अपने आदमी से ही चुदवाकर खुश रहती हैं। मैं भी विवाहित हूँ, और जितना जानता हूँ उस हिसाब से शादी से पहले भी मेरी पत्नी के पीछे कई लड़के लगे रहे पर उसने उनमें से किसी के भी साथ संबंध नहीं बनाए।
मैं इस विषय में और बोलने वाला था पर उसने यह बोलकर रोक दिया- मैं आपको अपनी सोच बता रही हूँ। इसलिए मेरी बात सुनिए अपनी बात मत बताइए।
अब मैं उसकी बात पर ही आया और उससे पूछा- आपका कोई बॉयफ्रेंड आपके इस बदलाव पर ऐतराज नहीं करता है क्या?
तो वह बोली- मैं अपने नए पार्टनर के बारे में किसी को बतलाती ही नहीं हूँ। और बुरा लगे तो वह भी अपने रास्ते निकल ले। जिसने मुझे अच्छे से चोदा है, मैं जिससे चुदवाती हूँ वही मेरा बढ़िया फ्रेंड है।
मैं बोला- पर नए दोस्त बनाने में क्या हर्ज है। अच्छे दोस्त तो बना सकती हो ना?
वह बोली- नहीं, लड़के दोस्त बन जाएँ तो उनकी नियत सुधर जाए, यह नहीं कहा जा सकता। मैं अपनी सहेलियों को देखती हूँ जो उनका बॉयफ्रेंड हैं, बस उनके साथ ही घूमना-फिरना और सिर्फ़ उससे ही चुदवाना बस। क्यूंकि यदि वो लड़की उस लड़के के ही किसी दोस्त से भी बात कर ले तो बस, वह उससे इस बारे में कई सवाल करने शुरू कर देता है और यदि वह संतुष्ट नहीं हुआ तो पहले ही उसे चोद चाद कर मजे ले चुका होता है, तब उसे जलील कर और उसकी बदनामी कर उससे अलग हो जाता है और बेचारी लड़की उसके नाम की माला जपती हुई या तो आत्महत्या जैसा कदम उठा लेती हैं या फिर घर वालों की पसंद के लड़के के साथ शादी कर यूं ही अपनी बेरंगी जिंदगी को रोते-धोते गुजार लेती है। यह सब मैं अपने आसपास का माहौल व लड़कों का चालचलन देखकर ही बोल रही हूँ। मुझ पर भरोसा ना हो, तो आप किसी दूसरी लड़की से इस बारे में बात करके सच्चाई का पता लगा सकते हैं।
मुझे उसकी यह बात ठीक लगी और इसकी बात से हमारी नई पीढ़ी कैसी होगी, इसका पता भी लगा।
खैर साक्षी से मेरी बात का सिलसिला अब चल पड़ा। फिर उसने अपना फोन नंबर भी मुझे दिया और अब हम फोन पर घंटों सैक्स चैट व सामान्य बातें करते रहते।
एक दिन हम सैक्स चैट कर रहे थे तभी साक्षी मुझसे बोली- आप मेरे लिए एक दिन का समय निकालकर मुझे चोद नहीं सकते?
मैं बोला- मैं समय निकालकर तुम्हारे पास पहुँच गया, तब भी तुम हॉस्टल में हो हम मिल कहाँ पाएँगे?
साक्षी बोली- आप यहाँ तक आ जाओ बस। बाकी सब इन्तजाम मैं कर दूंगी।
मैं बोला- ठीक है, मैं अपने आने का जमाता हूँ।
इसके बाद मैं अपने आफिस से छुट्टी की जुगाड़ में लगा। अपने सीनियर से बात की तो उन्होंने पूछा- कहाँ जाना है?
मैंने कहा- देहरादून। वहाँ के एक स्कूल में अपने बेटे को पढ़ाने की सोच रहा हूँ। इसलिए फीस व दीगर खर्चे तथा वहाँ का माहौल देखने के लिए एक बार वहाँ जाना जरूरी हैं, आप छुट्टी दे देते तो मैं पता करके आ जाता।
अब सीनियर बोले- देहरादून में तो अपने जीएम का बेटा भी पढ़ने गया हैं। तुम जीएम साहब से बात कर लो, वो बेहतर बता देंगे।
यह बोलकर उन्होने मुझे अपनी छुट्टी के लिए जीएम के पास जाने की राह भी दिखा दी।
अब मैं पशोपेश में पड़ गया, कहीं जीएम ने भी छुट्टी नहीं दी तो? मुझ पर साक्षी को चोदने का भूत ऐसा सवार हुआ कि मैंने सोचा कि यदि नहीं बोलेंगे तो फिर कोई दूसरा बहाना मारूँगा पर उनके पास जाकर एक बार पूछकर तो देख ही लेता हूँ।
यह सोचकर मैं अपने जीएम के केबिन में गया और उनसे देहरादून की पढ़ाई के बारे में पूछा तो वे बोले- क्या बात है, प्लांट का काम छोड़कर तुमने पढ़ाई की बात कैसे शुरू कर दी।
अब मैंने उन्हे देहरादून में अपने बेटे की पढ़ाई कराने का खर्चा व स्कूल आदि देखने की बात करते हुए वहाँ जाने के लिए छुट्टी मांगी तो उन्होंने थोड़ी ना-नुकुर के बाद मेरी छुट्टी स्वीकृत कर दी।
मेरा काम तो बन गया था सो अब मैं ना उसके पास रूका, ना ही उनके बेटे की पढ़ाई के बारे में कुछ पूछा।
बाहर आकर अपने सीनियर को बताया कि बुधवार से मुझे अगले एक सप्ताह की छुट्टी मिल गई है, मैं देहरादून जा रहा हूँ सर।
सीनियर भी ओके बोलकर मेरी अनुपस्थिति का काम मेरे साथी को समझाने लगे।
उस दिन ड्यूटी से बाहर आकर मैंने अपने रिजर्वेशन के बारे में पता लगाया। यह ज्यादा भीड़ का समय नहीं था इसलिए मेरे आने-जाने का इंतजाम ट्रेन में हो गया। अगले दिन जाने की सब व्यवस्था करने के बाद मैंने साक्षी को फोन किया और बताया कि मैं इस ट्रेन से दिल्ली फिर वहाँ से दून एक्सप्रेस से तुम्हारे पास पहुँच रहा हूँ। यह ट्रेन सुबह वहाँ पहुँचेगी।
साक्षी बोली- ठीक है, हॉस्टल से मैं बाहर रहने का इंतजाम करती हूँ।
इसके बाद मैंने साक्षी के लिए गिफ्ट खरीदने का काम स्नेहा के ऊपर छोड़ा। दूसरे दिन नियत समय पर मैं ट्रेन पकड़कर दिल्ली जाने निकल पड़ा।
हमारे शहर से दिल्ली फिर दिल्ली से दूसरी ट्रेन पकड़कर मैं देहरादून पहुँचा।
रास्ते में भी साक्षी से बात करके मैं उसे अपनी लोकेशन बताता रहा।
देहरादून के स्टेशन में पहुँचकर मैंने साक्षी को फोन किया तो वह बोली- बस मैं थोड़ी देर में ही स्टेशन पहुँच रही हूँ।
सुबह करीब 9 बजे मैं देहरादून के स्टेशन पर था। थोड़ी देर बाद ही साक्षी मेरे पास पहुँच गई। वह क्रीम रंग के सलवार-सूट में थी, देखने में काफी सुंदर है, भरा बदन और थोड़ी मोटी भी। उसके दूध और चूतड़ दोनों ही काफी फूले हुए हैं।
मैंने पूछा- तुम तो आजकल की लड़कियों में चल रहे दुबले होने के फैशन से एकदम अलग हो यार?
वह बोली- जो लड़कियाँ फैशन या शर्म के कारण कम खाती हैं, मैं उनमें से नहीं हूँ। खाने में मैं बिल्कुल नहीं शर्माती हूँ ना ऊपर ना ही नीचे।
इसी तरह की सामान्य बात और थोड़े प्यार के बाद मुझे साथ लेकर वह आगे बढ़ी। स्टेशन के बाहर हमने टैक्सी पकड़ी। उसने ड्रायवर को एक होटल का नाम बताया और हम कुछ ही देर में उस होटल में पहुँचे।
यह होटल बहुत शानदार था। होटल के हर कमरों के नाम रखे हुए थे। साक्षी ने मेरे लिए मेग्नेट हाउस बुक करवाया था।
होटल पहुँचकर ही मैंने उसे कहा- यह बहुत ज्यादा मंहगा होगा, मेरा बजट तो बिगड़ जाएगा इससे।वह बोली- आप चिंता मत करो, यह होटल ही ठीक रहेगा।
दूसरी होटल में हमारे साथ रूकने पर कई तरह के सवाल पूछे जाते इसलिए मैंने इस होटल को प्राथमिकता दी।
मैंने सहमति में अपना सिर हिलाया- अब क्या कर सकता हूँ? साक्षी के सामने भी अपनी इज्जत का सवाल है। सो अब जो भी स्थिति बनेगी उसे भुगतूँगा, यह सोचकर अपने रूम में पहुँचा व साइड टेबल पर अपना बैग रखा।
साक्षी ने दरवाजे को बंद किए, वैसे ही उसके पास पहुँचकर मैंने उसे अपने बाजुओं में समेट लिया। हमारे होंठ जुड़े, मैं अपने हाथ उसके वक्ष पर रखकर दबाने लगा।
उसके उरोजों का आकार 36 तो होगा ही, या शायद इससे भी ज्यादा।
उसके कुर्ते का हुक खोलकर उतारने के लिए कुर्ती को ऊपर उठा ही रहा था कि डोरबेल बज उठी।
हम हड़बड़ा गए। उसने जल्दी-जल्दी खुद को ठीक किया और दरवाजे की ओर बढ़ी। इधर मैं भी पलंग से उठकर अपने बैग को खोलकर अभी पहनने वाले कपड़े निकालने लगा।
बाहर वेटर था जो हमारे लिए चाय नाश्ता लाया था। चाय देकर वेटर बाहर निकल गया।
साक्षी बोली- चलिए बाकी सब बाद में, पहले हमारे शहर की चाय ले लीजिए।
यह बोलकर उसने चाय व उसके साथ स्नेक्स टेबल को पलंग के पास खिंचकर उस पर रख दिए।
मेरा लंड टनटनाया हुआ था। हालांकि डोरबेल बजने के बाद अनचाहे भय के कारण यह थोड़ा सुस्त पड़ा था, पर अब फिर इसमें तनाव आना शुरू हो गया था।
मैंने उसे कहा- हमारी मुलाकात अच्छे से हो भी नहीं पाई कि वेटर ने आकर सब गड़बड़ कर दिया।
साक्षी बोली- उह ! कोई बात नहीं पहले यह हो जाए, फिर हम दोनो यहीं हैं तो ऐसी गड़बड़ियों को किनारे करके करेंगे खूब चुदाई।
मैं बोला- ठीक है। फिर इसके बाद मैं नहा-धोकर फ्रेश हो लूंगा, फिर लगेंगे चुदाई में।
वह बोली- ठीक है।
हम चाय नाश्ता करने लगे। तभी मैंने साक्षी से उसकी चुदाई के अनुभवों के बारे में जानना चाहा।
साक्षी बोली- मैंने अपनी चूत की सील कब और कैसे तुड़वाई, किस-किसके लौड़ों को अपनी चूत के अंदर लिया, वह सब बताऊँगी पर वह बाद में। अभी पिछली बार जिसने मेरे साथ चुदाई की, उसके बारे में बताती हूँ।
मैं बोला- हाँ वही बताइए, ताकि मैं भी तो जान सकूँ कि आपकी इस प्यारी चूत ने कैसे कैसे लौड़ों का स्वाद चखा है।
साक्षी जोर से हंसी व बोली- मेरी चूत को अब तक कुछ अच्छे लौड़े भी मिले हैं। पर पिछली बार जो मिला वो एकदम गेलचोदा मिला था।
मैं बोला- गेलचोदा? क्या मतलब हुआ इसका?
वह बोली- अब उसका अर्थ नहीं मैं आपको पूरी स्टोरी ही बताती हूँ।
मैं भी चाय के साथ स्नेक्स का मजा लेते हुए बोला- हाँ बताइए।
साक्षी ने अपने शब्दों में बताया:
हमारे ही कालेज का एक लड़का बहुत दिन से मेरे पीछे पड़ा था। पढ़ाई में वह मुझसे सीनियर हैं, यानि दो क्लास आगे।
एक दिन अन्तर्वासना में आपकी “फेसबुक सखी” पढ़कर मुझे चुदने की बहुत इच्छा हो रही थी, और मेरी चूत भी किसी नए लंड को लेने के मूड में थी, सो मैंने उस लड़के को लाइन दे दी।
वह खुशी से पागल हो गया। जल्दी ही मुझसे मिला और पूरी जिंदगी का साथ देने की बात करते हुए अभी कोर्टमैरिज करने की जिद करने लगा।
मैंने उससे कहा- मुझसे शादी-वादी की बात मत करिए। यह काम मैंने अपने घर वालों पर छोड़ा हुआ है।
तो वह बोला- ठीक है फिर हम दोनों किसी रेस्टारेंट में चलते हैं, जहाँ बैठकर हम आपस में ढेर सी बातें करेंगे।
मैं सोचने लगी कि यह भोसड़ी का अभी तक प्यार दुलार से ऊपर नहीं आ पाया है, ऐसे में मेरी चूत को तो खुराक मिल ही नहीं पाएगी। पर इसे छोड़ना भी नहीं हैं। सो मैंने आइडिया लगाया और बोली- ठीक है, मैं आपके साथ चलने तैयार हूँ, पर मेरी एक शर्त होगी।
उसने पूछा- क्या?
मैं बोली- हम दोनो जहाँ जहाँ होंगे, वहाँ और कोई नहीं होगा। यह कालेज व होस्टल का मामला हैं ना। यदि किसी ने भी मुझे आपके साथ बैठे देख लिया तो फिर मेरा जीना मुश्किल हो जाएगा।
वह अब मुझे सोच में पड़ता नजर आया, लिहाजा मैंने उससे कहा कि बेहतर होगा कि आप कोई होटल बुक कर लीजिए जहाँ हम दोनों इत्मीनान से बात कर सकेंगे।
वह इस पर मान गया, कहा- चलिए होटल ही ले लेते हैं।
अब वह मुझे लेकर एक होटल में आया। रूम बुक करने के बाद हम दोनो कमरे में पहुँचे। यहाँ फिर उसने अपनी प्यार भरी बातें शुरू कर दी। इसके जवाब में मैं उसे अपने लटके-झटके दिखाती रही। बात-बात में मैं उसके शरीर को छूकर पास आने का आमंत्रण दे रही थी। काफी देर बाद उसे समझ में आया कि वह मुझे चोद सकता है तो तब वह भी मेरे चूचों पर पहले अनजाने में फिर मुझे बोलकर भी हाथ लगाने लगा। अब उसके चेहरे से सैक्स का तनाव नजर आने लगा।
मैंने भी उसकी जांघ में हाथ रखकर उसके लौड़े को पाने की चाहत दिखाई। इससे वह जोश में आ गया, खड़ा होकर मुझे अपने से चिपका लिया।
मैंने उसे इस पर भी लिफ्ट दी और उससे चिपककर उसके लौड़े को गर्म करने लगी। अब उसने अपनी पैन्ट उतारना शुरू कर दिया। तब भी मैंने उस पर अपना प्यार लुटाना जारी रखा, पर वह मादरचोद मुझे चोदने की इतनी हड़बड़ी में था कि उसने मुझे भी अपने पूरे कपड़े उतारने नहीं दिए। मेरी जींस व पैन्टी नीचे कर उसने मेरी चूत में अपना लंड डाला और थोड़ी सी देर ही हिलने पर उसका माल झड़ गया। काम निकालने के बाद वह अपना पैन्ट पहनने के लिए खड़ा हो गया।
मैंने उससे पूछा- अरे हो गया क्या आपका?
वह बोला- हाँ, तभी तो उठा हूँ।
मुझे उसकी ऐसी चुदाई पर गुस्सा तो बहुत आया पर उसके सीनियर होने का लिहाज कर अपने गुस्से का कड़वा घूंट पी तो लिया पर उससे पूछा- आप ‘एनेस्थेटिस्ट’ में स्पेशलाइजेशन कर रहे हैं क्या?
मैंने(लेखक) पूछा- यह क्या होता है?
साक्षी बोली- मेडिसिन का हमारा मेन कोर्स होता है। उसके बाद सब अपनी पसंद के अलग-अलग सब्जेक्ट लेते हैं। एनेस्थेटिस्ट वे होते हैं जो मरीजों को आपरेशन या इलाज के दौरान बेहोश करने का काम करते हैं। आपरेशन थियेटर में मरीज को एनेस्थिया देने की बात आपने सुनी होगी।
मैं बोला- हाँ, समझा। आगे क्या हुआ वह बताओ।
साक्षी बोली:
मेरे यह कहने पर वह आश्चर्यचकित हो गया और पूछा- हाँ, पर यह तुम्हे कैसे पता लगा।
मैंने कहा- तुमने अभी मेरी चूत में क्या डाला? डाला या नहीं डाला? यह मुझे पता ही नहीं चला।
सच में उसका आखिरी साथी साक्षी का नहीं अपना काम करके उठ खड़ा होने वाला निकला। उसकी बात सुनकर मेरी हंसी रूकने का नाम नहीं ले रही थी।
साक्षी बोली- वो साला डाक्टर बन तो गया हैं पर मेरा दावा है कि उसकी बीवी उसके ही कम्पाउंडर से चुदवाकर अपनी प्यास बुझाएगी। उसकी इस मजेदार आपबीती बताते तक हमारी चाय खत्म हो गई पर कहीं हम चिपके और खाली कप प्लेट लेने वह वेटर फिर आ ना जाए, इसका डर था तो बतौर एहतियात अपनी जगह से उठते हुए मैंने कहा- अब मैं फ्रेश होकर आता हूँ, तब होगा चुदाई का कार्यक्रम। साक्षी बोली- हाँ आ जाइए जल्दी से।
मैं तौलिया लेकर बाथरूम की ओर तेज कदमों से बढ़ लिया।
होटल में टायलेट व वाशिंगरूम एक साथ ही थे। अपना तौलिया व शेविंग किट लेकर वहाँ गया और जल्दी से फ्रेश होकर बाहर निकला। मैं तौलिया लपेटे ही था, अंडरवियर सहित बाकी सभी कपड़े वहीं पलंग पर ही छोड़कर गया था। बाहर आकर अपनी आदत के अनुसार शेविंग बाक्स से निकालकर कंघी की, फिर पहनने के लिए अपना अंडरवियर उठाया। साक्षी कमरे का दरवाजा भीतर से बंद करके बैठी थी, अब वह मेरे पास पहुँची, और बोली- अब कंट्रोल नहीं हो रहा हैं यार ! उनसे हमारी मुलाकात तो कराइए जिसे स्नेहा जी रोज अपनी चूत में लेती हैं और सीमा, श्रद्धा, श्वेता, पुष्पा, रीमा, सोनम, पायल सहित कई लड़कियों ने काम्प्लीमेंट्री में जिसका टेस्ट लिया है।
ऐसा बोलकर उसने मेरा तौलिया खींचकर पलंग पर फेंक दिया।
अब मैं पूरा नंगा वहाँ खड़ा था, मेरा लौड़ा भी अब अपने पूर्णाकार में आ गया। साक्षी का हाथ पकड़कर मैंने उसे अपनी ओर खींचा और बोला- लो, यह हाजिर है मेरी जान तुम्हारे लिए ! यह भी बहुत बेचैन था तुमसे मिलने को ! इसीलिए अपना घर और काम व वहाँ मिल रही चूत को छोड़कर तुम्हारी चत को चूमने यहाँ तक भागा आया।
मेरे लण्ड को घूरकर देखती हुई वह बोली- बहुत अच्छा लगा, इससे मिलकर मैं धन्य हो गई।
मैं बोला- यार, धन्य तो यह हुआ है। जैसे लोग किसी पवित्र नदी के पानी से स्नान करने दूर दूर से सफर करके वहाँ जाते हैं, वैसे ही मेरा लौड़ा भी तुम्हारी इस प्यारी चूत के पानी में नहाने के लिए इतना लंबा सफर करके यहाँ तक आया है। अब हम देर न करके इन्हें मिलने देते हैं।
वह मेरे सीने से चिपककर अपने हाथों से मेरे लण्ड को सहलाने लगी। मैंन उसका चेहरा उठाकर होंठों को अपने मुख में ले लिया। पहले नीचे के होंठ, फिर ऊपर के होंठों को अच्छे से चूसने के बाद जीभ को उसके मुँह में घुमाया, साथ ही उसके कुर्ते का हुक खोलकर इसे ऊपर उठाकर उतार कर पलंग पर ही डाल दिया। अब ब्रा को भी उतारकर वहीं डालने के बाद सलवार के नाड़े को खींचा।
साक्षी ने पैर उठाकर उसे अपनी चिकनी मरमरी जांघों से नीचे सरकाते हुए अपने बदन से अलग किया। उसके शरीर पर केवल पैन्टी शेष थी।
अब मेरे हाथ उसके वक्ष के उन्नत शिखरों को अपने पंजे के भीतर समेटने का असफल कोशिश करने लगे। पर उसके बड़े उरोज मेरी मुट्ठी में नहीं आ पाए। आकार में बड़े व कड़े होने के कारण जब ये मेरे हाथ में नहीं समाए तो मैं इसके चेहरे से अपना मुँह हटाकर साक्षी के वक्ष पर आया, इसके गुलाबी निप्पल, दूधिया तथा भरे व उभरे बदन पर बहुत सुंदर लग रहे थे, निप्पल उसके जोश के कारण तनकर खड़े हो गए थे।
मैंने निप्पल को अपने मुँह में भरा व चूसना शुरू किया। एक निप्पल मेरे मुँह में था, दूसरे को मैं सहला रहा था। थोड़ी देर बाद ही मैंने अपना हाथ नीचे किया, उसकी पैन्टी को नीचे कर मस्त उभरी हुई चूत पर हाथ फेरने लगा।
साक्षी की चूत एकदम चिकनी थी, बाल उसने आज ही साफ किए होंगे पर हाथ फेरने से ऐसा लग रहा था मानो यहाँ कभी बाल हुए ही नहीं हैं, न ही अब होंगे।
मैं वहीं घुटने मोड़कर बैठ गया। उसकी चूत सामान्य लड़कियों की चूत से ज्यादा फूली हुई थी। इतनी मस्त चूत देखकर मैं गदगद हो गया और अपना मुँह उसकी चूत में लगा दिया। चूत के ऊपरी हिस्से को जी भर कर चाटने के बाद नीचे छेद में जीभ डाली।
साक्षी भी पूरे मूड में थी, लिहाजा अपने हाथों से मेरा सिर पकड़कर बिस्तर पर आई, बिस्तर पर लेट गई और अपनी टांगें फैला दी। इससे उसकी चूत मुझे खुली मिल गई, लिहाजा इसे ऊपर से नीचे तक अच्छे से चाटा। उसकी चूत तो शुरू से ही गीली थी, चाटने से मुझे लग रहा था कि उससे पानी छूट रहा है, रज का स्वाद आ रहा था।
थोड़ी ही देर में उसकी सिसकती आवाज फूटी- ऊपर आओ ना जल्दी।
मुझे लगा कि साक्षी पूरी तरह से गरमा गई है, इसलिए जल्दी ही करना होगा। मैं अब उसकी चूत से अपनी जीभ रगड़ते हुए ऊपर की ओर बढ़ा, वह मेरे दोनों कंधों को पकड़कर ऊपर खींचने लगी। मैंने जीभ उसकी ठोड़ी से लेकर चेहरे पर घुमाई और अब लौड़े को उसकी चूत में ऊपर से नीचे तक रगड़ा, रगड़ने के बाद लौड़े को चूत के छेद पर लगाया।
साक्षी इतनी जल्दी में थी कि अब मेरे शाट लगाने का विलम्ब भी उससे बर्दाश्त नहीं हुआ, उसने नीचे से खुद ही उछाल भरी, इससे चूत के छेद से लगा से लगे लण्ड का सुपाड़ा थोड़ा सा भीतर हुआ।
साक्षी बोली- फाड़ दे इस मादरचोद को ! अंदर घुसा ना भोसड़ी के।
मैं बोला- घुसाता हूँ ना ! तेरी माँ की चूत ! अभी तो मेरे लण्ड का मुँह भी तेरी चूत में नहीं घुसा है।
इसी बीच मैंने एक जोर का शाट मारा, मुझे अहसास हुआ कि लण्ड का पूरा सुपाड़ा सहित कुछ और भाग उसकी चूत में समा गया है। इस शाट से वह उछली और बोली- अबे फट गई रे ! तू भोसड़ी के, थोड़ा आराम से चोद ना ! मुफ्त का माल है इसलिए मेरी चूत ही फाड़ डालेगा क्या बे गांडू?
वह आगे और कुछ बोले, इसके पहले ही मैंने उसके होंठों को अपने होंठों के बीच दबा लिया। नीचे उसे दर्द हो रहा होगा, इसलिए मैंने अपने चोदने की गति धीमी किया क्योंकि जब भी मैं अपने लण्ड को भीतर करता, तब वह अपने हाथ मेरे सीने में लगाकर मुझे करीब आने से रोकती, तथा अपनी चूत को पीछे करती। इसलिए मैंने प्रयास किया कि मेरा लण्ड जहाँ पर अभी है, उससे आगे अभी ना बढ़े। सो अपने झटकों की स्पीड एकदम कम करके मैंने चुदाई जारी रखी। थोड़ी ही देर में वह सामान्य हुई और उसके हाथ मेरे दोनों पुट्ठों पर पहुँचकर उसे अपने और करीब लाने का प्रयास करने लगे।
मैंने पूछा- अब ठीक है ना? डालूँ और अंदर?
वह बोली- अबे बहनचोद, पूरे मोहल्ले के लौड़े लाया है क्या साथ में? डाल इसकी मां को चोदूँ, मैं भी देखूँ, कितने लौड़ों को झेल सकती हैं मेरी फ़ुद्दी ! बाड़ दे पूरा !
मैं भी मस्त हो गया और अब शॉट लगाने शुरू कर दिए। साक्षी भी नीचे से अपनी कमर उठाकर मुझे अपनी स्पीड बढ़ाने का संकेत दे रही थी। लिहाजा थोड़ी देर में ही मेरा लण्ड करीब आधे से भी ज्यादा उसकी चूत में घुस गया। धक्के लगाने की गति हम दोनों में ही करीब समान थी।
जब मुझे लगा कि मेरा अब होने वाला है, मैंने साक्षी से कहा- मेरा बस होने ही वाला है।
वह बोली- बस मैं भी आ रही हूँ, पर बीच में रूकना मत।
कुछ ही देर में मेरा माल निकल पड़ा, तभी साक्षी भी मुझे अपने से कसकर दबा लिय और वह भी ठण्डी पड़ गई। हम दोनों यूं ही बिस्तर पर पड़े रहे।
कुछ पल बाद साक्षी बोली- उठिए, मुझे यूरिनल जाना है।
मैं एक तरफ़ हुआ और उसे बाहर निकलने दिया। वह आई, फिर मैं पेशाब करने गया। आकर बिस्तर पर हम यूं ही नंगे पड़े रहे।
मैंने उससे पूछा- दर्द हुआ क्या?
वह बोली- अब तक मैंने जितनों से चुदवाया है ना, आपका लौड़ा उन सभी से मोटा है। पर मैंने सोचा कि जैसे उन लोगों का मैंने आराम से ले लिया, वैसे ही इसे भी ले लूंगी, पर यह बहुत मादरचोद लण्ड है। साला दर्द भी दिया और मजा भी।
मैं बोला- हाँ, मुझसे भी गलती हो गई, कोई तेल या क्रीम लगा लेनी थी पहले मुझे। पर शुरू में तेरी चूत से रज निकलने लगा था, सो
मुझे लगा कि चिकनाई आ गई होगी पर यह बहनचोद अभी रमां नहीं हुई है ना। हमारी साक्षी अल्हड़ ही है।
वह बोली- हाँ पढ़ाई में भी मेरा ध्यान चूत को टाइट रखने के तरीकों पर ही ज्यादा लगा रहता है ताकि मुझे जो चोदे, जब चोदे यही लगे कि क्या टाइट माल है। यानि ऐसा लगना चाहिए कि मेरी सील भी अभी ही टूटी है। क्यों आपको लगा ना ऐसा?
मैं बोला- हाँ, तभी तो मैंने तुम्हें दर्द ना हो यह सोचकर मैंने अपने लण्ड को आधा ही तुम्हारी चूत में डाला।
इस पर वह बोली- पूरा डालना था ना भोसड़ी के। आधा लण्ड बाहर रखकर तुमने आधा ही मजा लिया, और आधा ही दिया।
मैं बोला- अए बहनचोद, जब डाल रहा था, तब तो तेरी गाण्ड फट रही थी। अब आधा मजा आया तो मैं क्या करूँ?
वह बोली- अबे गांडू, छोड़ ना ये आधे मजे की बात ! चल अभी खाना खाकर फिर लग जाते हैं चुदाई में। जितना अंदर डाल सकता हो डाल लेना।
मैं बोला- ठीक है फिर ! मैं तो सोच रहा था कि अभी तुरंत ही चोदने को कहोगी।
वह बोली- अरे नहीं राजा, खाली चुदाई ही करना हो तो अलग बात है, लग जाते हैं अभी ! पर हमें चुदाई का मजा लेना है। इसलिए जब शरीर परमिशन दे तब ही करेंगे। ठीक हैं ना?
मैं बोला- ठीक है, जैसा तुम कहो। खाना कहाँ खाना है?
वह बोली- खाना खाने कहीं जाने की जरूरत नहीं हैं डीयर, यहीं लाने के लिए वेटर को बोलते हैं।
यह बोलकर उसने वेटर को बुलाने के लिए बेल बजाई। तब तक हम दोनों कपड़े पहनकर तैयार हो गए।
कुछ देर में ही वेटर आया। उसे हमने खाने का आर्डर दिया। अब दोनों पलंग पर ही चिपक कर बैठ गए।
मैंने कहा- और सुनाओ कोई मजेदार बात?
वह कुछ देर सोचकर बोली- मैं एक कहानी टाइम पास के लिए सुनाती हूँ। इसे मुझे मेरी एक सहेली ने सुनाया है। यह कहानी हमारे कालेज में भी बहुत पापुलर है।
मैं बोला- जी, सुनाइए।
साक्षी बोली- एक राजा की पत्नी उसे चोदने नहीं देती थी। परेशान राजा नदी के किनारे जाता और वहाँ रहने वाली बत्तख से कहता- “आओ बत्तख प्यारी, बैठो जांघ पर हमारी, खाओ पान सुपारी !”
उसकी आवाज सुनकर बत्तख आ जाती, तब राजा बत्तख से…
उसकी कहानी तो सामान्य थी, पर साक्षी के सुनाने के तरीके ने कहानी को बहुत मजेदार बना दिया। हम कुछ देर इसी तरह की बात करते रहे, तभी वेटर ने रूम में ही हमारा खाना ला दिया।
हम दोनों ने साथ ही खाना खाया। मैंने उससे हॉस्टल के बारे में पूछा, तो वह बोली- मैंने वार्डन मैम को बताया कि मेरे एक रिश्तेदार आए हैं, उनसे मिलने जा रही हूँ, पर रात को मुझे हॉस्टल में ही जाना होगा।
मैं बोला- हाँ यह बात तो है, रात को तुम्हें हॉस्टल में जाना ही होगा। पर मुझे एक बात बताओ साक्षी, तुम गाली बहुत देती हो, इसकी लत तुम्हें कैसे लगी?
वह बोली- अबे मादरजात ! गाली देना कोई लत थोड़े ही है। इससे मेरी उत्तेजना बढ़ती है। गाली सुनना व देना मुझे अच्छा लगता है। जो मुझे गाली नहीं देते है वो मुझे हिजड़े-गांडू लगते हैं।
मैं बोला- यानि साक्षी से बात करते समय मुँह में गालियाँ भरकर रखना होगा। कब उसे उत्तेजित होने का मूड हो, ताकि उसे गाली सुनाकर उसका मूड बनाया जा सके।
साक्षी बोली- खाली गाली ही नहीं, खूब गंदी बातें करना भी मुझे अच्छा लगता है।
“खूब गंदी बात यानि?” मैंने पूछा।
तो वह बोली- अच्छा आप बताओ आपने किसी को चुदते हुए देखा है?
मैं बोला- हाँ कई लड़कियों को चुदते हुए देखा है।
हंसते हुए मैंने कहा- जिसे भी मैंने चोदा है, जैसे अभी तुम्हें, तो उन्हें चुदते हुए तो देखा ही ना।
“अबे मादरजात ऐसे नहीं, किसी दूसरे को?”
मैंने कहा- वह तो मुझे ध्यान नहीं।
यह सुनकर वह बोली- बे साले चूतिया ! रह गए ना यूं ही झण्डू बाम?
मैं बोला- अच्छा, तुमने किस किस को चुदते हुए देखा है? यह बताओ तो?
वह बोली- कई लोगों को !
मैंने पूछा- जैसे?
वह बोली- एक तो मेरी वार्डन मैम अपने पुराने प्रेमी से चुदवाती थी, उनको देखा है, और मेरी एक सहेली ने हॉस्टल में ही अपने बॉयफ्रेंड से चुदवाया था थी, और मुझे ‘वहाँ कोई आ ना जाए’ इसकी चौकीदारी करते हुए वहीं आसपास ही डटे रहना पड़ा। तब मैंने अपनी नजरें कोई आ रहा हैं या नहीं इस पर लगाने के बदले अपनी सहेली को ही चुदते हुए देखते रही।
मैंने पूछा- किसकी चुदाई बढ़िया रही?
वह बोली- दोनों ही चुदाइयाँ मस्त रही ! मजा आ गया इन्हें देखकर।
हम लोगों के बीच इसी तरह की मसालेदार बात चलती रही।
कुछ देर बाद साक्षी बोली- कुछ असर हुआ या नहीं?
मैं समझ नहीं पाया, सो पूछा- किसका असर?
वह बोली- अरे लौड़े की गाण्ड में कुछ दम आया क्या?
मैं बोला- यार तू भी ना मादरचोद, एकदम कामचलाऊ टाइप की बात कर रही है। यानि जब खुद को नहीं चुदवाना है, तब मूड बनाकर चुदाई करेंगे, कहती है और जब घुसेड़ने की इच्छा हो रही है तब असर है या नहीं, पूछ रही है।
यह बोलकर मैं हंसा और कपड़े उतारने के लिए बिस्तर से उठा।
वह भी हंसने लगी, बोली- चल चुदवा लेती हूँ तेरे से ! नहीं तो बाद में मैं बात करने के लिए फोन करूँगी तो ‘काम से गए हैं या बाद में बात करता हूँ’ का उत्तर सुनाई पड़ेगा।
यह बोलकर वह भी उठकर कपड़े उतारने लगी। कपड़े उतारकर मैं साक्षी के पास पहुँचा, वह भी अपना सलवार कुर्ता उतार चुकी थी और ब्रा उतारने के लिए हाथ पीछे किए ही थे, तभी मैंने उसको अपने आगोश में ले लिया।
वह बोली- अबे भोसड़ी के ! अपनी कुतिया को नंगी तो हो जाने दे या मेरी चड्डी फाड़कर डालेगा अपना लंड?
मैंने उसकी कोहनी के थोड़ा नीचे अपने होंठ लगाए पर प्यार उसके बगल तक करता आया। ब्रा उतारकर उसने नीचे फेंकी और अपने एक हाथ को पूरा ऊपर कर लिया। इससे मुझसे उसकी पूरी बगल चाटने को खुली मिल गई।
उसे पलंग की ओर धकेलकर मैंने उसे लेटने का संकेत दिया। वह भी बिस्तर पर आई और वैसे ही लेट गई। उसने अपना हाथ ऊपर ही किया हुआ था। लिहाजा मैंने उसकी बगलों को खूब चाटा।
हाँ ! उसे यहाँ चाटने से गुदगुदी नहीं हो रही थी, यह मेरे लिए आश्चर्य की बात रही।
तो साक्षी की चूत का स्वाद तो मेरे लौड़े ने ले लिया है, पर जैसा उसने भी कहा था कि लौड़े को पूरा घुसेड़ना था। जबकि मैं उसे तकलीफ ना हो, इसलिए उसकी पहली चुदाई ज्यादा वहशी तरीके से नहीं की। पर अब जब उसने जमकर चुदने के लिए सहमति दे दी है तो फिर यदि अब उसे जमकर नहीं चोदा तो मैं ही उससे चूतिया कहा जाऊँगा।
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Sextortion Scam Stating Xvideos Was Hacked to Record You Through Webcam
Sextortion Scam Stating Xvideos Was Hacked to Record You Through Webcam
![[Image: image09c7c0261f5322ec.png]](http://picsbees.com/images/2019/03/17/image09c7c0261f5322ec.png)
A sextortion scam variant is going around that states the popular adult site called Xvideos.com was hacked to include malicious script that records a visitor through their webcam and sends it to the hacker. The scam emails also states that this script was able to connect back to the visitors computer to steal their data and contacts.
This variant of the sextortion scam has been under way for about a month now, but we first learned about last night when a reader contacted us to see if it was real. Like previous variants, this scam email includes a user's old password obtained from data breaches and threatens to send videos of the recipients in compromising activities unless they send the attackers a bitcoin payment of $969.
This is, though, the first time we have seen one using the hacked adult site angle and it seems to be working as the user was concerned it may be real.
The full text of this sextortion can be read below:
xxx is your pass. Lets get straight to purpose. Neither anyone has paid me to check about you. You do not know me and you are most likely wondering why you are getting this e-PM?
Well, i setup a software on the X video clips (porn material) web site and you know what, you visited this site to have fun (you know what i mean). When you were watching videos, your browser began functioning as a RDP with a key logger which gave me access to your display and also web camera. after that, my software program gathered all your contacts from your Messenger, FB, as well as emailaccount. Next i made a double-screen video. 1st part displays the video you were viewing (you've got a good taste lol . . .), and 2nd part shows the recording of your web camera, yeah its you.
You have got just two possibilities. Lets read these types of solutions in aspects:
First solution is to skip this message. in this instance, i most certainly will send your actual video clip to each of your your personal contacts and also think about about the humiliation you will definitely get. and consequently in case you are in an affair, exactly how it will affect?
Next option would be to give me USD 969. We will think of it as a donation. Subsequently, i will asap delete your videotape. You could keep going on your daily life like this never occurred and you would never hear back again from me.
You will make the payment via Bitcoin (if you don't know this, search for 'how to buy bitcoin' in Google).
BTC address to send to: 18z5c6TjLUosqPTEnm6q7Q2EVNgbCy16Td
[CaSe-sensitive, copy and paste it]
if you have been making plans for going to the cop, look, this message can not be traced back to me. I have dealt with my moves. i am not trying to charge you much, i just want to be compensated. PM if i don't get the bitcoin?, i will definately send out your video recording to all of your contacts including relatives, co-workers, and many others. Nonetheless, if i do get paid, i'll erase the video immediately. If you need proof, reply Yup! and i will certainly send out your video recording to your 6 contacts. it is a nonnegotiable offer thus don't waste my personal time and yours by responding to this message.
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The bitcoin address included in this email, 18z5c6TjLUosqPTEnm6q7Q2EVNgbCy16Td, has been reported being used in sextortion scams starting in early January 2019. At this time it has received 11 transactions for approximately .95 bitcoins. This equates to 3,260.52 dollars.
![[Image: image515ae0ef8459ca7c.png]](http://picsbees.com/images/2019/03/17/image515ae0ef8459ca7c.png)
As these scams have been extremely profitable, with attackers earning as much as 50k dollars in a week with little or not cost to spam them out, we should not expect to see them stop any time soon.
While these emails may appear real and scary enough to make you want to send a payment, it is important that recipients understand that this is a scam and you should just delete these emails if you receive them. Even worse, some of these sextortion scams include links or attachments to supposed samples of videos they made of you.
Do not open these attachments as they have installed other malware such as the GandCrab Ransomware and information stealing Trojans in the past.
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Source:-Bleeping-Computers
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तड़पती जवानी
नीलिमा नाम है उसका। बहुत ही खूबसूरत जैसे कोई अप्सरा ! शरीर का एक एक अंग जैसे किसी सांचे में ढाला गया हो। जो एक बार देखे तो बस उसी का होकर रह जाए। गोरा-चिट्टा रंग, लम्बा कद, दिल को हिला देने वाली मस्त मस्त चूचियाँ, पतली कमर और फिर शानदार गोल गोल गाण्ड जैसे भगवान ने दो चिकने घड़े लगा दिए हों।
बात तब की है जब मेरी तबादला दिल्ली से करनाल हरियाणा में हो गया। करनाल मेरा देखा-भाला शहर था। मेरे कुछ मित्र भी पहले से ही यहाँ रहते थे। मैं कुछ दिन वहाँ गेस्टहाउस में रहा और फिर एक किराए का कमरा ले लिया। आपको बता दूँ करनाल में मेरे भाई की ससुराल भी है। भाभी के घर वालों ने बहुत जोर लगाया कि मैं उनके घर पर रुक जाऊँ पर मुझे यह ठीक नहीं लगा क्योंकि मेरी जॉब घूमने फिरने की थी और फिर मेरा आने-जाने और खाने-पीने का कोई वक्त नहीं था।
आखिर कमरा लेने के बाद जिन्दगी अपनी गति से चलने लगी। जैसे कि आपको पता ही है कि दिल्ली में तो मेरे मज़े थे। मस्त चूत चोदने को मिल रही थी। मज़ा ही मज़ा था। पर जब से करनाल आया था चूत के दर्शन ही नहीं हुए थे। एक बार मेरे एक दोस्त चूत का इंतजाम किया भी पर वो मुझे पसंद नहीं आई क्योंकि रंडी चोदना मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं। अपनी तो सोच है कि शिकार करके खाने में मज़ा ही कुछ और है।
ऐसे ही एक महीने से ज्यादा गुज़र गया। अब मुझ से रहा नहीं जा रहा था और मेरी आँखें अब सिर्फ और सिर्फ चूत की तलाश में रहती। तभी मेरी भाभी अपने मायके में आई तो उसने मुझे भी बुला लिया। मैं जाना तो नहीं चाहता था पर फिर जब उसने ज्यादा जिद की तो मैं शाम को चला गया।
मैंने जाकर घण्टी बजाई तो उस क़यामत ने दरवाज़ा खोला जिसका नाम नीलिमा है। उसको देखा तो मैं देखता ही रह गया। नीलिमा ने मुझे दो बार अंदर आने को कहा पर मैं तो जैसे किसी जादू में बंध गया था बस एकटक उसी को देख रहा था। उसकी जवानी, मोहक हँसी से मैं जैसे स्वपन से बाहर आया। वो मेरी तरफ देख कर हँस रही थी। मैं झेंप गया। मेरी भी हँसी छूट गई।
मैं पहले भी भाभी के मायके आया था पर मैंने इस क़यामत को पहले कभी नहीं देखा था। वो बिल्कुल अनजान थी मेरे लिए।
वो मुझे बैठा कर अंदर चली गई और मैं बैठा सोचता रहा कि आखिर यह है कौन?
तभी भाभी और उसकी मम्मी आई और फिर बातों का सिलसिला चल निकला। कुछ देर बाद वो चाय नाश्ता लेकर कर दुबारा आई। जैसे ही मेरी उससे नज़र मिली मेरी हँसी छूट गई तो जवाब में वो भी हल्के से मुस्कुरा दी। कुछ देर बाद मौका मिलने पर मैंने उसके बारे में भाभी से पूछा तो उसने बताया कि वो उसके चाचा के लड़के की पत्नी है। मैंने तारीफ की और बात आगे चली तो उसने बताया कि वो तनहा है क्योंकि उसका पति करीब एक साल से इटली गया हुआ है और वही काम करता है।
करनाल आने के बाद पहली बार किसी के लिए दिल की धड़कनें तेज हुई थी। भाभी ने मुझे रात को अपने घर पर ही रोक लिया। रात को खाना खाने के बाद सब लोग बैठ कर बातें करने लगे तो नीलिमा भी हमारे पास आ कर बैठ गई। फिर जो हँसी मजाक शुरू हुआ तो समय का पता ही नहीं लगा। नीलिमा की खिलखिलाती हँसी, जवानी हर बार मेरे दिल के तारों को झंझोड़ देती। मन में बार बार उसके पति के लिए गाली निकल रही थी कि इतनी खूबसूरत बीवी को छोड़ कर वो इटली क्या माँ चुदवाने गया है?
जैसे मैं नीलिमा की तरफ आकर्षित हो रहा था तो मुझे वो भी अपनी तरफ आकर्षित होती महसूस हुई क्योंकि अब हमारी नजरें एक दूसरे से बार बार टकरा रही थी, यह मेरे लिए शुभ संकेत था।
रात को बातें करते करते कब सो गए समय का पता ही नहीं चला। सुबह नीलिमा ने ही गर्मागर्म चाय के साथ गुड मोर्निंग बोला। जैसे ही मेरी नज़र नीलिमा से मिली तो उसने भी एक मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा। दिल की तड़प अब इतनी बढ़ गई थी कि दिल कर रहा था कि अभी बिस्तर पर खींच लूँ और चोद डालूँ पर अभी आम कच्चा था।
चाय देकर नीलिमा चली गई और मैं दरवाजे की तरफ देखता ही रह गया। जब वो जा रही थी तो मेरी नज़र उसके मटकते कूल्हों और बलखाती कमर से हट ही नहीं पाई।
करीब आधे घंटे के बाद नीलिमा एक बार फिर मेरे कमरे में आई और साफ़ तौलिया देकर बोली- नहा लो, नाश्ता तैयार है।
जब वो कह कर जाने लगी तो मैंने थोड़ा आगे बढ़ने की सोची और नीलिमा की तारीफ करते हुए कह ही दिया- नीलिमा… तुम बहुत खूबसूरत हो !
नीलिमा एकदम से मेरी तरफ घूमी और अवाक् सी मेरी तरफ देखने लगी और फिर बिना कुछ कहे ही कमरे से चली गई। मैं थोड़ा डर गया पर फिर सोचा कि कोई भी औरत अपनी तारीफ से कभी नाराज नहीं हो सकती।
मैं भी नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया और कुछ देर बाद तैयार होकर बाहर आया तो भाभी अपने मम्मी पापा के साथ नाश्ते की मेज पर मेरा इन्तजार कर रही थी। नीलिमा सबको नाश्ता परोस रही थी। मैंने नाश्ते की तारीफ की तो भाभी ने बताया कि नीलिमा ने बनाया है तो मैंने तारीफ में एक दो कशीदे और पढ़ दिए। हर निवाले के साथ वाह वाह किया तो नीलिमा के चेहरे पर भी एक मुस्कराहट तैर गई।
नाश्ता करने के बाद भाभी के मम्मी-पापा चले गए, उनको किसी रिश्तेदारी में जाना था। भाभी को भी उन्होंने इसीलिए बुलाया था ताकि नीलिमा अकेली ना रहे। नीलिमा थी तो भाभी के चाचा के बेटे की बहू पर क्योंकि भाभी के चाचा-चाची भी उसी रिश्तेदारी में गए हुए थे जिसमे भाभी के मम्मी-पापा जा रहे थे तो नीलिमा भाभी के घर पर ही रह रही थी।
भाभी के मम्मी-पापा के जाने के बाद घर में सिर्फ भाभी, नीलिमा और मैं ही रह गए थे। मेरी भी ड्यूटी का वक्त हो गया था, भाभी बोली- अगर छुट्टी मिलती हो तो रुक जाओ।
सच कहूँ तो दिल तो मेरा भी नहीं था जाने का। मैंने छुट्टी ना मिलने की बात कह कर जाने की तैयारी की तो कुछ देर में नीलिमा मेरे पास कमरे में आई और थोड़े दबे से स्वर में मुझे रुकने के लिए कहने लगी। मेरा तो जैसे दिल उछल कर बाहर गिरने को हो गया।
मैंने अब बिल्कुल भी देर नहीं की और झट से अपने बॉस को फोन करके छुट्टी ले ली। पर मैंने बताया किसी को भी नहीं कि मैंने छुट्टी ले ली है।
फ्री होने के बाद हम तीनों कमरे में बैठ कर बातें करने लगे तो नीलिमा के पति की बातें चल निकली। पिया से बिछोड़े का दर्द नीलिमा की आँखों में नज़र आने लगा था। और फिर बातों ही बातों में पिया से मिलन की तड़प नीलिमा की जुबान पर भी आ गई।
तभी भाभी कुछ देर के लिए बाहर गई तो मैंने नीलिमा को कुरेदते हुए पूछा- नीलिमा… दिन तो चलो काम में निकल जाता होगा पर तुम्हारी रात कैसे कटती होगी? तुम्हारी जवानी?
यह बात आग में घी का काम कर गई और नीलिमा फफक पड़ी और मेरे कंधे से लग कर रोने लगी। मैंने उसके चेहरे को ऊपर किया और उसके आँसू पौंछे।उसके गोरे गोरे और चिकने गालों पर हाथ फेरते फेरते मेरी उंगली उसके होंठों को छूने लगी। नीलिमा की आँखें बंद हो गई थी। मैंने भी मौका देखते हुए अपनी साँसें उसकी साँसों में घोलनी शुरू कर दी और उसके बिल्कुल नजदीक आ गया। इतना नजदीक कि मेरे होंठों और उसको होंठों के बीच की दूरी लगभग खत्म हो गई। अब अपने आप को रोकना मेरे लिए मुश्किल था और मैंने धीरे से उसके होंठों को अपने होंठों से छू लिया। होंठ मिलते ही उसने आँखें खोली और दूर होने की कोशिश की पर तब तक मेरे होंठों ने उसके होंठों पर अपने प्यार की मोहर लगा दी थी।
यह एक छोटा सा ‘चुम्बन’ दिल के अरमानों को भड़काने के लिए काफी था।
‘नहीं राज… दीदी आ जायेगी और फिर यह ठीक नहीं है।’ यह कह कर नीलिमा मेरे पास से उठ कर एक तरफ खड़ी हो गई।
मैं भी उठा और नीलिमा के पीछे जाकर खड़ा हो गया और उसकी कमर को पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचा। उसने छुटने का हल्का सा प्रयास किया। मैंने मेरे होंठ उसकी गर्दन पर रख दिए तो वो सिहर उठी। अब मैंने उसको कस कर अपनी बाहों में भर लिया था और उसकी गर्दन और कान की लटकन पर अपने होंठों से गर्मी दे रहा था। फिर मैंने उसको घुमा कर दीवार के सहारे खड़ा किया और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए। उसके रसीले होंठों का रसपान करते हुए मैं सब कुछ भूल गया। उसका मक्खन जैसा मुलायम बदन अब मेरी बाहों में था।
होंठों का रसपान करते करते मेरे हाथ उसकी चूचियों का मर्दन करने लगे। नीलिमा अब गर्म हो गई थी। होती भी क्यों ना आखिर इतने समय के बाद किसी मर्द का हाथ उसके बदन पर था।
तभी कुछ खटपट हुई तो हम दोनों वासना के भंवर से बाहर आये। तभी भाभी अंदर आई। भाभी ने शायद हमें देख लिया था इसीलिए उसने कुछ खटपट की थी।
नीलिमा अब उठ कर चली गई थी। आप समझ सकते है कि वो कहाँ गई होगी। जी बिल्कुल सही, वो बाथरूम में घुस गई थी शायद अपनी आग उंगली से ठण्डी करने।
नीलिमा के जाने के कुछ देर बाद भाभी ने मेरे और नीलिमा के बीच चल रही चूमाचाटी के बारे में पूछा तो एक बार तो मैं घबरा गया पर फिर हिम्मत करके बोला– भाभी… उसको मेरी जरुरत है।
‘वो तो ठीक है पर पति के होते दूसरे से सम्बन्ध, अपना समाज इसकी इजाजत नहीं देता देवर जी !’
‘पर पति है कहाँ..? यह बेचारी पिछले एक साल से तड़प रही है… क्या सुख दिया पति ने इसको?’
और फिर भाभी और मेरे बीच एक बहस सी छिड़ गई। जिसमे जीत मेरी ही हुई। काफी मिन्नतों के बाद भाभी मेरी मदद करने को राजी हुई।
भाभी ने मुझे दोपहर तक इन्तजार करने को कहा। पर मैं इन्तजार नहीं कर पा रहा था। तभी नीलिमा कमरे में आ गई तो भाभी ने मेरी तरफ आँख मारते हुए कहा नीलिमा से कहा– नीलिमाम मैं जरा अपनी सहेली संध्या के घर जा रही हूँ, एक घंटे तक आ जाऊँगी।’
फिर मुझे देखते हुए कहा– राज… नीलिमा घर पर अकेली है, प्लीज़ तुम थोड़ा रुक जाना, मैं बस एक घंटे में आ जाऊँगी।
मैंने हामी भर दी तो भाभी करीब दस मिनट के बाद तैयार होकर अपनी सहेली के घर चली गई।
भाभी के जाने के दो मिनट के बाद नीलिमा कमरे में आई तो मैंने हाथ पकड़ कर नीलिमा को अपनी तरफ खींच लिया।
‘कोई आ जाएगा राज… और अगर कोई आ गया तो बहुत बदनामी होगी… प्लीज़ मत करो ऐसा !’
मैंने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं। मैंने उसको अपने ऊपर खींच लिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। थोड़ा से विरोध के बाद नीलिमा भी सहयोग करने लगी। फिर तो हम दोनों मस्त होकर एक दूसरे के होंठ चूसने लगे और बदन को सहलाने लगे।
मैंने अब नीलिमा को उठाया और बेडरूम में ले गया, उसको बिस्तर पर लेटा कर मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। जब सिर्फ अंडरवियर रह गया तो मैं नीलिमा के पास जाकर बैठ गया और उसके कपड़े उतारने लगा। नीलिमा ने शर्म के मारे आँखे बंद कर रखी थी। मैंने उसके ब्लाउज के हुक खोल दिए तो नीचे ब्रा में कसी उसकी चूचियाँ जैसे ब्रा को फाड़ कर बाहर आने को बेचैन थी। वो भी पूरी तन चुकी थी जिस कारण ब्रा चूचियाँ पर टाईट हो गई थी।
मैंने नीलिमा को बिस्तर से नीचे खड़ा किया और फिर उसके सारे कपड़े उतार दिए। जब ब्रा से चूचियाँ निकाली तो मेरा लण्ड फटने को हो गया। मैंने इतनी मस्त चूचियाँ पहली बार देखी थी। एकदम ऊपर को तनी हुई, चुचूक बिल्कुल कड़क खड़े हुए। देखते ही मैं उन पर टूट पड़ा और हाथों में लेकर उनका मर्दन करने लगा।
फिर जैसे ही मैंने उसके निप्पल को अपने मुँह में लिया तो नीलिमा सीत्कार उठी। मैंने चूची को चूसते-चूसते एक हाथ को उसकी चूत पर रखा तो देखा नीलिमा बिल्कुल पानी पानी हो रही थी। शायद वो अति-उत्तेजना में झड़ गई थी।
कुछ देर चूचियों का रसपान करने के बाद मैंने नीलिमा को बिस्तर पर लेटा दिया और उसकी टांगों के बीच बैठ कर उसकी गुलाबी और रस से सराबोर लबों वाली चूत पर अपने होंठ रख दिए। नीलिमा की चूत का स्वाद सचमुच लाजवाब था। मैं जीभ को गोल गोल घुमा कर नीलिमा की चूत चाटने लगा। नीलिमा की सीत्कार निकलने लगी थी। मैं अपने हाथों से उसकी चूचियाँ मसल रहा था और जीभ से उसकी चूत चाट रहा था, नीलिमा मेरा सर पकड़ पकड़ कर अपनी चूत पर दबा रही थी। वो अब पूरी गर्म हो चुकी थी।
तभी मुझे नीलिमा का हाथ अपने लण्ड पर महसूस हुआ। वो बहुत बेचैनी के साथ मेरे लण्ड को ढूँढ रही थी। मैंने अपना लण्ड निकल कर नीलिमा के सामने कर दिया। लण्ड को देखते ही नीलिमा के मुँह से निकला– हाय राम… इतना मोटा !
और अगले ही पल उसने मेरे लण्ड को अपने होंठों के बीच मुँह में कैद कर लिया और मस्त होकर चूसने लगी, बिल्कुल वैसे जैसे कोई बच्चा आइसक्रीम के पिंघल जाने के डर से जल्दी जल्दी चूसता है। लण्ड बिल्कुल कड़क हो चुका था।
‘राज, अब और इन्तजार मत करवाओ… नहीं तो मर जाऊँगी !’
मैं भी अब और रुकना नहीं चाहता था तो बस टिका दिया अपना लण्ड नीलिमा की चूत के छेद पर। लण्ड की गर्मी चूत पर मिलते ही नीलिमा ने अपनी बाहें मेरी कमर पर कस दी। मैंने भी दबाव बनाते हुए अपना लण्ड नीलिमा की चूत में घुसाना शुरू कर दिया। नीलिमा की चूत बहुत कसी थी। मेरा मोटा सुपारा उसकी चूत के मुहाने पर ही जैसे फंस सा गया था। जब दबाव के साथ लण्ड अंदर नहीं घुसा तो मैंने थोड़ा सा ऊपर को उचक कर एक जोरदार धक्का लगाया और मेरे लण्ड का सुपाड़ा नीलिमा की चूत में घुस गया।
सुपाड़ा अंदर घुसते ही नीलिमा चीख उठी, उसकी चूत बहुत तंग थी, उसकी आँखों से आँसू बह निकले थे।
मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए और उसकी चूची को सहलाने लगा और निप्पल को उँगलियों में पकड़ कर मसलने लगा। मैंने एक बार फिर अपने चूतड़ ऊपर की तरफ उचकाए और फिर से एक जोरदार धक्का नीलिमा की चूत पर लगा दिया। मेरा मोटा लण्ड उसकी चूत को लगभग चीरता हुआ करीब दो इंच तक अंदर घुस गया। मैंने रुकना उचित नहीं समझा और फिर ताबड़तोड़ दो-तीन धक्के एक साथ लगा दिए। लण्ड आधे से ज्यादा नीलिमा की चूत के अंदर था।
नीलिमा चीख उठी- मर गईईई… ईईईईई… फट गयीई मेरी तो…!!
मैं नीलिमा की एक चूची को मुँह में लेकर चूसने लगा और दूसरी को हाथ में पकड़ कर सहलाने लगा। वो दर्द से छटपटा रही थी। मैं कुछ देर ऐसे ही पड़ा रहा तो नीलिमा भी शांत हो गई और फिर हल्के हल्के अपनी गाण्ड उछालने लगी। सिग्नल मिलते ही मैंने भी दुबारा धक्के लगाने शुरू कर दिए। धीरे धीरे मैंने पूरा लण्ड नीलिमा की चूत में डाल दिया और अंदर-बाहर करने लगा। लण्ड पूरा टाईट जा रहा था चूत में। सच में बहुत कसी हुई चूत थी नीलिमा की।
थोड़ी देर के बाद लण्ड ने चूत में अपनी जगह बन ली और नीलिमा की चूत ने भी ढेर सारा पानी छोड़ दिया तो लण्ड आराम से चूत में अंदर-बाहर होने लगा। नीलिमा की मस्ती भरी आहें अब कमरे के माहौल को मादक बना रही थी। अब तो नीलिमा गाण्ड उठा उठा कर लण्ड को अपनी चूत में ले रही थी। करीब दस मिनट की चुदाई के बाद नीलिमा झड़ गई।
मैंने अब नीलिमा को घोड़ी बनाया और पीछे से लण्ड उसकी चूत में डाल दिया और जोरदार धक्कों के साथ उसकी चुदाई करने लगा। करीब आधे घंटे तक चुदाई चलती रही और फिर मेरा लण्ड भी अपने रस से नीलिमा की चूत को सराबोर करने को बेचैन हो उठा। मैंने नीलिमा के कूल्हों को कस कर पकड़ा और पूरी गति के साथ चुदाई करने लगा। कुछ ही धक्कों के बाद मेरा वीर्य नीलिमा की चूत को भरने लगा। वीर्य की गर्मी मिलते ही वो फ़िर झड़ गई। वीर्य अब नीलिमा की चूत से बाहर आने लगा था।
हम दोनों निढाल होकर लेट गए। दोनों ही पसीने से तरबतर थे। नीलिमा मुझ से लिपटी हुई थी। उसने मुझे ऐसे जकड़ रखा था जैसे मुझे कभी भी अपने से अलग ना करना चाहती हो।
नीलिमा ने मुझे बताया कि उसके पति संजय के इटली में होने को देखते हुए उसके घर वालों ने उसकी शादी संजय से की थी पर संजय बस एक महीना ही उसके पास रहा और फिर इटली यह कह कर चला गया कि कुछ ही दिन में मुझे वह बुला लेगा। बस तभी से वो पिया मिलना की आस लगाए संजय का इन्तजार कर रही है।
मैंने उसे सांत्वना दी और शाहरुख खान का डायलॉग चिपका दिया- ‘मैं हूँ ना…!’
चुदाई के बाद हम दोनों एक साथ बाथरूम में गए और अपने आप को साफ़ किया। तभी मेरे मोबाइल पर भाभी का फोन आया।
भाभी ने पूछा– कुछ किया या नहीं?
मैंने भाभी को फतह की जानकारी दे दी। भाभी बहुत खुश हुई। मैंने भाभी को कुछ देर और ना आने को कहा तो उसने मुझे बताया कि वो शाम को आएगी तब तक मज़े करो।
बस फिर क्या था मैंने नीलिमा को पकड़ कर फिर से बिस्तर पर डाल लिया और फिर तो जब तक भाभी का फोन नहीं आया, मैंने और नीलिमा ने तीन बार चुदाई के मज़े लिए।
फिर रात को भी मैं वहीं रुका और सारी रात भाभी की मेहरबानी से मैं और नीलिमा मस्ती के रस से सराबोर रहे, पूरी रात चुदाई-कार्यक्रम में गुज़र गई। सुबह तक नीलिमा की चूत सूज कर पावरोटी हो चुकी थी।
जब तक बाकी परिवार वाले आएँ, मैं ड्यूटी के बाद भाभी के मायके में चला जाता और भाभी की मेहरबानी से नीलिमा जैसी अप्सरा के साथ मस्ती करता।परिवार वालों के आ जाने के बाद भाभी ने मेरा रहने का प्रबन्ध अपने मायके में ही करवा दिया और फिर तो जब भी मौका मिलता मैं और नीलिमा मस्ती के सागर में डुबकियाँ लगाने से नहीं चूकते थे।
कहानी कैसी लगी जरूर बताना…
बात तब की है जब मेरी तबादला दिल्ली से करनाल हरियाणा में हो गया। करनाल मेरा देखा-भाला शहर था। मेरे कुछ मित्र भी पहले से ही यहाँ रहते थे। मैं कुछ दिन वहाँ गेस्टहाउस में रहा और फिर एक किराए का कमरा ले लिया। आपको बता दूँ करनाल में मेरे भाई की ससुराल भी है। भाभी के घर वालों ने बहुत जोर लगाया कि मैं उनके घर पर रुक जाऊँ पर मुझे यह ठीक नहीं लगा क्योंकि मेरी जॉब घूमने फिरने की थी और फिर मेरा आने-जाने और खाने-पीने का कोई वक्त नहीं था।
आखिर कमरा लेने के बाद जिन्दगी अपनी गति से चलने लगी। जैसे कि आपको पता ही है कि दिल्ली में तो मेरे मज़े थे। मस्त चूत चोदने को मिल रही थी। मज़ा ही मज़ा था। पर जब से करनाल आया था चूत के दर्शन ही नहीं हुए थे। एक बार मेरे एक दोस्त चूत का इंतजाम किया भी पर वो मुझे पसंद नहीं आई क्योंकि रंडी चोदना मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं। अपनी तो सोच है कि शिकार करके खाने में मज़ा ही कुछ और है।
ऐसे ही एक महीने से ज्यादा गुज़र गया। अब मुझ से रहा नहीं जा रहा था और मेरी आँखें अब सिर्फ और सिर्फ चूत की तलाश में रहती। तभी मेरी भाभी अपने मायके में आई तो उसने मुझे भी बुला लिया। मैं जाना तो नहीं चाहता था पर फिर जब उसने ज्यादा जिद की तो मैं शाम को चला गया।
मैंने जाकर घण्टी बजाई तो उस क़यामत ने दरवाज़ा खोला जिसका नाम नीलिमा है। उसको देखा तो मैं देखता ही रह गया। नीलिमा ने मुझे दो बार अंदर आने को कहा पर मैं तो जैसे किसी जादू में बंध गया था बस एकटक उसी को देख रहा था। उसकी जवानी, मोहक हँसी से मैं जैसे स्वपन से बाहर आया। वो मेरी तरफ देख कर हँस रही थी। मैं झेंप गया। मेरी भी हँसी छूट गई।
मैं पहले भी भाभी के मायके आया था पर मैंने इस क़यामत को पहले कभी नहीं देखा था। वो बिल्कुल अनजान थी मेरे लिए।
वो मुझे बैठा कर अंदर चली गई और मैं बैठा सोचता रहा कि आखिर यह है कौन?
तभी भाभी और उसकी मम्मी आई और फिर बातों का सिलसिला चल निकला। कुछ देर बाद वो चाय नाश्ता लेकर कर दुबारा आई। जैसे ही मेरी उससे नज़र मिली मेरी हँसी छूट गई तो जवाब में वो भी हल्के से मुस्कुरा दी। कुछ देर बाद मौका मिलने पर मैंने उसके बारे में भाभी से पूछा तो उसने बताया कि वो उसके चाचा के लड़के की पत्नी है। मैंने तारीफ की और बात आगे चली तो उसने बताया कि वो तनहा है क्योंकि उसका पति करीब एक साल से इटली गया हुआ है और वही काम करता है।
करनाल आने के बाद पहली बार किसी के लिए दिल की धड़कनें तेज हुई थी। भाभी ने मुझे रात को अपने घर पर ही रोक लिया। रात को खाना खाने के बाद सब लोग बैठ कर बातें करने लगे तो नीलिमा भी हमारे पास आ कर बैठ गई। फिर जो हँसी मजाक शुरू हुआ तो समय का पता ही नहीं लगा। नीलिमा की खिलखिलाती हँसी, जवानी हर बार मेरे दिल के तारों को झंझोड़ देती। मन में बार बार उसके पति के लिए गाली निकल रही थी कि इतनी खूबसूरत बीवी को छोड़ कर वो इटली क्या माँ चुदवाने गया है?
जैसे मैं नीलिमा की तरफ आकर्षित हो रहा था तो मुझे वो भी अपनी तरफ आकर्षित होती महसूस हुई क्योंकि अब हमारी नजरें एक दूसरे से बार बार टकरा रही थी, यह मेरे लिए शुभ संकेत था।
रात को बातें करते करते कब सो गए समय का पता ही नहीं चला। सुबह नीलिमा ने ही गर्मागर्म चाय के साथ गुड मोर्निंग बोला। जैसे ही मेरी नज़र नीलिमा से मिली तो उसने भी एक मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा। दिल की तड़प अब इतनी बढ़ गई थी कि दिल कर रहा था कि अभी बिस्तर पर खींच लूँ और चोद डालूँ पर अभी आम कच्चा था।
चाय देकर नीलिमा चली गई और मैं दरवाजे की तरफ देखता ही रह गया। जब वो जा रही थी तो मेरी नज़र उसके मटकते कूल्हों और बलखाती कमर से हट ही नहीं पाई।
करीब आधे घंटे के बाद नीलिमा एक बार फिर मेरे कमरे में आई और साफ़ तौलिया देकर बोली- नहा लो, नाश्ता तैयार है।
जब वो कह कर जाने लगी तो मैंने थोड़ा आगे बढ़ने की सोची और नीलिमा की तारीफ करते हुए कह ही दिया- नीलिमा… तुम बहुत खूबसूरत हो !
नीलिमा एकदम से मेरी तरफ घूमी और अवाक् सी मेरी तरफ देखने लगी और फिर बिना कुछ कहे ही कमरे से चली गई। मैं थोड़ा डर गया पर फिर सोचा कि कोई भी औरत अपनी तारीफ से कभी नाराज नहीं हो सकती।
मैं भी नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया और कुछ देर बाद तैयार होकर बाहर आया तो भाभी अपने मम्मी पापा के साथ नाश्ते की मेज पर मेरा इन्तजार कर रही थी। नीलिमा सबको नाश्ता परोस रही थी। मैंने नाश्ते की तारीफ की तो भाभी ने बताया कि नीलिमा ने बनाया है तो मैंने तारीफ में एक दो कशीदे और पढ़ दिए। हर निवाले के साथ वाह वाह किया तो नीलिमा के चेहरे पर भी एक मुस्कराहट तैर गई।
नाश्ता करने के बाद भाभी के मम्मी-पापा चले गए, उनको किसी रिश्तेदारी में जाना था। भाभी को भी उन्होंने इसीलिए बुलाया था ताकि नीलिमा अकेली ना रहे। नीलिमा थी तो भाभी के चाचा के बेटे की बहू पर क्योंकि भाभी के चाचा-चाची भी उसी रिश्तेदारी में गए हुए थे जिसमे भाभी के मम्मी-पापा जा रहे थे तो नीलिमा भाभी के घर पर ही रह रही थी।
भाभी के मम्मी-पापा के जाने के बाद घर में सिर्फ भाभी, नीलिमा और मैं ही रह गए थे। मेरी भी ड्यूटी का वक्त हो गया था, भाभी बोली- अगर छुट्टी मिलती हो तो रुक जाओ।
सच कहूँ तो दिल तो मेरा भी नहीं था जाने का। मैंने छुट्टी ना मिलने की बात कह कर जाने की तैयारी की तो कुछ देर में नीलिमा मेरे पास कमरे में आई और थोड़े दबे से स्वर में मुझे रुकने के लिए कहने लगी। मेरा तो जैसे दिल उछल कर बाहर गिरने को हो गया।
मैंने अब बिल्कुल भी देर नहीं की और झट से अपने बॉस को फोन करके छुट्टी ले ली। पर मैंने बताया किसी को भी नहीं कि मैंने छुट्टी ले ली है।
फ्री होने के बाद हम तीनों कमरे में बैठ कर बातें करने लगे तो नीलिमा के पति की बातें चल निकली। पिया से बिछोड़े का दर्द नीलिमा की आँखों में नज़र आने लगा था। और फिर बातों ही बातों में पिया से मिलन की तड़प नीलिमा की जुबान पर भी आ गई।
तभी भाभी कुछ देर के लिए बाहर गई तो मैंने नीलिमा को कुरेदते हुए पूछा- नीलिमा… दिन तो चलो काम में निकल जाता होगा पर तुम्हारी रात कैसे कटती होगी? तुम्हारी जवानी?
यह बात आग में घी का काम कर गई और नीलिमा फफक पड़ी और मेरे कंधे से लग कर रोने लगी। मैंने उसके चेहरे को ऊपर किया और उसके आँसू पौंछे।उसके गोरे गोरे और चिकने गालों पर हाथ फेरते फेरते मेरी उंगली उसके होंठों को छूने लगी। नीलिमा की आँखें बंद हो गई थी। मैंने भी मौका देखते हुए अपनी साँसें उसकी साँसों में घोलनी शुरू कर दी और उसके बिल्कुल नजदीक आ गया। इतना नजदीक कि मेरे होंठों और उसको होंठों के बीच की दूरी लगभग खत्म हो गई। अब अपने आप को रोकना मेरे लिए मुश्किल था और मैंने धीरे से उसके होंठों को अपने होंठों से छू लिया। होंठ मिलते ही उसने आँखें खोली और दूर होने की कोशिश की पर तब तक मेरे होंठों ने उसके होंठों पर अपने प्यार की मोहर लगा दी थी।
यह एक छोटा सा ‘चुम्बन’ दिल के अरमानों को भड़काने के लिए काफी था।
‘नहीं राज… दीदी आ जायेगी और फिर यह ठीक नहीं है।’ यह कह कर नीलिमा मेरे पास से उठ कर एक तरफ खड़ी हो गई।
मैं भी उठा और नीलिमा के पीछे जाकर खड़ा हो गया और उसकी कमर को पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचा। उसने छुटने का हल्का सा प्रयास किया। मैंने मेरे होंठ उसकी गर्दन पर रख दिए तो वो सिहर उठी। अब मैंने उसको कस कर अपनी बाहों में भर लिया था और उसकी गर्दन और कान की लटकन पर अपने होंठों से गर्मी दे रहा था। फिर मैंने उसको घुमा कर दीवार के सहारे खड़ा किया और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए। उसके रसीले होंठों का रसपान करते हुए मैं सब कुछ भूल गया। उसका मक्खन जैसा मुलायम बदन अब मेरी बाहों में था।
होंठों का रसपान करते करते मेरे हाथ उसकी चूचियों का मर्दन करने लगे। नीलिमा अब गर्म हो गई थी। होती भी क्यों ना आखिर इतने समय के बाद किसी मर्द का हाथ उसके बदन पर था।
तभी कुछ खटपट हुई तो हम दोनों वासना के भंवर से बाहर आये। तभी भाभी अंदर आई। भाभी ने शायद हमें देख लिया था इसीलिए उसने कुछ खटपट की थी।
नीलिमा अब उठ कर चली गई थी। आप समझ सकते है कि वो कहाँ गई होगी। जी बिल्कुल सही, वो बाथरूम में घुस गई थी शायद अपनी आग उंगली से ठण्डी करने।
नीलिमा के जाने के कुछ देर बाद भाभी ने मेरे और नीलिमा के बीच चल रही चूमाचाटी के बारे में पूछा तो एक बार तो मैं घबरा गया पर फिर हिम्मत करके बोला– भाभी… उसको मेरी जरुरत है।
‘वो तो ठीक है पर पति के होते दूसरे से सम्बन्ध, अपना समाज इसकी इजाजत नहीं देता देवर जी !’
‘पर पति है कहाँ..? यह बेचारी पिछले एक साल से तड़प रही है… क्या सुख दिया पति ने इसको?’
और फिर भाभी और मेरे बीच एक बहस सी छिड़ गई। जिसमे जीत मेरी ही हुई। काफी मिन्नतों के बाद भाभी मेरी मदद करने को राजी हुई।
भाभी ने मुझे दोपहर तक इन्तजार करने को कहा। पर मैं इन्तजार नहीं कर पा रहा था। तभी नीलिमा कमरे में आ गई तो भाभी ने मेरी तरफ आँख मारते हुए कहा नीलिमा से कहा– नीलिमाम मैं जरा अपनी सहेली संध्या के घर जा रही हूँ, एक घंटे तक आ जाऊँगी।’
फिर मुझे देखते हुए कहा– राज… नीलिमा घर पर अकेली है, प्लीज़ तुम थोड़ा रुक जाना, मैं बस एक घंटे में आ जाऊँगी।
मैंने हामी भर दी तो भाभी करीब दस मिनट के बाद तैयार होकर अपनी सहेली के घर चली गई।
भाभी के जाने के दो मिनट के बाद नीलिमा कमरे में आई तो मैंने हाथ पकड़ कर नीलिमा को अपनी तरफ खींच लिया।
‘कोई आ जाएगा राज… और अगर कोई आ गया तो बहुत बदनामी होगी… प्लीज़ मत करो ऐसा !’
मैंने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं। मैंने उसको अपने ऊपर खींच लिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। थोड़ा से विरोध के बाद नीलिमा भी सहयोग करने लगी। फिर तो हम दोनों मस्त होकर एक दूसरे के होंठ चूसने लगे और बदन को सहलाने लगे।
मैंने अब नीलिमा को उठाया और बेडरूम में ले गया, उसको बिस्तर पर लेटा कर मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। जब सिर्फ अंडरवियर रह गया तो मैं नीलिमा के पास जाकर बैठ गया और उसके कपड़े उतारने लगा। नीलिमा ने शर्म के मारे आँखे बंद कर रखी थी। मैंने उसके ब्लाउज के हुक खोल दिए तो नीचे ब्रा में कसी उसकी चूचियाँ जैसे ब्रा को फाड़ कर बाहर आने को बेचैन थी। वो भी पूरी तन चुकी थी जिस कारण ब्रा चूचियाँ पर टाईट हो गई थी।
मैंने नीलिमा को बिस्तर से नीचे खड़ा किया और फिर उसके सारे कपड़े उतार दिए। जब ब्रा से चूचियाँ निकाली तो मेरा लण्ड फटने को हो गया। मैंने इतनी मस्त चूचियाँ पहली बार देखी थी। एकदम ऊपर को तनी हुई, चुचूक बिल्कुल कड़क खड़े हुए। देखते ही मैं उन पर टूट पड़ा और हाथों में लेकर उनका मर्दन करने लगा।
फिर जैसे ही मैंने उसके निप्पल को अपने मुँह में लिया तो नीलिमा सीत्कार उठी। मैंने चूची को चूसते-चूसते एक हाथ को उसकी चूत पर रखा तो देखा नीलिमा बिल्कुल पानी पानी हो रही थी। शायद वो अति-उत्तेजना में झड़ गई थी।
कुछ देर चूचियों का रसपान करने के बाद मैंने नीलिमा को बिस्तर पर लेटा दिया और उसकी टांगों के बीच बैठ कर उसकी गुलाबी और रस से सराबोर लबों वाली चूत पर अपने होंठ रख दिए। नीलिमा की चूत का स्वाद सचमुच लाजवाब था। मैं जीभ को गोल गोल घुमा कर नीलिमा की चूत चाटने लगा। नीलिमा की सीत्कार निकलने लगी थी। मैं अपने हाथों से उसकी चूचियाँ मसल रहा था और जीभ से उसकी चूत चाट रहा था, नीलिमा मेरा सर पकड़ पकड़ कर अपनी चूत पर दबा रही थी। वो अब पूरी गर्म हो चुकी थी।
तभी मुझे नीलिमा का हाथ अपने लण्ड पर महसूस हुआ। वो बहुत बेचैनी के साथ मेरे लण्ड को ढूँढ रही थी। मैंने अपना लण्ड निकल कर नीलिमा के सामने कर दिया। लण्ड को देखते ही नीलिमा के मुँह से निकला– हाय राम… इतना मोटा !
और अगले ही पल उसने मेरे लण्ड को अपने होंठों के बीच मुँह में कैद कर लिया और मस्त होकर चूसने लगी, बिल्कुल वैसे जैसे कोई बच्चा आइसक्रीम के पिंघल जाने के डर से जल्दी जल्दी चूसता है। लण्ड बिल्कुल कड़क हो चुका था।
‘राज, अब और इन्तजार मत करवाओ… नहीं तो मर जाऊँगी !’
मैं भी अब और रुकना नहीं चाहता था तो बस टिका दिया अपना लण्ड नीलिमा की चूत के छेद पर। लण्ड की गर्मी चूत पर मिलते ही नीलिमा ने अपनी बाहें मेरी कमर पर कस दी। मैंने भी दबाव बनाते हुए अपना लण्ड नीलिमा की चूत में घुसाना शुरू कर दिया। नीलिमा की चूत बहुत कसी थी। मेरा मोटा सुपारा उसकी चूत के मुहाने पर ही जैसे फंस सा गया था। जब दबाव के साथ लण्ड अंदर नहीं घुसा तो मैंने थोड़ा सा ऊपर को उचक कर एक जोरदार धक्का लगाया और मेरे लण्ड का सुपाड़ा नीलिमा की चूत में घुस गया।
सुपाड़ा अंदर घुसते ही नीलिमा चीख उठी, उसकी चूत बहुत तंग थी, उसकी आँखों से आँसू बह निकले थे।
मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए और उसकी चूची को सहलाने लगा और निप्पल को उँगलियों में पकड़ कर मसलने लगा। मैंने एक बार फिर अपने चूतड़ ऊपर की तरफ उचकाए और फिर से एक जोरदार धक्का नीलिमा की चूत पर लगा दिया। मेरा मोटा लण्ड उसकी चूत को लगभग चीरता हुआ करीब दो इंच तक अंदर घुस गया। मैंने रुकना उचित नहीं समझा और फिर ताबड़तोड़ दो-तीन धक्के एक साथ लगा दिए। लण्ड आधे से ज्यादा नीलिमा की चूत के अंदर था।
नीलिमा चीख उठी- मर गईईई… ईईईईई… फट गयीई मेरी तो…!!
मैं नीलिमा की एक चूची को मुँह में लेकर चूसने लगा और दूसरी को हाथ में पकड़ कर सहलाने लगा। वो दर्द से छटपटा रही थी। मैं कुछ देर ऐसे ही पड़ा रहा तो नीलिमा भी शांत हो गई और फिर हल्के हल्के अपनी गाण्ड उछालने लगी। सिग्नल मिलते ही मैंने भी दुबारा धक्के लगाने शुरू कर दिए। धीरे धीरे मैंने पूरा लण्ड नीलिमा की चूत में डाल दिया और अंदर-बाहर करने लगा। लण्ड पूरा टाईट जा रहा था चूत में। सच में बहुत कसी हुई चूत थी नीलिमा की।
थोड़ी देर के बाद लण्ड ने चूत में अपनी जगह बन ली और नीलिमा की चूत ने भी ढेर सारा पानी छोड़ दिया तो लण्ड आराम से चूत में अंदर-बाहर होने लगा। नीलिमा की मस्ती भरी आहें अब कमरे के माहौल को मादक बना रही थी। अब तो नीलिमा गाण्ड उठा उठा कर लण्ड को अपनी चूत में ले रही थी। करीब दस मिनट की चुदाई के बाद नीलिमा झड़ गई।
मैंने अब नीलिमा को घोड़ी बनाया और पीछे से लण्ड उसकी चूत में डाल दिया और जोरदार धक्कों के साथ उसकी चुदाई करने लगा। करीब आधे घंटे तक चुदाई चलती रही और फिर मेरा लण्ड भी अपने रस से नीलिमा की चूत को सराबोर करने को बेचैन हो उठा। मैंने नीलिमा के कूल्हों को कस कर पकड़ा और पूरी गति के साथ चुदाई करने लगा। कुछ ही धक्कों के बाद मेरा वीर्य नीलिमा की चूत को भरने लगा। वीर्य की गर्मी मिलते ही वो फ़िर झड़ गई। वीर्य अब नीलिमा की चूत से बाहर आने लगा था।
हम दोनों निढाल होकर लेट गए। दोनों ही पसीने से तरबतर थे। नीलिमा मुझ से लिपटी हुई थी। उसने मुझे ऐसे जकड़ रखा था जैसे मुझे कभी भी अपने से अलग ना करना चाहती हो।
नीलिमा ने मुझे बताया कि उसके पति संजय के इटली में होने को देखते हुए उसके घर वालों ने उसकी शादी संजय से की थी पर संजय बस एक महीना ही उसके पास रहा और फिर इटली यह कह कर चला गया कि कुछ ही दिन में मुझे वह बुला लेगा। बस तभी से वो पिया मिलना की आस लगाए संजय का इन्तजार कर रही है।
मैंने उसे सांत्वना दी और शाहरुख खान का डायलॉग चिपका दिया- ‘मैं हूँ ना…!’
चुदाई के बाद हम दोनों एक साथ बाथरूम में गए और अपने आप को साफ़ किया। तभी मेरे मोबाइल पर भाभी का फोन आया।
भाभी ने पूछा– कुछ किया या नहीं?
मैंने भाभी को फतह की जानकारी दे दी। भाभी बहुत खुश हुई। मैंने भाभी को कुछ देर और ना आने को कहा तो उसने मुझे बताया कि वो शाम को आएगी तब तक मज़े करो।
बस फिर क्या था मैंने नीलिमा को पकड़ कर फिर से बिस्तर पर डाल लिया और फिर तो जब तक भाभी का फोन नहीं आया, मैंने और नीलिमा ने तीन बार चुदाई के मज़े लिए।
फिर रात को भी मैं वहीं रुका और सारी रात भाभी की मेहरबानी से मैं और नीलिमा मस्ती के रस से सराबोर रहे, पूरी रात चुदाई-कार्यक्रम में गुज़र गई। सुबह तक नीलिमा की चूत सूज कर पावरोटी हो चुकी थी।
जब तक बाकी परिवार वाले आएँ, मैं ड्यूटी के बाद भाभी के मायके में चला जाता और भाभी की मेहरबानी से नीलिमा जैसी अप्सरा के साथ मस्ती करता।परिवार वालों के आ जाने के बाद भाभी ने मेरा रहने का प्रबन्ध अपने मायके में ही करवा दिया और फिर तो जब भी मौका मिलता मैं और नीलिमा मस्ती के सागर में डुबकियाँ लगाने से नहीं चूकते थे।
कहानी कैसी लगी जरूर बताना…
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सानिया खान
मैं हूँ बाबू, उम्र 43 साल, अविवाहित पर सेक्स का मजा लेने में खूब उस्ताद। मेरी इस कहानी में जो लड़की है उसका नाम है- सानिया खान।
वो मेरे एक दोस्त प्रोफ़ेसर जमील अहमद खान की बेटी है।
सानिया के पिता और मैं दोनों कॉलेज के दिनों से दोस्त हैं। उनकी शादी एम.ए. करते समय हीं हो गई।
मेरी भाभी यानि उनकी बेगम रिश्ते में मौसेरी बहन थी।
खैर मैं तो सानिया के बारे में कहने वाला हूँ उसके माँ-बाप में तो शायद ही आप-लोगों को रुचि हो।
सानिया 18 साल की बी कॉम प्रथम वर्ष की छात्रा है, बहुत सुन्दर चेहरे की मालकिन है। एकदम गोरी, 5’5′ लम्बी, पतली छरहरी काया, लहराती-बलखाती जब वो सामने से चलती तो मेरे दिल में एक हूक सी उठती।
मेरे जैसे चूतखोर मर्द के लिए उसका बदन एक पहेली था, कैसी लगेगी बिना कपड़ों के सानिया?
तब मैं भूल जाता कि वो मेरे गोद में खेली है, उसके बदन को जवान होते मैंने देखा है। उसकी चूची नींबू से छोटे सेब, संतरा, अनार होते देखा है, महसूस किया है।
सोच-सोच कर मैंने पचासों बार अपना लंड झाड़ा होगा पर उसका मुझे चाचा कहना, मुझे रोक देता था कुछ भी करने से। उसके दिल की बात मुझे पता नहीं थी न।
वैसे सानिया का चक्कर दो-तीन लड़कों से चला था, घर पर उसे खूब डाँट भी पड़ी थी, पर उन लोगों ने हद पार की थी या नहीं मुझे पता न चल पाया।
और जब भी मेरे दोस्त और भाभी जी ने इस बात की चर्चा की, तब उनके भाषा से मुझे कुछ समझ नहीं आया।
और एक बार…भगवान की दया से कुछ ऐसा हुआ कि…
हुआ यह कि सानिया के नाना की तबियत खराब होने की खबर आई और सानिया के अम्मी-अब्बा को उसके ननिहाल मेरठ जाना पड़ा।
सानिया की पढ़ाई चलते रहने की वजह से वो उसको नहीं ले जा सके।
उनके घर में नीचे के हिस्से में जो किरायेदार थे वो भी अपने गाँव गए हुए थे, सो सानिया को अकेला वहाँ न छोड़, उन लोगों ने उसको एक सप्ताह मेरे साथ रहने को कहा।
असल में यह प्रस्ताव मैंने ही उन लोगों को परेशान देख कर दिया था। वो तुरंत मान गए।
मेरे दोस्त ने तब कहा भी कि यार मैं भी यही सोच रहा था पर तुम अकेले रहते हो, लगा कहीं तुम्हें कोई परेशानी ना हो।
बातचीत करते हुए जमील ने हल्की आवाज में बताया कि एक बार पहले भी वो सानिया को अकेले तीन दिन के लिए छोड़े थे तो आने पर किरायेदार से पता चला कि दो दिन लगातार सानिया के साथ कोई लड़का रहा था, जो उसके साथ स्कूल में पढ़ता था, अब कहीं इंजीनियरिंग पढ़ रहा है।
वो अपनी परेशानी मुझे बता रहा था और मैं सोच रहा था कि जब सानिया अपने घर पर एक लड़के को माँ-बाप के नहीं रहने पर रख सकती है, तो घर के बाहर तो वो जरूर ही चुदवाती होगी।
खैर! अगले दिन सुबह कोई 7 बजे वो लोग सानिया को मेरे अपार्ट्मेंट पर छोड़ने आए, चाय पी और मेरठ चले गये। सानिया तब अपने स्लीपिंग ड्रेस में ही थी- एक ढ़ीली सा कैप्री और काला गोल गले का टी-शर्ट।
उसको को नौ बजे कॉलेज जाना था, दो घंटे के लिए।
मेरी नौकरानी नाश्ता बना रही थी, जब सानिया किचन में जाकर उससे पूछने लगी- साबुन कहाँ है?
असल में अकेले रहने के कारण मेरे कमरे के बाथरूम में तो सब था पर दूसरे कमरे, जिसमें सानिया का सामान रखा गया था, वह बाथरूम कपड़े धोने के लिए ही इस्तेमाल होता था।
मैंने तभी कहा- सानिया, तुम मेरे कमरे का बाथरूम प्रयोग कर लो, मुझे नहाने में अभी समय है।
और सानिया अपन कपड़े लेकर मुस्कुराते हुए चली गई। मैं बाहर वाले कमरे में अखबार पढ़ रहा था, जब सानिया तैयार हो, नाश्ता करके आई, बोली- चाचा, मैं करीब बारह बजे लौटूँगी, तब तो घर बंद रहेगा?
मैंने उसके भीगे बालों से घिरे सुन्दर से चेहरे को देखते हुए कहा- परेशान होने की कोई बात नहीं है, तुम एक चाबी रख लो!
और मैंने नौकरानी से चाबी ले कर उसको दे दी। (मैंने एक चाबी उसको इसलिए दी थी कि वो शाम को आ कर काम कर जाए और मेरा खाना पका जाए) साथ ही नौकरानी को शाम की छुट्टी कर दी कि शाम को हम लोग होटल में खाना खा लेंगे।
थोड़ी देर में नकरानी भी काम निपटा कर चली गई, और मैं तैयार होने बाथरूम में आया।
और..
बाथरूम में सानिया की कैप्री और टी-शर्ट खूँटी से टंगी थी और नीचे गीली जमीन पर सानिया की ब्रा-पैन्टी पड़ी थी। ऐसा लग रहा था कि उसने उन्हें धोया तो है, पर सूखने के लिए डालना भूल गई। मेरे लन्ड में सुरसुरी जगने लगी थी।
मैंने उसके अन्तर्वस्त्र उठा लिए और उनका मुआयना शुरु कर दिया। सफ़ेद ब्रा का टैग देखा-लवेबल 32 बी। सोचिए, 5’5′ की सानिया कितनी दुबली-पतली है।
मैंने अब उसकी पैन्टी को सीधा फ़ैला दिया।
वो एक पुरानी पन्टी थी-रुपा सॉफ़्ट्लाईन 32 नम्बर…
इतनी पुरानी थी कि उसके किनारे पर लगे लेस उघड़ने लगे थे और वो बीच से हल्का-हल्का घिस कर फ़टना शुरु कर चुकी थी। मैंने उसे सूँघा, पर उसमें से साबुन की ही खुशबू आई।
फ़िर भी मैंने ऐसे तो कई बार उसके नाम की मुठ मारी थी, पर आज उसकी पैन्टी से लन्ड रगड़-रगड़ कर मुठ मारी और अपना माल उसके पैन्टी के घिसे हुए हिस्से पर निकाला और फ़िर बिना धोये ही पैन्टी-ब्रा को सूखने के लिए डाल दिया।
मेरे दिमाग में अब ख्याल आने लगा कि एक बार कोशिश कर के देख लूँ, शायद सानिया पट जाए। पर मुझे अब देर हो रही थी सो मैं जल्दी-जल्दी तैयार हो कर निकल गया।
शाम को करीब सात बजे मैं घर आया, सानिया बैठ कर टीवी देख रही थी। उसने ही मुझे चाय बना कर दी।
हम दोनों साथ चाय पी रहे थे, जब मैंने कहा- तैयार हो जाओ सानिया, आज बाहर ही खाएंगे!
खुशी उसके चेहरे पर झलक गई और मैं उसके उस सलोने से चेहरे से नजर हटा न पाया।
हम लोग इधर-उधर की बात कर रहे थे, तभी उसे ख्याल आया, बोली- सॉरी चाचा, आज आपके बाथरूम में गलती से मेरे कपड़े रह गए। असल में मेरे जाने के बाद अम्मी जब सारे घर को ठीक करती है, तो वो यह सब भी कर देती है। कल से ऐसा नहीं होगा।
उसके चेहरे पे सारी दुनिया की मासूमियत थी।
मैंने भी प्यार से कहा- अरे, कोई बात नहीं बेटा, मुझे कोई परेशानी नहीं हुई। तुम तो धो कर गई ही थी, मैंने तो सिर्फ़ सूखने के लिए तार पर डाल दिया।
फ़िर थोड़ी शरारत मन में आई तो कह दिया- वैसे भी तुम तो खुद दस किलो की हो, तो तुम्हारी ब्रा-पैन्टी तो 10 ग्राम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए न। उसको सूखने डालने में कोई मेहनत तो करना नहीं पड़ा मुझे।
उसने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों को गोल-गोल नचाया- पूरे 41 किलो हूँ मैं!
मैंने तड़ से जड़ दिया- ठीक है, फ़िर तो मैं सुधार कर देता हूँ, फ़िर 41 ग्राम होगी ब्रा-पैन्टी?
वो मुस्कुरा कर बोली- मेरा मजाक बना रहे हैं, मैं तैयार होने जा रही हूँ।
और वो अपने कमरे में चली गई, मैं अपने कमरे में।
कोई आधे घण्टे बाद हम घर से निकले। सानिया ने एक गहरे हरे रंग की कैप्री और गुलाबी टॉप पहनी थी। बालों को थोड़ा ऊपर उठा पैनीटेल बनाया था, पैर में बिना मोजा रीबॉक के जूते।
मैं उसकी खूबसूरती पर मुग्ध था।
हम लोग पैदल ही एक घण्टा घूमे और फ़िर करीब नौ बजे एक चाईनीज रेस्तराँ में खाना खाकर दस बजे तक घर आ गए। थोड़ी देर टीवी देखने के बाद करीब 11 बजे सानिया अपने कमरा में और मैं अपने कमरा में सोने चले गए। सानिया के बारे में सोचते सोचते बड़ी देर बाद मुझे नींद आई।
अगले दिन करीब छः बजे सानिया ने मुझे जगाया, वो सामने चाय लेकर खड़ी थी। मेरे दिमाग में पहला ख्याल आया कि आज का दिन अच्छा हो गया, उसकी सलोनी सूरत देख कर।
हमने साथ चाय पी। वो तब मेरे बिस्तर पे बैठी थी। उसने एक नाईटी पहनी हुई थी जो उसके घुटने से थोड़ा नीचे तक थी। रेडीमेड होने के कारण थोड़ा लूज थी, और उसके ब्रा के स्टैप्स दिख रहे थे। आज उसे साढ़े आठ बजे निकलना था, सो वो बोली-‘आप बाथरूम से हो लीजिए, तब मैं भी नहा लूँगी, आज थोड़ा पहले जाना है।
मैं जब बाथरूम से बाहर आया तो देखा कि उसने मेरा बिस्तर ठीक कर दिया है और अपने कपड़े हाथ में लेकर मेरे बेड पर बैठी है।
जब वो बाथरूम की तरफ़ जाने लगी तब मैंने छेड़ते हुए कहा- आज भी अपना 41 ग्राम छोड़ देना।
वो यह सुन जोर से बोली- छीः! और हल्के से हँसते हुए बाथरूम का दरवाजा बन्द कर लिया।
मैं बाहर बैठ पेपर पढ़ रहा था, जब वो बोली-‘मैं जा रही हूँ चाचू, करीब एक बजे लौटूँगी, मेरा लंच बनवा दीजिएगा, नस्ता मैं कैंटीन में कर लूँगी।
मैं उसको कसे पीले सलवार कुर्ते में जाते देखता रहा, जब तक वो दिखती रही। उसकी सुन्दर सी गांड हल्के हल्के मटक रही थी।
थोड़ी देर में मेरी नौकरानी मैरी आ गई और अपना काम करने लगी, मैं भी तैयार होने बाथरूम में आ गया।
मुझे थोड़ा शक था कि आज शायद मुझे ब्रा-पैन्टी ना दिखे, पर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा जब मैंने देखा कि आज फ़िर उसने अपनी ब्रा-पैन्टी धो कर कल की तरह ही जमीन पर छोड़ दी है।
कल शायद उससे गलती से छूट गया था, पर आज के लिए मैं पक्का था कि उसने जान-बूझ कर छोड़ा है।
मुझे लगने लगा कि यह साली पट सकती है।
मैंने आज फ़िर उसकी पैन्टी लंड पे लपेट मूठ मारी और माल उसके पैन्टी में डाल दिया। यह वाली पैन्टी कल वाली से भी पुरानी थी, और उसमें भी दो-एक छोटे छेद थे। पर मुझे मजा आया। मैंने अपने माल से लिपटी पैन्टी को ब्रा के साथ सूखने को डाल दिया।
शाम को मुझे आने में थोड़ी देर हो गई, मैरी हम दोनों का खाना बना कर जा चुकी थी। मैं जब आया तो सानिया ने चाय बनाई और हम दोनों गपशप करते हुए चाय पीने लगे।
सानिया ने ही बात छेड़ दी- आज फ़िर आपको मजा आया मेरी सेवा करके?
मैं समझ न सका तो उसने कहा- वही 41 ग्राम, सुबह! और मुस्कुराई।
मैंने भी कहा- हाँ, मजा तो खूब आया पर सानिया, इतने पुराने कपड़े मत पहना करो, फ़टे कपड़े पहनना शुभ नहीं माना जाता।
वो समझ गई, बोली- ठीक है चाचू, आगे से ख्याल रखूँगी।
मैंने देखा कि बात सही दिशा में है तो आगे कहा- अच्छा सानिया, थोड़ा अपने निजी जीवन के बारे में बताओ। जमील कह रहा था कि तुम्हारा किसी लड़के के साथ चक्कर था। अगर न बताना चाहो तो मना कर दो।
वो थोड़ी देर चुप रही, फ़िर उसने रेहान के बारे में कहा, जो उसके साथ स्कूल में 5 साल पढ़ा था, दोनों अच्छे दोस्त थे पर ऐसा कुछ नहीं किया कि उसको इतना डाँटा जाए, रेहान तो फ़िर उस डाँट के बाद कभी मिला भी नहीं। अब तो वो उसको अपना पहला क्रश मानती थी।
मैंने तब साफ़ पूछ लिया- क्यों, क्या सेक्स-वेक्स नहीं किया उसके साथ?
वो अपने गोल-गोल आँख घुमा कर बोली- छीः, क्या मैं आपको इतनी गन्दी लड़की लगती हूँ, रेहान मेरा पहला प्यार था, अब कुछ नहीं है!
मैंने मूड को हल्का करने के लिए कहा- अरे नहीं बेटी तुम और गन्दी, कभी नहीं, हाँ थोड़ी शरारती जरूर हो, बदमाश जो अपनी ब्रा-पैन्टी अपने चाचू से साफ़ करवाती हो।
वो बोली- गलत चाचू! साफ़ तो खुद करती हूँ, आप तो सिर्फ़ सूखने को डालते हो।
हम दोनों हँसने लगे।
फ़िर खाना खा कर टहलने निकल गए। बातों बातों में वो अपने कॉलेज के बारे में तरह तरह की बात बता रही थी और मैं उसके साथ का मजा ले रहा था।
तीसरे दिन भी सुबह सानिया के चेहरे पर नजर डाल कर ही शुरु हुई। उस दिन मैरी थोड़ा सवेरे आ गई थी, सानिया का नाश्ता बना रही थी। मैं भी अपने औफ़िस के काम में थोड़ा व्यस्त था कि सानिया तैयार हो कर आई।
मैंन घड़ी देखी- 8:30
सानिया बोली- चाचू आज भी रख दिया है मैंने आपके लिए 41 ग्राम… और आज धोई भी नहीं हैं।
और वो चली गई।
मैंने भी अब जल्दी से फ़ाईल समेटी और तैयार होने चला गया।
आज बाथरूम में थोड़ी सेक्सी किस्म की ब्रा-पन्टी थी और उससे बड़ी बात कि आज सानिया ने उस पर पानी भी नहीं डाला था।
दोनों एक सेट की थी, गुलाबी लेस की। इतनी मुलायम कि दोनों मेरी एक मुट्ठी में बन्द हो जाए।
मैंने पैन्टी फ़ैलाई-स्ट्रिन्ग बिकनी स्टाईल की थी। उसके सामने का भाग थोड़ा कम चौड़ा था, करीब 4 इंच और नीचे की तरफ़ पतला होते होते योनि-स्थल पर दो इंच का हो गया था, फ़िर पीछे की तरफ़ थोड़ा चौड़ा हुआ पर 5 इंच का होते होते कमर के इलास्टिक बैंड में जा मिला। साईड की तरफ़ से पुरा खुला हुआ, बस आधा इंच से भी कम की इलस्टिक।
मैंने प्यार से उस गन्दी पैन्टी का मुआयना किया। चूत के पास हल्का सा एक दाग था, जो बड़े गौर से देखने पर पता चलता, मैंने उस धब्बे को सूंघा। हल्की सी खट्टेपन की बू मिली और मेरा लन्ड को सुरूर आने लगा।
मैंने प्यार से उसी धब्बे पर अपना लन्ड भिड़ा, पैन्टी को लन्ड पे लपेट मजे से मुठ मारने लगा और सारा माल उसी धब्बे पर निकाला, फ़िर उस पैन्टी-और ब्रा को सिर्फ़ पानी से धो कर सुखने डाल दिया।
शाम साढ़े सात बजे घर आया, साथ चाय पीने बैठे तो मैंने बात छेड़ दी- आज तो सानिया बेटी, तुमने कमाल कर दिया।
वो कुछ नहीं बोली तो मैंने कह दिया- बिना धुली ब्रा-पैन्टी से तुम्हारी खुशबू आ रही थी।
वो शर्माने लगी, तो मैंने कहा- सच्ची बोल रहा हूँ, मैंने सूँघ कर देखा था। तुम्हारे बाप की उम्र का हूँ, पर आज वाली 41 ग्राम की खुशबू ने मेरे दिल में अरमान जगा दिये।
वो थोड़ा असहज दिखी, तो मैंने बात थोड़ा बदला- पर मैंने भी दिल पर काबू कर लिया, तुम परेशान न हो।
वो मुस्कुराई, तब मैंने कहा- पर आज वाली तो बहुत सेक्सी थी, अब कल क्या दिखाओगी मुझे?
वो मुस्कुराई- कल 30 ग्राम मिलेगा।
मै- क्यों?
वो बोली- क्योंकि आज मैंने नीचे पहनी ही नहीं है। वो दोनों पुरानी वाली पहननी नहीं थी और ये वाली तो आज धुली है, कल पहनूँगी।
मैंने कहा- ऐसी बात है तो चल आज ही खरीद कर लाते हैं। मैंने आज तक कभी लेडीज पैन्टी नहीं खरीदी, आज यह भी कर लेते हैं।
वो थोड़ा सकुचाई तो मैंने उसको हाथ पकड़ कर उठा दिया, बोला- जल्दी तैयार हो जाओ।
मैं तब जींस और टीशर्ट में था, और वो अपने नाईटी में।
वो दो मिनट में चेंज करके आ गई- नीले स्कर्ट और पीले टॉप में वो जान-मारू दिख रही थी।
उसने आते हुए कहा- स्कर्ट में सुविधा होगी, एक तो वहीं पहन लूँगी, और एक और ले लूंगी।
बहुत मस्त लौन्डिया थी वो। मेरे जैसे मर्द को टीज करना खूब जानती थी।
जब भी मैं ये सोचता कि साली नंगी चूत ले कर बाजार में है, मेरे दिल से एक हूक सी निकल जाती।
हम एक लेडीज अंडरगार्मेंट्स स्टोर में गए। मेरे लिए यह पहला अनुभव था। दो-तीन और लेडीज ग्राहक थीं।
हमारे पास एक करीब 28-30 साल की एक सेल्सगर्ल आई तो मैंने उसे एक ब्र-पैन्टी सेट दिखाने को कहा।
क्या साईज? और कोई खास स्टाईल? कहते हुए उसने एक कैटेलॉग हमें थमा दिया।
एक से एक मस्त माल की फ़ोटो थी, तरह तरह की ब्रा-पैन्टी में। मैं फ़ोटो देखने में व्यस्त हो चुका था कि सानिया बोली- सिर्फ़ पैन्टी लेते हैं ना।
मैंने नजर कैटेलग पर ही रखते हुए कहा- एक इसमें से ले लो, फ़िर दो-तीन पैन्टी ले लेना।
सेल्सगर्ल ने पूछा-‘दीदी के लिए लेना है या मैडम के लिए? मैंने सानिया की तरफ़ इशारा किया।
वो मुस्कुराते हुए बोली- किस टाईप का दूँ, थोड़ी सेक्सी, हॉट या सॉबर?
मैंने जब उसे थोड़ा सेक्सी टाईप दिखाने को बोला तो वो मुस्कुराई। वो समझ रही थी कि मैं उस हूर के साथ लंपटगिरी कर रहा हूँ।
उसने कुछ बहुत ही मस्त सेट निकल दिए। एक तो बस सिर्फ़ पैन्टी के नाम पर 2’ का सफ़ेद पारदर्शी जाली थी ब्रा भी ऐसा कि जितना छुपाती नहीं उतना दिखाती। मुझ वो ही खरीदने का मन हुआ, पर सानिया ने एक दूसरा पसंद किया।
जब मैंने कहा कि एक वह सेक्सी टाईप ले कर देखे, तो वो बोली- नहीं, पर अगर आपका मन है तो सिर्फ़ पैन्टी में ऐसा कुछ देख लेंगे, पैसा भी कम लगेगा।
सानिया की पसंद की पैन्टी उसकी सेक्सी पैन्टी से थोड़ी और छोटी थी। चूतड़ तो लगभग 90% बाहर ही रहता, पर योनि ठीक ठाक से ढक जाती।
उसने उसका चटख लाल रंग पसंद किया।
फ़िर उसने हेन्स की स्ट्रींग बिकनी पैन्टी माँगी, तो सेल्सगर्ल ने एक 3 का सेट दिया।
अब मैंने उस सेक्सी पैन्टी के बारे में कहा और जोर दे कर एक सफ़ेद और एक काली पैन्टी खरीद ली।
सानिया ने हेन्स की एक पैन्टी पैक से निकाली और ट्रायल कमरा में चली गई और पहन ली।
सामान पैक करते समय सेल्सगर्ल ने सानिया से उसकी पुरानी पैन्टी के बारे में पूछा तो सानिया ने कहा- इट्स ओ के ! आई हैडन्ट बीन वीयरिन्ग एनी !
(सब ठीक है, मैंने नहीं पहना हुआ था)
सेल्सगर्ल ने भी चुटकी ली- आजकल के बच्चे भी ना…? इस तरह बिना चड्डी बाजार में निकल लेते हैं।
दुकान पर मौजूद तीनों सेल्सगर्ल और मैं भी हँस दिया और सानिया झेंप गई।
अगले दिन सुबह चाय पीते हुए मैंने कहा- सानिया, अब आज का दिन मेरा कैसे अच्छा बीतेगा, आज तो 30 ग्राम ही मुझे मिलेगा।
वो मुस्कुराई और बोली- सब ठीक हो जायेगा, फ़िक्र नॉट।
जब वो जाने लगी तो मुझे बोली- चाचू, जरा अपने कमरे में चलिए, एक बात है।
मुझे लगा कि वह शायद कुछ कहेगी पर वो कमरे में मुझे लाई और मुझे बिस्तर पर बिठा दिया, फ़िर एक झटके में अपनी जीन्स के बटन खोल कर उसे घुटने तक नीचे कर दिया, बोली- देख कर आज का दिन ठीक कर लीजिए।
उसके बदन पर वही सेक्सी वाली सफ़ेद पैन्टी थी, उसकी त्रिभुजाकार सफ़ेद पट्टी से उसकी बुर एकदम से ढकी हुई थी, पर सिर्फ़ बुर ही, बाकी उस पैन्टी में कुछ था ही नहीं सिवाय डोरी के ! उसकी जाँघ, चूतड़ सब बिल्कुल अनावृत थे एकदम साफ़ गोरे, दमकते हुए, झाँट की झलक तक नहीं थी।
मेरा गला सूख रहा था। वो 20-25 सेकेन्ड वैसे रही फ़िर अपना जीन्स उपर कर ली, और मुस्कुराते हुए बाय कह बाहर निकल गई।
मैंने वहीं बिस्तर पर बैठे-बैठे मुठ मारी, यह भी भूल गया कि मैरी घर में है।
उस दिन बाथरूम में मुझे पता चला कि आज मेरे ही रेजर से सानिया झाँट साफ़ की थी, और अपने झाँट के बालों को वाश बेसिन पर ही रख छोड़ा है। दो इन्च की उसकी झाँट के काफ़ी बाल मुझे मिल गये, जिन्हें मैंने कागज में समेट कर रख लिया।
मैंने फ़िर मुठ मारी।
शाम की चाय पीते हुए मैंने बात शुरु किया- बेटा, आज मेरे लिए पैन्टी नहीं थी तो तुमने मेरे लिए रेजर साफ़ करने का काम छोड़ दिया !
मेरे चेहरे पर हल्की हँसी थी।
वो शरमा गई।
तब मैंने कहा- किस स्टाईल में शेव की है?
उसके चेहरे के भाव बदले, बोली- मतलब?
मैंने आगे कहा- मतलब किस स्टाईल में अपने बाल साफ़ किए हैं?
उसे समझ नहीं आया तो बोली- अब इसमें स्टाईल की क्या बात है, बस साफ़ कर दी।
मैंने अब आँख मारी- पूरी ही साफ़ कर दी?
वो अब थोड़ा बोल्ड बन कर बोली- और नहीं तो क्या, आधा करती? कैसा गन्दा लगता।
मैंने सब समझ गया, कहा- अरे नहीं बाबा, तुम समझ नहीं रही हो, लड़कियाँ अपने इन बालों को कई तरीके से सजा कर साफ़ करती हैं !
उसके लिए यह एक नई बात थी, पूछने लगी- कैसे?
तब मैंने उसको बताया कि झाँटों को कैसे अलग अलग स्टाईल मे बनाया जाता है, जैसे लैंडिन्ग स्ट्रीप, ट्रायन्गल, हिटलर मुश्टैश, बाल्ड, थ्रेड, हार्ट… आदि।
उसके लिए ये सब बातें अजूबा थीं, बोली- मुझे नहीं पता ये सब ! मैं तो जब भी करती हूँ, हमेशा ऐसे ही पूरी ही साफ़ करती रही हूँ। अभी दो महीने बाद किए हैं आज ! इतनी बड़ी-बड़ी हो गई थी। अम्मी को पता चल जाए तो मुझे बहुत डाँटती, वो तो जबरदस्ती बचपन में मेरा 15-18 दिन पर साफ़ कर देती थी। वो तो खुद सप्ताह में दो दिन साफ़ करती हैं अभी भी।
मैंने भी हाँ में हाँ मिलाई- हाँ, सच बहुत बड़ी थी, दो इन्च के तो मैं अपने नहीं होने देता, जबकि मैं मर्द हूँ।
मैं महीने में दो-एक बार काल-गर्ल घर लाता था। इसके लिए मैं एक दलाल राजेन्दर सूरी की मदद लेता। उसके साथ मेरा 5-6 साल पुराना रिश्ता था। वो हमेशा मुझे मेरे पसन्द की लड़की भेज देता। अब तो वो भी मेरी पसन्द जान गया था और जब भी कोई नई लड़की मेरे मतलब की उसे मिलती, वो मुझे बता देता।
ऐसे ही उस दिन शाम को हुआ। सूरी का फ़ोन आया करीब आठ बजे, तब मैं और सानिया खाना खा रहे थे।
सूरी ने बताया कि एक माल आई है नई उसके पास, 18-19 साल की। ज्यादा नहीं गई है, घरेलू टाईप है। आज उसकी ब्लड टेस्ट रिपोर्ट सही आने के बाद वो सुबह मुझे बतायेगा। अगर मैं कहूँ तो वो कल उसकी पहली बुकिंग मेरे साथ कर देगा।
सानिया को हमारी बात ठीक से समझ में नहीं आई, और जब उसने पूछा तो मैंने सोचा कि अब इस लौन्डिया से सब कह देने से शायद मेरा रास्ता खुले, सो मैंने उसको सब कह दिया कि मैं कभी-कभी दलाल के मार्फ़त काल-गर्ल लाता हूँ घर पर ! आज उसी दलाल का फ़ोन आया था, एक नई लड़की के बारे में।
उसका चेहरा लाल हो गया।
वो मेरे एक दोस्त प्रोफ़ेसर जमील अहमद खान की बेटी है।
सानिया के पिता और मैं दोनों कॉलेज के दिनों से दोस्त हैं। उनकी शादी एम.ए. करते समय हीं हो गई।
मेरी भाभी यानि उनकी बेगम रिश्ते में मौसेरी बहन थी।
खैर मैं तो सानिया के बारे में कहने वाला हूँ उसके माँ-बाप में तो शायद ही आप-लोगों को रुचि हो।
सानिया 18 साल की बी कॉम प्रथम वर्ष की छात्रा है, बहुत सुन्दर चेहरे की मालकिन है। एकदम गोरी, 5’5′ लम्बी, पतली छरहरी काया, लहराती-बलखाती जब वो सामने से चलती तो मेरे दिल में एक हूक सी उठती।
मेरे जैसे चूतखोर मर्द के लिए उसका बदन एक पहेली था, कैसी लगेगी बिना कपड़ों के सानिया?
तब मैं भूल जाता कि वो मेरे गोद में खेली है, उसके बदन को जवान होते मैंने देखा है। उसकी चूची नींबू से छोटे सेब, संतरा, अनार होते देखा है, महसूस किया है।
सोच-सोच कर मैंने पचासों बार अपना लंड झाड़ा होगा पर उसका मुझे चाचा कहना, मुझे रोक देता था कुछ भी करने से। उसके दिल की बात मुझे पता नहीं थी न।
वैसे सानिया का चक्कर दो-तीन लड़कों से चला था, घर पर उसे खूब डाँट भी पड़ी थी, पर उन लोगों ने हद पार की थी या नहीं मुझे पता न चल पाया।
और जब भी मेरे दोस्त और भाभी जी ने इस बात की चर्चा की, तब उनके भाषा से मुझे कुछ समझ नहीं आया।
और एक बार…भगवान की दया से कुछ ऐसा हुआ कि…
हुआ यह कि सानिया के नाना की तबियत खराब होने की खबर आई और सानिया के अम्मी-अब्बा को उसके ननिहाल मेरठ जाना पड़ा।
सानिया की पढ़ाई चलते रहने की वजह से वो उसको नहीं ले जा सके।
उनके घर में नीचे के हिस्से में जो किरायेदार थे वो भी अपने गाँव गए हुए थे, सो सानिया को अकेला वहाँ न छोड़, उन लोगों ने उसको एक सप्ताह मेरे साथ रहने को कहा।
असल में यह प्रस्ताव मैंने ही उन लोगों को परेशान देख कर दिया था। वो तुरंत मान गए।
मेरे दोस्त ने तब कहा भी कि यार मैं भी यही सोच रहा था पर तुम अकेले रहते हो, लगा कहीं तुम्हें कोई परेशानी ना हो।
बातचीत करते हुए जमील ने हल्की आवाज में बताया कि एक बार पहले भी वो सानिया को अकेले तीन दिन के लिए छोड़े थे तो आने पर किरायेदार से पता चला कि दो दिन लगातार सानिया के साथ कोई लड़का रहा था, जो उसके साथ स्कूल में पढ़ता था, अब कहीं इंजीनियरिंग पढ़ रहा है।
वो अपनी परेशानी मुझे बता रहा था और मैं सोच रहा था कि जब सानिया अपने घर पर एक लड़के को माँ-बाप के नहीं रहने पर रख सकती है, तो घर के बाहर तो वो जरूर ही चुदवाती होगी।
खैर! अगले दिन सुबह कोई 7 बजे वो लोग सानिया को मेरे अपार्ट्मेंट पर छोड़ने आए, चाय पी और मेरठ चले गये। सानिया तब अपने स्लीपिंग ड्रेस में ही थी- एक ढ़ीली सा कैप्री और काला गोल गले का टी-शर्ट।
उसको को नौ बजे कॉलेज जाना था, दो घंटे के लिए।
मेरी नौकरानी नाश्ता बना रही थी, जब सानिया किचन में जाकर उससे पूछने लगी- साबुन कहाँ है?
असल में अकेले रहने के कारण मेरे कमरे के बाथरूम में तो सब था पर दूसरे कमरे, जिसमें सानिया का सामान रखा गया था, वह बाथरूम कपड़े धोने के लिए ही इस्तेमाल होता था।
मैंने तभी कहा- सानिया, तुम मेरे कमरे का बाथरूम प्रयोग कर लो, मुझे नहाने में अभी समय है।
और सानिया अपन कपड़े लेकर मुस्कुराते हुए चली गई। मैं बाहर वाले कमरे में अखबार पढ़ रहा था, जब सानिया तैयार हो, नाश्ता करके आई, बोली- चाचा, मैं करीब बारह बजे लौटूँगी, तब तो घर बंद रहेगा?
मैंने उसके भीगे बालों से घिरे सुन्दर से चेहरे को देखते हुए कहा- परेशान होने की कोई बात नहीं है, तुम एक चाबी रख लो!
और मैंने नौकरानी से चाबी ले कर उसको दे दी। (मैंने एक चाबी उसको इसलिए दी थी कि वो शाम को आ कर काम कर जाए और मेरा खाना पका जाए) साथ ही नौकरानी को शाम की छुट्टी कर दी कि शाम को हम लोग होटल में खाना खा लेंगे।
थोड़ी देर में नकरानी भी काम निपटा कर चली गई, और मैं तैयार होने बाथरूम में आया।
और..
बाथरूम में सानिया की कैप्री और टी-शर्ट खूँटी से टंगी थी और नीचे गीली जमीन पर सानिया की ब्रा-पैन्टी पड़ी थी। ऐसा लग रहा था कि उसने उन्हें धोया तो है, पर सूखने के लिए डालना भूल गई। मेरे लन्ड में सुरसुरी जगने लगी थी।
मैंने उसके अन्तर्वस्त्र उठा लिए और उनका मुआयना शुरु कर दिया। सफ़ेद ब्रा का टैग देखा-लवेबल 32 बी। सोचिए, 5’5′ की सानिया कितनी दुबली-पतली है।
मैंने अब उसकी पैन्टी को सीधा फ़ैला दिया।
वो एक पुरानी पन्टी थी-रुपा सॉफ़्ट्लाईन 32 नम्बर…
इतनी पुरानी थी कि उसके किनारे पर लगे लेस उघड़ने लगे थे और वो बीच से हल्का-हल्का घिस कर फ़टना शुरु कर चुकी थी। मैंने उसे सूँघा, पर उसमें से साबुन की ही खुशबू आई।
फ़िर भी मैंने ऐसे तो कई बार उसके नाम की मुठ मारी थी, पर आज उसकी पैन्टी से लन्ड रगड़-रगड़ कर मुठ मारी और अपना माल उसके पैन्टी के घिसे हुए हिस्से पर निकाला और फ़िर बिना धोये ही पैन्टी-ब्रा को सूखने के लिए डाल दिया।
मेरे दिमाग में अब ख्याल आने लगा कि एक बार कोशिश कर के देख लूँ, शायद सानिया पट जाए। पर मुझे अब देर हो रही थी सो मैं जल्दी-जल्दी तैयार हो कर निकल गया।
शाम को करीब सात बजे मैं घर आया, सानिया बैठ कर टीवी देख रही थी। उसने ही मुझे चाय बना कर दी।
हम दोनों साथ चाय पी रहे थे, जब मैंने कहा- तैयार हो जाओ सानिया, आज बाहर ही खाएंगे!
खुशी उसके चेहरे पर झलक गई और मैं उसके उस सलोने से चेहरे से नजर हटा न पाया।
हम लोग इधर-उधर की बात कर रहे थे, तभी उसे ख्याल आया, बोली- सॉरी चाचा, आज आपके बाथरूम में गलती से मेरे कपड़े रह गए। असल में मेरे जाने के बाद अम्मी जब सारे घर को ठीक करती है, तो वो यह सब भी कर देती है। कल से ऐसा नहीं होगा।
उसके चेहरे पे सारी दुनिया की मासूमियत थी।
मैंने भी प्यार से कहा- अरे, कोई बात नहीं बेटा, मुझे कोई परेशानी नहीं हुई। तुम तो धो कर गई ही थी, मैंने तो सिर्फ़ सूखने के लिए तार पर डाल दिया।
फ़िर थोड़ी शरारत मन में आई तो कह दिया- वैसे भी तुम तो खुद दस किलो की हो, तो तुम्हारी ब्रा-पैन्टी तो 10 ग्राम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए न। उसको सूखने डालने में कोई मेहनत तो करना नहीं पड़ा मुझे।
उसने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों को गोल-गोल नचाया- पूरे 41 किलो हूँ मैं!
मैंने तड़ से जड़ दिया- ठीक है, फ़िर तो मैं सुधार कर देता हूँ, फ़िर 41 ग्राम होगी ब्रा-पैन्टी?
वो मुस्कुरा कर बोली- मेरा मजाक बना रहे हैं, मैं तैयार होने जा रही हूँ।
और वो अपने कमरे में चली गई, मैं अपने कमरे में।
कोई आधे घण्टे बाद हम घर से निकले। सानिया ने एक गहरे हरे रंग की कैप्री और गुलाबी टॉप पहनी थी। बालों को थोड़ा ऊपर उठा पैनीटेल बनाया था, पैर में बिना मोजा रीबॉक के जूते।
मैं उसकी खूबसूरती पर मुग्ध था।
हम लोग पैदल ही एक घण्टा घूमे और फ़िर करीब नौ बजे एक चाईनीज रेस्तराँ में खाना खाकर दस बजे तक घर आ गए। थोड़ी देर टीवी देखने के बाद करीब 11 बजे सानिया अपने कमरा में और मैं अपने कमरा में सोने चले गए। सानिया के बारे में सोचते सोचते बड़ी देर बाद मुझे नींद आई।
अगले दिन करीब छः बजे सानिया ने मुझे जगाया, वो सामने चाय लेकर खड़ी थी। मेरे दिमाग में पहला ख्याल आया कि आज का दिन अच्छा हो गया, उसकी सलोनी सूरत देख कर।
हमने साथ चाय पी। वो तब मेरे बिस्तर पे बैठी थी। उसने एक नाईटी पहनी हुई थी जो उसके घुटने से थोड़ा नीचे तक थी। रेडीमेड होने के कारण थोड़ा लूज थी, और उसके ब्रा के स्टैप्स दिख रहे थे। आज उसे साढ़े आठ बजे निकलना था, सो वो बोली-‘आप बाथरूम से हो लीजिए, तब मैं भी नहा लूँगी, आज थोड़ा पहले जाना है।
मैं जब बाथरूम से बाहर आया तो देखा कि उसने मेरा बिस्तर ठीक कर दिया है और अपने कपड़े हाथ में लेकर मेरे बेड पर बैठी है।
जब वो बाथरूम की तरफ़ जाने लगी तब मैंने छेड़ते हुए कहा- आज भी अपना 41 ग्राम छोड़ देना।
वो यह सुन जोर से बोली- छीः! और हल्के से हँसते हुए बाथरूम का दरवाजा बन्द कर लिया।
मैं बाहर बैठ पेपर पढ़ रहा था, जब वो बोली-‘मैं जा रही हूँ चाचू, करीब एक बजे लौटूँगी, मेरा लंच बनवा दीजिएगा, नस्ता मैं कैंटीन में कर लूँगी।
मैं उसको कसे पीले सलवार कुर्ते में जाते देखता रहा, जब तक वो दिखती रही। उसकी सुन्दर सी गांड हल्के हल्के मटक रही थी।
थोड़ी देर में मेरी नौकरानी मैरी आ गई और अपना काम करने लगी, मैं भी तैयार होने बाथरूम में आ गया।
मुझे थोड़ा शक था कि आज शायद मुझे ब्रा-पैन्टी ना दिखे, पर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा जब मैंने देखा कि आज फ़िर उसने अपनी ब्रा-पैन्टी धो कर कल की तरह ही जमीन पर छोड़ दी है।
कल शायद उससे गलती से छूट गया था, पर आज के लिए मैं पक्का था कि उसने जान-बूझ कर छोड़ा है।
मुझे लगने लगा कि यह साली पट सकती है।
मैंने आज फ़िर उसकी पैन्टी लंड पे लपेट मूठ मारी और माल उसके पैन्टी में डाल दिया। यह वाली पैन्टी कल वाली से भी पुरानी थी, और उसमें भी दो-एक छोटे छेद थे। पर मुझे मजा आया। मैंने अपने माल से लिपटी पैन्टी को ब्रा के साथ सूखने को डाल दिया।
शाम को मुझे आने में थोड़ी देर हो गई, मैरी हम दोनों का खाना बना कर जा चुकी थी। मैं जब आया तो सानिया ने चाय बनाई और हम दोनों गपशप करते हुए चाय पीने लगे।
सानिया ने ही बात छेड़ दी- आज फ़िर आपको मजा आया मेरी सेवा करके?
मैं समझ न सका तो उसने कहा- वही 41 ग्राम, सुबह! और मुस्कुराई।
मैंने भी कहा- हाँ, मजा तो खूब आया पर सानिया, इतने पुराने कपड़े मत पहना करो, फ़टे कपड़े पहनना शुभ नहीं माना जाता।
वो समझ गई, बोली- ठीक है चाचू, आगे से ख्याल रखूँगी।
मैंने देखा कि बात सही दिशा में है तो आगे कहा- अच्छा सानिया, थोड़ा अपने निजी जीवन के बारे में बताओ। जमील कह रहा था कि तुम्हारा किसी लड़के के साथ चक्कर था। अगर न बताना चाहो तो मना कर दो।
वो थोड़ी देर चुप रही, फ़िर उसने रेहान के बारे में कहा, जो उसके साथ स्कूल में 5 साल पढ़ा था, दोनों अच्छे दोस्त थे पर ऐसा कुछ नहीं किया कि उसको इतना डाँटा जाए, रेहान तो फ़िर उस डाँट के बाद कभी मिला भी नहीं। अब तो वो उसको अपना पहला क्रश मानती थी।
मैंने तब साफ़ पूछ लिया- क्यों, क्या सेक्स-वेक्स नहीं किया उसके साथ?
वो अपने गोल-गोल आँख घुमा कर बोली- छीः, क्या मैं आपको इतनी गन्दी लड़की लगती हूँ, रेहान मेरा पहला प्यार था, अब कुछ नहीं है!
मैंने मूड को हल्का करने के लिए कहा- अरे नहीं बेटी तुम और गन्दी, कभी नहीं, हाँ थोड़ी शरारती जरूर हो, बदमाश जो अपनी ब्रा-पैन्टी अपने चाचू से साफ़ करवाती हो।
वो बोली- गलत चाचू! साफ़ तो खुद करती हूँ, आप तो सिर्फ़ सूखने को डालते हो।
हम दोनों हँसने लगे।
फ़िर खाना खा कर टहलने निकल गए। बातों बातों में वो अपने कॉलेज के बारे में तरह तरह की बात बता रही थी और मैं उसके साथ का मजा ले रहा था।
तीसरे दिन भी सुबह सानिया के चेहरे पर नजर डाल कर ही शुरु हुई। उस दिन मैरी थोड़ा सवेरे आ गई थी, सानिया का नाश्ता बना रही थी। मैं भी अपने औफ़िस के काम में थोड़ा व्यस्त था कि सानिया तैयार हो कर आई।
मैंन घड़ी देखी- 8:30
सानिया बोली- चाचू आज भी रख दिया है मैंने आपके लिए 41 ग्राम… और आज धोई भी नहीं हैं।
और वो चली गई।
मैंने भी अब जल्दी से फ़ाईल समेटी और तैयार होने चला गया।
आज बाथरूम में थोड़ी सेक्सी किस्म की ब्रा-पन्टी थी और उससे बड़ी बात कि आज सानिया ने उस पर पानी भी नहीं डाला था।
दोनों एक सेट की थी, गुलाबी लेस की। इतनी मुलायम कि दोनों मेरी एक मुट्ठी में बन्द हो जाए।
मैंने पैन्टी फ़ैलाई-स्ट्रिन्ग बिकनी स्टाईल की थी। उसके सामने का भाग थोड़ा कम चौड़ा था, करीब 4 इंच और नीचे की तरफ़ पतला होते होते योनि-स्थल पर दो इंच का हो गया था, फ़िर पीछे की तरफ़ थोड़ा चौड़ा हुआ पर 5 इंच का होते होते कमर के इलास्टिक बैंड में जा मिला। साईड की तरफ़ से पुरा खुला हुआ, बस आधा इंच से भी कम की इलस्टिक।
मैंने प्यार से उस गन्दी पैन्टी का मुआयना किया। चूत के पास हल्का सा एक दाग था, जो बड़े गौर से देखने पर पता चलता, मैंने उस धब्बे को सूंघा। हल्की सी खट्टेपन की बू मिली और मेरा लन्ड को सुरूर आने लगा।
मैंने प्यार से उसी धब्बे पर अपना लन्ड भिड़ा, पैन्टी को लन्ड पे लपेट मजे से मुठ मारने लगा और सारा माल उसी धब्बे पर निकाला, फ़िर उस पैन्टी-और ब्रा को सिर्फ़ पानी से धो कर सुखने डाल दिया।
शाम साढ़े सात बजे घर आया, साथ चाय पीने बैठे तो मैंने बात छेड़ दी- आज तो सानिया बेटी, तुमने कमाल कर दिया।
वो कुछ नहीं बोली तो मैंने कह दिया- बिना धुली ब्रा-पैन्टी से तुम्हारी खुशबू आ रही थी।
वो शर्माने लगी, तो मैंने कहा- सच्ची बोल रहा हूँ, मैंने सूँघ कर देखा था। तुम्हारे बाप की उम्र का हूँ, पर आज वाली 41 ग्राम की खुशबू ने मेरे दिल में अरमान जगा दिये।
वो थोड़ा असहज दिखी, तो मैंने बात थोड़ा बदला- पर मैंने भी दिल पर काबू कर लिया, तुम परेशान न हो।
वो मुस्कुराई, तब मैंने कहा- पर आज वाली तो बहुत सेक्सी थी, अब कल क्या दिखाओगी मुझे?
वो मुस्कुराई- कल 30 ग्राम मिलेगा।
मै- क्यों?
वो बोली- क्योंकि आज मैंने नीचे पहनी ही नहीं है। वो दोनों पुरानी वाली पहननी नहीं थी और ये वाली तो आज धुली है, कल पहनूँगी।
मैंने कहा- ऐसी बात है तो चल आज ही खरीद कर लाते हैं। मैंने आज तक कभी लेडीज पैन्टी नहीं खरीदी, आज यह भी कर लेते हैं।
वो थोड़ा सकुचाई तो मैंने उसको हाथ पकड़ कर उठा दिया, बोला- जल्दी तैयार हो जाओ।
मैं तब जींस और टीशर्ट में था, और वो अपने नाईटी में।
वो दो मिनट में चेंज करके आ गई- नीले स्कर्ट और पीले टॉप में वो जान-मारू दिख रही थी।
उसने आते हुए कहा- स्कर्ट में सुविधा होगी, एक तो वहीं पहन लूँगी, और एक और ले लूंगी।
बहुत मस्त लौन्डिया थी वो। मेरे जैसे मर्द को टीज करना खूब जानती थी।
जब भी मैं ये सोचता कि साली नंगी चूत ले कर बाजार में है, मेरे दिल से एक हूक सी निकल जाती।
हम एक लेडीज अंडरगार्मेंट्स स्टोर में गए। मेरे लिए यह पहला अनुभव था। दो-तीन और लेडीज ग्राहक थीं।
हमारे पास एक करीब 28-30 साल की एक सेल्सगर्ल आई तो मैंने उसे एक ब्र-पैन्टी सेट दिखाने को कहा।
क्या साईज? और कोई खास स्टाईल? कहते हुए उसने एक कैटेलॉग हमें थमा दिया।
एक से एक मस्त माल की फ़ोटो थी, तरह तरह की ब्रा-पैन्टी में। मैं फ़ोटो देखने में व्यस्त हो चुका था कि सानिया बोली- सिर्फ़ पैन्टी लेते हैं ना।
मैंने नजर कैटेलग पर ही रखते हुए कहा- एक इसमें से ले लो, फ़िर दो-तीन पैन्टी ले लेना।
सेल्सगर्ल ने पूछा-‘दीदी के लिए लेना है या मैडम के लिए? मैंने सानिया की तरफ़ इशारा किया।
वो मुस्कुराते हुए बोली- किस टाईप का दूँ, थोड़ी सेक्सी, हॉट या सॉबर?
मैंने जब उसे थोड़ा सेक्सी टाईप दिखाने को बोला तो वो मुस्कुराई। वो समझ रही थी कि मैं उस हूर के साथ लंपटगिरी कर रहा हूँ।
उसने कुछ बहुत ही मस्त सेट निकल दिए। एक तो बस सिर्फ़ पैन्टी के नाम पर 2’ का सफ़ेद पारदर्शी जाली थी ब्रा भी ऐसा कि जितना छुपाती नहीं उतना दिखाती। मुझ वो ही खरीदने का मन हुआ, पर सानिया ने एक दूसरा पसंद किया।
जब मैंने कहा कि एक वह सेक्सी टाईप ले कर देखे, तो वो बोली- नहीं, पर अगर आपका मन है तो सिर्फ़ पैन्टी में ऐसा कुछ देख लेंगे, पैसा भी कम लगेगा।
सानिया की पसंद की पैन्टी उसकी सेक्सी पैन्टी से थोड़ी और छोटी थी। चूतड़ तो लगभग 90% बाहर ही रहता, पर योनि ठीक ठाक से ढक जाती।
उसने उसका चटख लाल रंग पसंद किया।
फ़िर उसने हेन्स की स्ट्रींग बिकनी पैन्टी माँगी, तो सेल्सगर्ल ने एक 3 का सेट दिया।
अब मैंने उस सेक्सी पैन्टी के बारे में कहा और जोर दे कर एक सफ़ेद और एक काली पैन्टी खरीद ली।
सानिया ने हेन्स की एक पैन्टी पैक से निकाली और ट्रायल कमरा में चली गई और पहन ली।
सामान पैक करते समय सेल्सगर्ल ने सानिया से उसकी पुरानी पैन्टी के बारे में पूछा तो सानिया ने कहा- इट्स ओ के ! आई हैडन्ट बीन वीयरिन्ग एनी !
(सब ठीक है, मैंने नहीं पहना हुआ था)
सेल्सगर्ल ने भी चुटकी ली- आजकल के बच्चे भी ना…? इस तरह बिना चड्डी बाजार में निकल लेते हैं।
दुकान पर मौजूद तीनों सेल्सगर्ल और मैं भी हँस दिया और सानिया झेंप गई।
अगले दिन सुबह चाय पीते हुए मैंने कहा- सानिया, अब आज का दिन मेरा कैसे अच्छा बीतेगा, आज तो 30 ग्राम ही मुझे मिलेगा।
वो मुस्कुराई और बोली- सब ठीक हो जायेगा, फ़िक्र नॉट।
जब वो जाने लगी तो मुझे बोली- चाचू, जरा अपने कमरे में चलिए, एक बात है।
मुझे लगा कि वह शायद कुछ कहेगी पर वो कमरे में मुझे लाई और मुझे बिस्तर पर बिठा दिया, फ़िर एक झटके में अपनी जीन्स के बटन खोल कर उसे घुटने तक नीचे कर दिया, बोली- देख कर आज का दिन ठीक कर लीजिए।
उसके बदन पर वही सेक्सी वाली सफ़ेद पैन्टी थी, उसकी त्रिभुजाकार सफ़ेद पट्टी से उसकी बुर एकदम से ढकी हुई थी, पर सिर्फ़ बुर ही, बाकी उस पैन्टी में कुछ था ही नहीं सिवाय डोरी के ! उसकी जाँघ, चूतड़ सब बिल्कुल अनावृत थे एकदम साफ़ गोरे, दमकते हुए, झाँट की झलक तक नहीं थी।
मेरा गला सूख रहा था। वो 20-25 सेकेन्ड वैसे रही फ़िर अपना जीन्स उपर कर ली, और मुस्कुराते हुए बाय कह बाहर निकल गई।
मैंने वहीं बिस्तर पर बैठे-बैठे मुठ मारी, यह भी भूल गया कि मैरी घर में है।
उस दिन बाथरूम में मुझे पता चला कि आज मेरे ही रेजर से सानिया झाँट साफ़ की थी, और अपने झाँट के बालों को वाश बेसिन पर ही रख छोड़ा है। दो इन्च की उसकी झाँट के काफ़ी बाल मुझे मिल गये, जिन्हें मैंने कागज में समेट कर रख लिया।
मैंने फ़िर मुठ मारी।
शाम की चाय पीते हुए मैंने बात शुरु किया- बेटा, आज मेरे लिए पैन्टी नहीं थी तो तुमने मेरे लिए रेजर साफ़ करने का काम छोड़ दिया !
मेरे चेहरे पर हल्की हँसी थी।
वो शरमा गई।
तब मैंने कहा- किस स्टाईल में शेव की है?
उसके चेहरे के भाव बदले, बोली- मतलब?
मैंने आगे कहा- मतलब किस स्टाईल में अपने बाल साफ़ किए हैं?
उसे समझ नहीं आया तो बोली- अब इसमें स्टाईल की क्या बात है, बस साफ़ कर दी।
मैंने अब आँख मारी- पूरी ही साफ़ कर दी?
वो अब थोड़ा बोल्ड बन कर बोली- और नहीं तो क्या, आधा करती? कैसा गन्दा लगता।
मैंने सब समझ गया, कहा- अरे नहीं बाबा, तुम समझ नहीं रही हो, लड़कियाँ अपने इन बालों को कई तरीके से सजा कर साफ़ करती हैं !
उसके लिए यह एक नई बात थी, पूछने लगी- कैसे?
तब मैंने उसको बताया कि झाँटों को कैसे अलग अलग स्टाईल मे बनाया जाता है, जैसे लैंडिन्ग स्ट्रीप, ट्रायन्गल, हिटलर मुश्टैश, बाल्ड, थ्रेड, हार्ट… आदि।
उसके लिए ये सब बातें अजूबा थीं, बोली- मुझे नहीं पता ये सब ! मैं तो जब भी करती हूँ, हमेशा ऐसे ही पूरी ही साफ़ करती रही हूँ। अभी दो महीने बाद किए हैं आज ! इतनी बड़ी-बड़ी हो गई थी। अम्मी को पता चल जाए तो मुझे बहुत डाँटती, वो तो जबरदस्ती बचपन में मेरा 15-18 दिन पर साफ़ कर देती थी। वो तो खुद सप्ताह में दो दिन साफ़ करती हैं अभी भी।
मैंने भी हाँ में हाँ मिलाई- हाँ, सच बहुत बड़ी थी, दो इन्च के तो मैं अपने नहीं होने देता, जबकि मैं मर्द हूँ।
मैं महीने में दो-एक बार काल-गर्ल घर लाता था। इसके लिए मैं एक दलाल राजेन्दर सूरी की मदद लेता। उसके साथ मेरा 5-6 साल पुराना रिश्ता था। वो हमेशा मुझे मेरे पसन्द की लड़की भेज देता। अब तो वो भी मेरी पसन्द जान गया था और जब भी कोई नई लड़की मेरे मतलब की उसे मिलती, वो मुझे बता देता।
ऐसे ही उस दिन शाम को हुआ। सूरी का फ़ोन आया करीब आठ बजे, तब मैं और सानिया खाना खा रहे थे।
सूरी ने बताया कि एक माल आई है नई उसके पास, 18-19 साल की। ज्यादा नहीं गई है, घरेलू टाईप है। आज उसकी ब्लड टेस्ट रिपोर्ट सही आने के बाद वो सुबह मुझे बतायेगा। अगर मैं कहूँ तो वो कल उसकी पहली बुकिंग मेरे साथ कर देगा।
सानिया को हमारी बात ठीक से समझ में नहीं आई, और जब उसने पूछा तो मैंने सोचा कि अब इस लौन्डिया से सब कह देने से शायद मेरा रास्ता खुले, सो मैंने उसको सब कह दिया कि मैं कभी-कभी दलाल के मार्फ़त काल-गर्ल लाता हूँ घर पर ! आज उसी दलाल का फ़ोन आया था, एक नई लड़की के बारे में।
उसका चेहरा लाल हो गया।
↧
गन्ने की मिठास
ffsdfff
↧
↧
जाल
"और अब आपके सामने है आज की नीलामी की सबसे आख़िरी मगर सबसे खास पेशकश..",डेवाले के क्लॅसिक ऑक्षन हाउस के मेन हॉल मे स्टेज पे खड़ा इंसान 1 पैंटिंग से परदा हटा रहा था.उसके सामने 20-20 कुर्सियो की 2 कतारो मे 40 आदमी बैठे थे.अभी तक 10 चीज़ो की नीलामी हुई थी मगर सबका ध्यान इसी पैंटिंग पे था.ये पैंटिंग मशहूर पेंटर गोवर्धन दास की थी जोकि अभी कुच्छ ही दिनो पहले 1 आर्ट कॉलेज की लाइब्ररी मे पड़ी मिली थी.सभी जानकरो का मानना था कि ये दास बाबू की है,जिन्हे गुज़रे 70 से भी ज़्यादा साल हो चुके थे,सबसे उम्दा तस्वीरो मे से 1 है.
"..इस तस्वीर की नीलामी की शुरुआती कीमत 10 लाख तय की गयी है.क्या कोई है जो इस रकम से ज़्यादा बोली लगा सकता है?",सामने बाई कतार मे बैठे 1 शख्स ने अपना हाथ उपर उठाया.
"15 लाख..और कोई?",इस बार दाई कतार मे बैठे 1 शख्स ने हाथ उठाया.नीलामी करने वाला आक्षनियर मुस्कुराया.वो जानता था कि दोनो शख्स खुद के लिए नही बल्कि अपने मालिको के लिए बोली लगा रहे हैं.हॉल मे बैठे बाकी लोग भी हल्के-2 मुस्कुरा रहे थे.खेल शुरू जो हो चुका था & उन्हे ये देखना था कि इस बार कौन जीतता है!
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होटेल वाय्लेट शहर की सबसे ऊँची इमारत थी & उसकी 25वी मंज़िल पे खड़ा विजयंत मेहरा फ्लोर तो सीलिंग ग्लास से डेवाले को देख रहा था.शीशे की उस दीवार से उसे डेवाले शहर का बिल्कुल बीच का हिस्सा दिख रहा था जहा की आसमान छुति इमारतो की क़तारे लगी थी.वो उनमे से ज़्यादातर इमारतो का मालिक था & होटेल वाय्लेट का भी.विजयंत मेहरा ट्रस्ट ग्रूप का मालिक था.इस ग्रूप ने अपने कदम इनफ्रास्ट्रक्चर यानी कि सड़के,इमाराते,एरपोर्ट,बंदरगाह और ऐसी ही बुनियादी चीज़ो को बनाने के कारोबार से जमाए थे मगर आज ट्रस्ट ग्रूप ना केवल ये सब बनाता था बल्कि उसके मुल्क के 15 शहरो मे होटेल्स भी थे & पिच्छले 5 बरसो से वो फिल्म बनाने के भी धंधे मे उतर चुका था.
विजयंत के होंठो पे हल्की मुस्कुराहट खेल रही थी.यहा खड़े होके उसे अपनी ताक़त का एहसास होता था.इस शहर का बड़ा हिस्सा उसका था सिर्फ़ उसका.जहा वो खड़ा था वो वाय्लेट होटेल के उस सूयीट का बेडरूम था जिसे उसने खास खुद के लिए बनवाया था.ट्रस्ट ग्रूप का दफ़्तर होटेल से 300मीटर की दूरी पे 1 12 मंज़िला इमारत मे था.विजयंत वही से अपना कारोबार संभालता था मगर जब भी वो उस इमारत से उकता जाता था तो अपने इस सूयीट मे आ जाता था.सूयीट क्या 1 छ्होटा सा फ्लॅट ही था.1 बेडरूम,1 सा गेस्ट रूम जहा की 6-7 लोगो की मीटिंग करने का भी इंतेज़ाम था,1 अटॅच्ड बाथरूम & उसके साथ 1 किचेन थी.
"सर..",दरवाज़े पे दस्तक दे 1 लड़की अंदर दाखिल हुई.उसने ग्रे कलर की घुटनो तक की कसी फॉर्मल स्कर्ट & सफेद ब्लाउस पहना था.पैरो मे हाइ हील वाले जूते थे & बॉल 1 कसे जुड़े मे बँधे थे.ये लड़की देखने से होटेल की कर्मचारी नही लग रही थी,उनकी पोशाक वैसे भी अलग थी,"..1 घंटे मे वो शुरू होने वाला है.",वो आगे आई & हाथो मे पकड़ा फोन उसने बिस्तर पे रख दिया.विजयंत उसकी ओर पीठ किए खड़ा था.उसने बिना घूमे सर हिलाया अपनी बाहे उपर कर दी.लड़की मुस्कुराते हुए आगे आई.विजयंत ने 1 सफेद कमीज़ पहनी & काली पतलून थी.लड़की ने कमीज़ की बाजुओ के कफलिंक्स खोले & फिर विजयंत की कमीज़ के बटन खोलने लगी.अगले ही पल विजयंत का नंगा सीना उसके सामने था.
विजयंत मेहरा की उम्र 53 बरस थी मगर शायद ही उसे देख कोई उसकी असली उम्र बता सकता था.वो कही से भी 45 से ज़्यादा नही लगता था.उसका रंग इतना गोरा था की केयी लोगो को उसके विदेशी होने की ग़लतफहमी हो जाती थी.उसके बाल भी काले नही बल्कि कुच्छ भूरे रंग के थे जोकि कभी-2 सुनहले भी लगने लगते थे.चेहरे पे हल्की दाढ़ी & मूँछ थी.उसका कद 6'3" था & उसका कसरती जिस्म बहुत मज़बूत दिखता था.चमकते बालो से भरे उसके ग़ज़ब के चौड़े सीने को देख उस लड़की ने हल्के से अपने निचले होंठ को दांतो से दबाया.विजयंत मेहरा मर्दाना खूबसूरती की जीती-जागती मिसाल था.लड़की की धड़कने तेज़ हो गयी थी & उसके गाल भी लाल हो गये थे.उसने काँपते हाथो से विजयंत की पतलून उतारी.उसका बॉस अब केवल 1 अंडरवेर मे उसके सामने खड़ा था.उसने हाथ से उसे रुकने का इशारा किया.
"नीशी..",1 रोबिली & बहुत गहरी भारी,भरकम आवाज़ ने नीशी को जैसे नींद से जगाया.
"ज-जी.."
"क्या हुआ?ये कोई पहली बार तो नही.",विजयंत मुस्कुराया.
अफ!..इतनी दिलकश मुस्कान..& ये आवाज़..वो तो दफ़्तर मे उस से लेटर्स की डिक्टेशन लेते हुए ही अपनी टाँगो के बीच गीलापन महसूस करने लगती थी.
"नही सर.वो बात नही.",उसने अपनी पीठ विजयंत की तरफ की & अपने कपड़े उतारने लगी.लड़की का जिस्म बिल्कुल वैसा था जैसा विजयंत को पसंद था.बड़ी छातियाँ,चौड़ी गंद मगर सब कुच्छ कसा हुआ.2 साल से नीशी उसकी सेक्रेटरी थी & नौकरी जाय्न करने के 4 दिनो के अंदर ही वो अपने बॉस के बिस्तर मे भी ड्यूटी करने लगी थी.
"आहह..!",विजयंत ने उसे पीछे से बाहो मे भर लिया था & उसके पेट को सहलाते हुए उसके दाए कान मे जीभ फिरा दी थी.वो भी पीछे हो उसके जिस्म से लग गयी.उसने महसूस किया कि उसकी निचली पीठ पे उसके बॉस का गर्म लंड दबा हुआ था.उसका दिल और ज़ोर से धड़क उठा.ना जाने कितनी बार वो लंड उसकी चूत मे उतार चुका था मगर हर बार वो उसके एहसास से रोमांचित हुए बिना नही रहती थी.ये विजयंत के लंड का जादू था या उसकी शख्सियत का?..इस सवाल का जवाब ढूँढते हुए उसे 2 बरस हो गये थे मगर वो तय नही कर पाई थी & आज शायद आख़िरी बार वो उसके साथ हमबिस्तर हो रही थी.
"आज तुम्हारा आख़िरी दिन है ट्रस्ट ग्रूप के साथ,नीशी.",विजयंत ने कान के बाद उसके तपते गालो को चूमा था & फिर उसके नर्म लबो को & फिर उसे आगे जाने की ओर इशारा किया.नीशी आगे बढ़ी & बिस्तर पे पेट के बल लेट गयी,"सभी तैय्यारियाँ हो गयी शादी की?"
"जी.",10 दिन बाद नीशी की शादी थी & वो चेन्नई जा रही थी.हर लड़की की तरह वो भी बहुत खुश थी मगर 1 अफ़सोस था कि अब वो कभी उस बांके मर्द की चुदाई का लुफ्त नही उठा पाएगी,"उउन्न्ञन्....!",विजयंत ने उसके पैरो को उपर उठाया & बाए हाथ से थाम उसकी पिंदलियो को चूमने लगा,उसका दया हाथ निश्ी की मोटी गंद को सहला रहा था.निश्ी बिस्तर की चादर को बेचैनी से भींचते हुए हल्की-2 आहे ले रही थी.विजयंत का हाथ उसकी गंद की दरार को सहला रहा था.सहलाते हुए उसने हाथ को दरार मे तोड़ा अंदर घुसाया तो अपना सर उपर झटकते हुए निश्ी ने ज़ोर से आ भारी & उसकी जंघे खुद बा खुद फैल गयी.विजयंत ने उन्हे धीरे से तोड़ा और फैलाया & नीचे झुक गया.
"आन्न्न्नह.....उउन्न्ञणनह.....!",निश्ी की आहो के साथ-2 उसके हाथो तले बिस्तर की चादर की सलवटें बढ़ने लगी.विजयंत अपनी सेक्रेटरी की चिकनी चूत को पीछे से चाट रहा था.उसकी लपलपाति ज़ुबान उस नाज़ुक अंग से बह रहे रस को सुड़कते हुए उसके दाने को छेड़ रही थी.नीशी के जिस्म मे बिजली दौड़ रही थी.रोम-2 मे 1 अजीब सा मज़ा भर गया था.उसकी गंद की फांको को दबा के फैलाता हुआ विजयंत बड़ी गर्मजोशी से उसकी चूत पे अपनी जीभ चला रहा था & जब उसने उसने अपने होंठो को उसकी चूत पे दबा ज़ोर से चूसा तो नीशी चीख मारते हुए झाड़ गयी.तभी बिस्तर पे रखा फोन बज उठा.खुमारी मे झूमती नीशी ने थोड़ी देर बाद उसे उठाया & फिर सुन के रख दिया,"शुरू हो गया.",उसने जिस्म थोड़ा बाई तरफ मोड़ के सर पीछे घुमा के अपने बॉस को नशीली नज़रो से देखा.
उसकी फैली टाँगो के बीच विजयंत घुटनो पे खड़ा था.उसके चौड़े फौलादी सीने के सुनहले बालो & उसके मज़बूत बाजुओ को देख नीशी का जिस्म 1 बार फिर से कसक से भर उठा.बड़े-2 हाथो से विजयंत उसकी गंद को सहला रहा था & उस हल्की सी हरकत से भी उसके बाजुओ की मांसपेशिया फदक रही थी.उसने थोडा नीचे देखा & उसकी निगाह विजयंत के सपाट पेट पे गयी.पेट के बीचोबीच बालो की 1 मोटी लकीर नीचे जा रही थी.जब नीशी की नज़र वाहा पहुँची तो उसकी कसक 1 बार फिर चरम पे पहुँच गयी.टाँगो के बीच बालो से घिरा विजयंत का लंड अपने पूरे शबाब पे था.9.5 इंच लंबा & बहुत ही मोटा लंड 2 बड़े-2 आंडो के उपर सीधा तना खड़ा था.
नीशी अब तक 3-4 मर्दो से चुद चुकी थी जिनमे उसका मंगेतर भी शामिल था मगर उसने विजयंत जैसा लंड किसी के पास नही देखा था.उसने 1 बार फिर निचले होंठ को दाँत से दबाया & अपना सर बिस्तर मे च्छूपाते हुए अपनी कमर उपर कर अपनी गंद को हवा मे उठा दिया.हर बार ऐसा ही होता था.बंद कमरे मे विजयंत के साथ वो सब कुच्छ भूल जाती थी केवल अपने जिस्म की खुशी का ख़याल उसके ज़हन पे हावी रहता था.मुस्कुराते हुए विजयंत ने अपना तगड़ा लंड हाथ मे पकड़ा & उसे नीशी की जानी-पहचानी चूत मे घुसने लगा.
"ऊन्नह.....!",आज तक नीशी को उस लंबे,मोटे लंड की आदत नही पड़ी थी & आज भी शुरू मे उसे हल्का दर्द होता था लेकिन उसकी चूत की आख़िरी गहराइयो मे उतार वो लंड जब अपना कमाल दिखाता तो सारा दर्द हवा हो जाता & रह जाता सिर्फ़ मज़ा,बहुत सारा मज़ा!विजयंत ने अपनी सेक्रेटरी की नाज़ुक कमर थामी & धक्के लगाने शुरू कर दिए.वो बहुत गहरे मगर धीमे धक्के लगा रहा था.लंड बड़े हौले-2 नीशी की चूत को पूरे तरीके से चोद रहा था.वो मस्ती मे पागल हो चुकी थी.पूरे सूयीट मे उसकी आहें गूँज रही थी.बिस्तर की चादर को तो शायद वो अपने बेचैन हाथो से तार-2 कर देना चाहती थी.अपने बॉस के हर धक्के का जवाब वो अपनी कमर हिला अपनी गंद को पीछे धकेल के दे रही थी.
विजयंत को भी बहुत मज़ा आ रहा था.पिच्छले 2 बरसो मे नीशी की चूत ज़रा भी ढीली नही हुई थी.उसके धक्को की रफ़्तार बढ़ी तो नीशी की मस्तानी आहे भी साथ मे बढ़ी.विजयंत ने उसकी कमर को थाम अपनी ओर खींचते हुए ज़ोर से धक्के लगाए तो नीशी 1 बार और झाड़ गयी & बिस्तर पे निढाल हो गिर गयी.विजयंत उसके उपर लेट गया & फिर उसे लिए-दिए उसने दाई करवट ली.लंड अभी भी चूत मे था,विजयंत ने अपनी दाहिनी बाँह नीशी की गर्दन के नीचे लगाई & बाई को उसके पेट पे डाला.नीशी ने गर्दन पीछे घुमाई & अपने बॉस को चूमने लगी.उसका दिल करा रहा था कि वो बस ऐसे ही पड़ी उसे चूमती रही.1 बार फिर विजयंत ने हल्के धक्को के साथ उसकी चुदाई शुरू कर दी.
नीशी को मजबूरन किस तोड़नी पड़ी क्यूकी चुदाई की वजह से उसका जिस्म झटके खा रहा था लेकिन उसके होंठो की प्यास बुझी कहा थी.उसने बिना लंड को निकलने देते हुए अपनी पीठ को बिस्तर पे जमा लिया & अपने हाथो मे विजयंत के चेहरे को भर उसे चूमने लगी.विजयंत भी उसकी मोटी छातियो को दबाते हुए उसकी ज़ुबान से ज़ुबान लड़ा रहा था.विजयंत ने अपने बाए बाज़ू को नीशी की भारी जाँघो के नीचे लगा के उन्हे 1 साथ हवा मे उठा दिया & उसे चोदने लगा.इस पोज़िशन मे उसका लंड जड़ तक तो उसकी चूत मे नही जा रहा था मगर फिर भी दोनो को मज़ा बहुत आ रहा था.तभी 1 बार फिर फोने बजा.नीशी ने बिना अपने बॉस के होंठो को आज़ाद किए अपने दाए हाथ से टटोलते हुए बिस्तर पे फोन को ढूंड लिया & उसे कान से लगाया,"उम्म..हेलो.....ओके."
"आप जीत गये.",उसने विजयंत के चेहरे को थाम चूम लिया.उसकी बात ने विजयंत को जोश को मानो दुगुना कर दिया.उसने अपनी दाई बाँह जोकि नीशी की गर्दन के नीचे पड़ी थी & बाई जो उसकी जाँघो को थामे थी,दोनो को मोड़ लेते हुए उसके जिस्म को अपनी ओर घुमा लिया,जैसे लेते हुए उसे गोद मे ले रहा हो & नीचे से बड़े क़ातिल धक्के लगाने लगा.नीशी की मस्ती का तो कोई हिसाब ही नही रहा,वो अपने बॉस के खूबसूरत चेहरे को चूमते हुए आहे भरते हुए उसकी चुदाई का मज़ा लेने लगी.
"..इस तस्वीर की नीलामी की शुरुआती कीमत 10 लाख तय की गयी है.क्या कोई है जो इस रकम से ज़्यादा बोली लगा सकता है?",सामने बाई कतार मे बैठे 1 शख्स ने अपना हाथ उपर उठाया.
"15 लाख..और कोई?",इस बार दाई कतार मे बैठे 1 शख्स ने हाथ उठाया.नीलामी करने वाला आक्षनियर मुस्कुराया.वो जानता था कि दोनो शख्स खुद के लिए नही बल्कि अपने मालिको के लिए बोली लगा रहे हैं.हॉल मे बैठे बाकी लोग भी हल्के-2 मुस्कुरा रहे थे.खेल शुरू जो हो चुका था & उन्हे ये देखना था कि इस बार कौन जीतता है!
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होटेल वाय्लेट शहर की सबसे ऊँची इमारत थी & उसकी 25वी मंज़िल पे खड़ा विजयंत मेहरा फ्लोर तो सीलिंग ग्लास से डेवाले को देख रहा था.शीशे की उस दीवार से उसे डेवाले शहर का बिल्कुल बीच का हिस्सा दिख रहा था जहा की आसमान छुति इमारतो की क़तारे लगी थी.वो उनमे से ज़्यादातर इमारतो का मालिक था & होटेल वाय्लेट का भी.विजयंत मेहरा ट्रस्ट ग्रूप का मालिक था.इस ग्रूप ने अपने कदम इनफ्रास्ट्रक्चर यानी कि सड़के,इमाराते,एरपोर्ट,बंदरगाह और ऐसी ही बुनियादी चीज़ो को बनाने के कारोबार से जमाए थे मगर आज ट्रस्ट ग्रूप ना केवल ये सब बनाता था बल्कि उसके मुल्क के 15 शहरो मे होटेल्स भी थे & पिच्छले 5 बरसो से वो फिल्म बनाने के भी धंधे मे उतर चुका था.
विजयंत के होंठो पे हल्की मुस्कुराहट खेल रही थी.यहा खड़े होके उसे अपनी ताक़त का एहसास होता था.इस शहर का बड़ा हिस्सा उसका था सिर्फ़ उसका.जहा वो खड़ा था वो वाय्लेट होटेल के उस सूयीट का बेडरूम था जिसे उसने खास खुद के लिए बनवाया था.ट्रस्ट ग्रूप का दफ़्तर होटेल से 300मीटर की दूरी पे 1 12 मंज़िला इमारत मे था.विजयंत वही से अपना कारोबार संभालता था मगर जब भी वो उस इमारत से उकता जाता था तो अपने इस सूयीट मे आ जाता था.सूयीट क्या 1 छ्होटा सा फ्लॅट ही था.1 बेडरूम,1 सा गेस्ट रूम जहा की 6-7 लोगो की मीटिंग करने का भी इंतेज़ाम था,1 अटॅच्ड बाथरूम & उसके साथ 1 किचेन थी.
"सर..",दरवाज़े पे दस्तक दे 1 लड़की अंदर दाखिल हुई.उसने ग्रे कलर की घुटनो तक की कसी फॉर्मल स्कर्ट & सफेद ब्लाउस पहना था.पैरो मे हाइ हील वाले जूते थे & बॉल 1 कसे जुड़े मे बँधे थे.ये लड़की देखने से होटेल की कर्मचारी नही लग रही थी,उनकी पोशाक वैसे भी अलग थी,"..1 घंटे मे वो शुरू होने वाला है.",वो आगे आई & हाथो मे पकड़ा फोन उसने बिस्तर पे रख दिया.विजयंत उसकी ओर पीठ किए खड़ा था.उसने बिना घूमे सर हिलाया अपनी बाहे उपर कर दी.लड़की मुस्कुराते हुए आगे आई.विजयंत ने 1 सफेद कमीज़ पहनी & काली पतलून थी.लड़की ने कमीज़ की बाजुओ के कफलिंक्स खोले & फिर विजयंत की कमीज़ के बटन खोलने लगी.अगले ही पल विजयंत का नंगा सीना उसके सामने था.
विजयंत मेहरा की उम्र 53 बरस थी मगर शायद ही उसे देख कोई उसकी असली उम्र बता सकता था.वो कही से भी 45 से ज़्यादा नही लगता था.उसका रंग इतना गोरा था की केयी लोगो को उसके विदेशी होने की ग़लतफहमी हो जाती थी.उसके बाल भी काले नही बल्कि कुच्छ भूरे रंग के थे जोकि कभी-2 सुनहले भी लगने लगते थे.चेहरे पे हल्की दाढ़ी & मूँछ थी.उसका कद 6'3" था & उसका कसरती जिस्म बहुत मज़बूत दिखता था.चमकते बालो से भरे उसके ग़ज़ब के चौड़े सीने को देख उस लड़की ने हल्के से अपने निचले होंठ को दांतो से दबाया.विजयंत मेहरा मर्दाना खूबसूरती की जीती-जागती मिसाल था.लड़की की धड़कने तेज़ हो गयी थी & उसके गाल भी लाल हो गये थे.उसने काँपते हाथो से विजयंत की पतलून उतारी.उसका बॉस अब केवल 1 अंडरवेर मे उसके सामने खड़ा था.उसने हाथ से उसे रुकने का इशारा किया.
"नीशी..",1 रोबिली & बहुत गहरी भारी,भरकम आवाज़ ने नीशी को जैसे नींद से जगाया.
"ज-जी.."
"क्या हुआ?ये कोई पहली बार तो नही.",विजयंत मुस्कुराया.
अफ!..इतनी दिलकश मुस्कान..& ये आवाज़..वो तो दफ़्तर मे उस से लेटर्स की डिक्टेशन लेते हुए ही अपनी टाँगो के बीच गीलापन महसूस करने लगती थी.
"नही सर.वो बात नही.",उसने अपनी पीठ विजयंत की तरफ की & अपने कपड़े उतारने लगी.लड़की का जिस्म बिल्कुल वैसा था जैसा विजयंत को पसंद था.बड़ी छातियाँ,चौड़ी गंद मगर सब कुच्छ कसा हुआ.2 साल से नीशी उसकी सेक्रेटरी थी & नौकरी जाय्न करने के 4 दिनो के अंदर ही वो अपने बॉस के बिस्तर मे भी ड्यूटी करने लगी थी.
"आहह..!",विजयंत ने उसे पीछे से बाहो मे भर लिया था & उसके पेट को सहलाते हुए उसके दाए कान मे जीभ फिरा दी थी.वो भी पीछे हो उसके जिस्म से लग गयी.उसने महसूस किया कि उसकी निचली पीठ पे उसके बॉस का गर्म लंड दबा हुआ था.उसका दिल और ज़ोर से धड़क उठा.ना जाने कितनी बार वो लंड उसकी चूत मे उतार चुका था मगर हर बार वो उसके एहसास से रोमांचित हुए बिना नही रहती थी.ये विजयंत के लंड का जादू था या उसकी शख्सियत का?..इस सवाल का जवाब ढूँढते हुए उसे 2 बरस हो गये थे मगर वो तय नही कर पाई थी & आज शायद आख़िरी बार वो उसके साथ हमबिस्तर हो रही थी.
"आज तुम्हारा आख़िरी दिन है ट्रस्ट ग्रूप के साथ,नीशी.",विजयंत ने कान के बाद उसके तपते गालो को चूमा था & फिर उसके नर्म लबो को & फिर उसे आगे जाने की ओर इशारा किया.नीशी आगे बढ़ी & बिस्तर पे पेट के बल लेट गयी,"सभी तैय्यारियाँ हो गयी शादी की?"
"जी.",10 दिन बाद नीशी की शादी थी & वो चेन्नई जा रही थी.हर लड़की की तरह वो भी बहुत खुश थी मगर 1 अफ़सोस था कि अब वो कभी उस बांके मर्द की चुदाई का लुफ्त नही उठा पाएगी,"उउन्न्ञन्....!",विजयंत ने उसके पैरो को उपर उठाया & बाए हाथ से थाम उसकी पिंदलियो को चूमने लगा,उसका दया हाथ निश्ी की मोटी गंद को सहला रहा था.निश्ी बिस्तर की चादर को बेचैनी से भींचते हुए हल्की-2 आहे ले रही थी.विजयंत का हाथ उसकी गंद की दरार को सहला रहा था.सहलाते हुए उसने हाथ को दरार मे तोड़ा अंदर घुसाया तो अपना सर उपर झटकते हुए निश्ी ने ज़ोर से आ भारी & उसकी जंघे खुद बा खुद फैल गयी.विजयंत ने उन्हे धीरे से तोड़ा और फैलाया & नीचे झुक गया.
"आन्न्न्नह.....उउन्न्ञणनह.....!",निश्ी की आहो के साथ-2 उसके हाथो तले बिस्तर की चादर की सलवटें बढ़ने लगी.विजयंत अपनी सेक्रेटरी की चिकनी चूत को पीछे से चाट रहा था.उसकी लपलपाति ज़ुबान उस नाज़ुक अंग से बह रहे रस को सुड़कते हुए उसके दाने को छेड़ रही थी.नीशी के जिस्म मे बिजली दौड़ रही थी.रोम-2 मे 1 अजीब सा मज़ा भर गया था.उसकी गंद की फांको को दबा के फैलाता हुआ विजयंत बड़ी गर्मजोशी से उसकी चूत पे अपनी जीभ चला रहा था & जब उसने उसने अपने होंठो को उसकी चूत पे दबा ज़ोर से चूसा तो नीशी चीख मारते हुए झाड़ गयी.तभी बिस्तर पे रखा फोन बज उठा.खुमारी मे झूमती नीशी ने थोड़ी देर बाद उसे उठाया & फिर सुन के रख दिया,"शुरू हो गया.",उसने जिस्म थोड़ा बाई तरफ मोड़ के सर पीछे घुमा के अपने बॉस को नशीली नज़रो से देखा.
उसकी फैली टाँगो के बीच विजयंत घुटनो पे खड़ा था.उसके चौड़े फौलादी सीने के सुनहले बालो & उसके मज़बूत बाजुओ को देख नीशी का जिस्म 1 बार फिर से कसक से भर उठा.बड़े-2 हाथो से विजयंत उसकी गंद को सहला रहा था & उस हल्की सी हरकत से भी उसके बाजुओ की मांसपेशिया फदक रही थी.उसने थोडा नीचे देखा & उसकी निगाह विजयंत के सपाट पेट पे गयी.पेट के बीचोबीच बालो की 1 मोटी लकीर नीचे जा रही थी.जब नीशी की नज़र वाहा पहुँची तो उसकी कसक 1 बार फिर चरम पे पहुँच गयी.टाँगो के बीच बालो से घिरा विजयंत का लंड अपने पूरे शबाब पे था.9.5 इंच लंबा & बहुत ही मोटा लंड 2 बड़े-2 आंडो के उपर सीधा तना खड़ा था.
नीशी अब तक 3-4 मर्दो से चुद चुकी थी जिनमे उसका मंगेतर भी शामिल था मगर उसने विजयंत जैसा लंड किसी के पास नही देखा था.उसने 1 बार फिर निचले होंठ को दाँत से दबाया & अपना सर बिस्तर मे च्छूपाते हुए अपनी कमर उपर कर अपनी गंद को हवा मे उठा दिया.हर बार ऐसा ही होता था.बंद कमरे मे विजयंत के साथ वो सब कुच्छ भूल जाती थी केवल अपने जिस्म की खुशी का ख़याल उसके ज़हन पे हावी रहता था.मुस्कुराते हुए विजयंत ने अपना तगड़ा लंड हाथ मे पकड़ा & उसे नीशी की जानी-पहचानी चूत मे घुसने लगा.
"ऊन्नह.....!",आज तक नीशी को उस लंबे,मोटे लंड की आदत नही पड़ी थी & आज भी शुरू मे उसे हल्का दर्द होता था लेकिन उसकी चूत की आख़िरी गहराइयो मे उतार वो लंड जब अपना कमाल दिखाता तो सारा दर्द हवा हो जाता & रह जाता सिर्फ़ मज़ा,बहुत सारा मज़ा!विजयंत ने अपनी सेक्रेटरी की नाज़ुक कमर थामी & धक्के लगाने शुरू कर दिए.वो बहुत गहरे मगर धीमे धक्के लगा रहा था.लंड बड़े हौले-2 नीशी की चूत को पूरे तरीके से चोद रहा था.वो मस्ती मे पागल हो चुकी थी.पूरे सूयीट मे उसकी आहें गूँज रही थी.बिस्तर की चादर को तो शायद वो अपने बेचैन हाथो से तार-2 कर देना चाहती थी.अपने बॉस के हर धक्के का जवाब वो अपनी कमर हिला अपनी गंद को पीछे धकेल के दे रही थी.
विजयंत को भी बहुत मज़ा आ रहा था.पिच्छले 2 बरसो मे नीशी की चूत ज़रा भी ढीली नही हुई थी.उसके धक्को की रफ़्तार बढ़ी तो नीशी की मस्तानी आहे भी साथ मे बढ़ी.विजयंत ने उसकी कमर को थाम अपनी ओर खींचते हुए ज़ोर से धक्के लगाए तो नीशी 1 बार और झाड़ गयी & बिस्तर पे निढाल हो गिर गयी.विजयंत उसके उपर लेट गया & फिर उसे लिए-दिए उसने दाई करवट ली.लंड अभी भी चूत मे था,विजयंत ने अपनी दाहिनी बाँह नीशी की गर्दन के नीचे लगाई & बाई को उसके पेट पे डाला.नीशी ने गर्दन पीछे घुमाई & अपने बॉस को चूमने लगी.उसका दिल करा रहा था कि वो बस ऐसे ही पड़ी उसे चूमती रही.1 बार फिर विजयंत ने हल्के धक्को के साथ उसकी चुदाई शुरू कर दी.
नीशी को मजबूरन किस तोड़नी पड़ी क्यूकी चुदाई की वजह से उसका जिस्म झटके खा रहा था लेकिन उसके होंठो की प्यास बुझी कहा थी.उसने बिना लंड को निकलने देते हुए अपनी पीठ को बिस्तर पे जमा लिया & अपने हाथो मे विजयंत के चेहरे को भर उसे चूमने लगी.विजयंत भी उसकी मोटी छातियो को दबाते हुए उसकी ज़ुबान से ज़ुबान लड़ा रहा था.विजयंत ने अपने बाए बाज़ू को नीशी की भारी जाँघो के नीचे लगा के उन्हे 1 साथ हवा मे उठा दिया & उसे चोदने लगा.इस पोज़िशन मे उसका लंड जड़ तक तो उसकी चूत मे नही जा रहा था मगर फिर भी दोनो को मज़ा बहुत आ रहा था.तभी 1 बार फिर फोने बजा.नीशी ने बिना अपने बॉस के होंठो को आज़ाद किए अपने दाए हाथ से टटोलते हुए बिस्तर पे फोन को ढूंड लिया & उसे कान से लगाया,"उम्म..हेलो.....ओके."
"आप जीत गये.",उसने विजयंत के चेहरे को थाम चूम लिया.उसकी बात ने विजयंत को जोश को मानो दुगुना कर दिया.उसने अपनी दाई बाँह जोकि नीशी की गर्दन के नीचे पड़ी थी & बाई जो उसकी जाँघो को थामे थी,दोनो को मोड़ लेते हुए उसके जिस्म को अपनी ओर घुमा लिया,जैसे लेते हुए उसे गोद मे ले रहा हो & नीचे से बड़े क़ातिल धक्के लगाने लगा.नीशी की मस्ती का तो कोई हिसाब ही नही रहा,वो अपने बॉस के खूबसूरत चेहरे को चूमते हुए आहे भरते हुए उसकी चुदाई का मज़ा लेने लगी.
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Wife big nipples, for your pleasure!
Comments please!!! Dirtier the better
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This update brings a Galaxy S10 Plus selfie feature to Galaxy S9 and S9 Plus
This update brings a Galaxy S10 Plus selfie feature to Galaxy S9 and S9 Plus
The latest update for Galaxy S9 and S9 Plus by Samsung brings the March 2019 security patch along with stability improvements and new features for the selfie camera.
The update brings a new selfie feature from the Galaxy S10 to the Galaxy S9. The feature will include a new 68-degree angle of view which will now be added in the default selfie camera setting of the Galaxy S9 and S9 Plus. The update includes:
Improvement in the front-facing camera
68-degree angle of view now set as default when taking the selfie
Optimization in the speed and transition of camera mode
Improved stability in WiFi, messages, Contacts and Video Editor
Improvements in the security of the device
Following the update, the selfie camera of Galaxy S9 and S9 Plus will now be set at a 68-degree angle of view by default, however, you can change it to 80-degree angle of view as well, if you want to include more people in your selfie-shot. So the new update now kind of includes a close-up view and a wide angle view. In terms of speed in the transition of the camera mode, the Samsung camera compared to other phones was painfully slow in opening the camera while switching to the front camera and vice-versa. This update will hopefully remove that bug and make the user experience more seamless.
The release of the Galaxy S10 Plus brought many exciting features but there was one flaw and which was the below average security feature in its face unlock. Many YouTubers including the popular Unbox Therapy highlighted and demonstrated how the face unlock feature of the new Galaxy S10 could be easily fooled.
This was always expected since Samsung’s Galaxy S10 was pretty similar to the native unlock system in the Android which didn’t require much assistance from the depth of field sensors that Apple has used for its Face ID which subsequently makes it much more secure compared to its Android counterparts. Since the native ‘face unlock’ feature in Android and subsequently the Galaxy S10 devices doesn’t use special sensors, it is therefore much easier to hack. Hopefully, with the improvement in the security of the device, the new update will remove this issue.
The size of the update is 300.62 MB and the build version for the Galaxy S9 and S9 Plus is G960FXXU2CSC8 and G965FXXU2CSC8 respectively. For downloading the update manually, you can go to Settings → Software Updates.
Source:-TechJuice
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