" होटल रंगीन महल "
में " सोफिया आलम नकवी "जिंदगी की रह गुजर की एक तन्हा मुसाफिर"
सभी गुरुजनों को नमन करती हूँ ,पाठको को ढेर सारा प्यार देती हूँ.
फिर हाजिर हूँ आप को आलमे मदहोशी में लेजाने के लिए एक नई कहानी के साथ.
में आप और मैखाना-दोस्तों मेरी कहानियाँ सच्ची घटनाओ पर आधारित होती है.हमारे आस पास हमारे समाज में जो बिभिन्य प्रकार की घटनाये घटित होती है, उन को निचोड़ कर में अपनी कहानी निकलती हूँ और सोफिया ना तड़का लगा देती हूँ .
अक्सर में आप लोगो से चैट के मध्यम से बात करती हूँ उस बार्तालाप से कुछ सवाल निकलते है जिनके जवाब में "चैट विथ सोफिया " में हर वीक देने की कोशिस करती हूँ .में आप से कहना चाहती हूँ एक बार
"चैट विथ सोफिया" भी पड़ लिया करो.
" होटल रंगीन महल "
" होटल रंगीन महल " दिल्ली एनसीआर से 20 कुलोमीटर दूर दिल्ली आगरा हाईवे पर बना एक होटल था. शहर से दूर होने के बजह से भीड़भाड़ काम होती थी, लेकिन प्रेमी जोड़े जिन को पुलिस के डिस्टर्व के बिना सुकून के कुछ पल गुजरने हो उन के लिए यह जगह स्वर्ग के काम नहीं थी.
सामान्यतः यह लोग दिनों के हिसाब से नहीं घंटो के हिसाब से रुकने आते थे,ज्यादातर नौजवान जोड़े होते थे, लेकिन आज कल ऐसी ऐसी दवाये आ गई जो बुजुर्गो को भी नौजवान बना देतीं है,सो बुजुर्ग नौजवान भी खूब आते थे .
यहाँ के कमरे सर्ब सुबिधा युक्त थे नये जमाने के सारे आधुनिक मनोंरजन के साधन जैसे टीवी, डीवीडी, ऐसी, गीजर, बाइफाई, और" कैमरे "वो भी आवाजों वाले,सभी कमरों में उपलब्ध थे, सामन्यतः यहाँ जो लोग रुकते थे वो केबल ऐसी और टीवी का है उपयोग करते थे, बाकि चीजों पर उनका धयान नहीं जाता था, और कैमरे ऐसी जगह लगाए गए थे की कोई चाहकर भी नहीं देख सकता था.
70 साल के सेठ लाला राम यहाँ के मालिक मैनेजर दोनों थे, भांग और पान खाने के बड़े शौकीन थे ,
50 साल का चुन्नी लाल सेठ जी का पुराना खानदानी नौकर था, जो होटल का बाबर्ची ,बेटर, गार्ड, माली, मालिक छोड़ कर सबकुछ था.
सेठ जी खानदानी पैसे वाले थे उन के दो बेटे थे जो अमरीका में सेटल हो चुके थे, सेठ जी के पुण्य कर्मो का फल था पत्नी 10 साल पहले गुजर चुकी थी, सेठ जी का बचपन से बस एक ही सपना था किसी बिदेशी सुंदरी के साथ सम्भोग करना. यही सपना उन की परेशानी भी था, क्यों के उन की दोनों बहुएं अमेरिकन थी उन के लड़के बार बार उनसे अमेरिका चलने को कहते थे, लेकिन विदेसी बहुओं को देख कर उन का सपना जोर मारने लगता था.इस लिए बो चाहते हुए भी अमेरिका नहीं जाते थे, लड़को से कहते थे बेटा में यहाँ से नहीं जा सकता क्यों के यहाँ तुम्हारी माँ की आत्मा मेरे साथ रहती है, में उस को छोड़ कर नहीं जा सकता, सालो से अमेरिका में रह रहे बेटे और बहुएं यह बात सुनकर सोचते थे के बाबू जी कितने महान है, जो अपनी पत्नी से उस के मारने के बाद भी कितना प्यार करते है, "संस्कारी बाबू जी" अब बेचारे वो क्या जाने के बहुओं के पिछवाड़े को देख कर "संस्कारी बाबू जी" का क्या हाल होता था वो तो 70 की उम्र हो गई थी सो थोड़ा कंट्रोल कर लेते थे कही 18 के होते तो कब का बाहूचोद बन गए होते.
और चुन्नी लाला सेठ जी का मुँह लगा पुराना नौकर जैसा के नाम से ही जाहिर है चुन्नी लाल,
नाम चुन्नी है लेकिन भांग खाके दिन भर लहगें में घुसा रहता है.