शिखा कक्षा 11 की छात्रा थी । शिखा और नीना की दोस्ती मशहूर थी, शादी व्याह हो या तीज त्योहार दोनोँ साथ ही देखी जाती थी ।
नीना बहुत शरारती थी वह खास कर उन लोगोँ को पागल बनाती थी जो उसे ललचाई हुई नजर से देखते थे, बस मीठी मीठी बातेँ करना और स्कर्ट को अदा से उठाकर जांघ दिखाना, बस फिर तो हर आदमी उसके इशारे पर बंदर की तरह नाचने लगता । इस खेल मेँ सीखा भी कभी कभार अहम रोल निभा देती ।
कई बार एैसा करते रहने पर भी उनकी घंटी कोई नहीँ बचा सका इस बात पर उन दोनोँ को बहुत नाराज था । मीना की दोस्ती ने शिखा को भी चंचल और निडर बना दिया था । बस शरारतेँ करना, उछलना कूदना और लोगोँ को अपने मटकते कूल्हे दिखाकर आकर्षित करना उनका मुख्य शौक था ।
लच्छू सिंह रिटायर फौजी था, सन 1962 की लड़ाई मेँ टांग पर गोली लगने की वजह से वह रिटायर हुआ था । उम्र 55 के करीब पहुंच चुकी थी लेकिन डील डॉल वही पुख्ता था, 50 किलो की बोरी एक ही झटके मेँ उठाकर फेंक देता था । आदमी बहुत दमदार था पत्नी का स्वर्गवास हो चुका था, दो पुत्र थे वह भी अपने अपने काम धंधोँ मेँ लग कर अपना अपना परिवार संभाल रहे थे ।
गवर्मेंट से अच्छी खासी पेंशन मिल जाती थी परंतु शौकिया तौर पर उसने अपने मकान में एक परचून की दुकान खोल रखी थी । शिखा और नीना पर उसकी बहुत नज़र थी । गोली लगने की वजह से वह थोड़ा लंगड़ा कर चलता था, करीब एक साल से शिखा और नीना तितली की तरह लक्ष्मण सिंह के आसपास मंडरा रही थीं । बहुत से महंगे महंगे गिफ्ट वे लच्छू सिंह से एैंठ चुकी थी । जब भी लच्छू सिंह उन पर हाथ रखता, तो वह मछली की तरह से फिसलकर दूर खड़ी हो जाती ।
बेचारा बुढ़े सियार की तरह इन छोटे छोटे अंगूरोँ को देखकर लार टपकाता रह जाता । लोगोँ ने उसे बहुत बार समझाया कि अंगूर खट्टे हैँ पर वह यह बात मानने को तैयार ही नहीँ था । बस वो अपने होठोँ से टपकती लार को साफ करते हुए यही कहता कि, "बकरी की माँ कब तक खैर मनाएगी, इस छुरी के नीचे एक ना एक दिन तो जरुर आएगी"। बस इसी वाक्य के साथ वह अपना ल** सहलाता हुआ खामोश बैठ जाता ।
मोहल्ले से कुछ ही दूर उसका मकान था, दुकान के साथ एक छोटा सा स्टोर भी था । जब कभी भी शिखा या मीना उसकी दुकान पर पहुंचती तो लच्छू सिंह की बांछै खिल जाती । वह एक साइड से अपनी लुंगी खिसका कर, टांग पर टांग रखकर बड़े मजे से बैठ जाता । इस तरह उसका लिंग मुंड थोड़ा सा बाहर चमकने लगता । बस इस तरह वह अपना काम करता और शिखा या मीना अपना मतलब सीधा कर चलती बनती । ऐसे बहुत दिन गुजर गए और बहुत सारा सामान शिखा और मीना ने ऐंठ लिया तो लच्छू सिंह बहुत झुंझलाया, "अब तो हिसाब बराबर कर ही लेना चाहिए" बस वह थान कर बैठ गया ।
शिखा भी उस दिन कुछ फुर्सत से थी, वह बैठे बैठे सोच रही थी क्योँ ना लच्छू सिंह से पटा कर एक चॉकलेट खाई जाए । बस मौका देखकर वह लच्छू सिंह की दुकान पर जा पहुंची । हमेशा की तरह उसे देख कर लच्छू सिंह खुश हो गया । "हूँ . . . कैसे याद आई लच्छू की बेबी ?" वह शिखा की मस्त चूचियाँ देखते हुए मुस्कुराया ।
"बस लच्छू जी, वक्त बेवक्त आपकी याद आ ही जाती है । "
" हाय मर जाऊँ ! " वह चलता हुआ बोला, "अब कैसे याद आई हमारी ?"
"बस ऐसे ही तुंहारे ख्याल मेँ गुम थी, फिर सोचा कि चलो चॉकलेट के बहाने लच्छू जी को देख आया जाए "
" कुर्बान जाऊँ तेरी जवानी पर ", वह अपने हाथ मलता हुआ उठ खड़ा हुआ, "आज तो मैन्ने तेरे लिए ऐसी चॉकलेट का इंतजाम किया है कि बस तुझे खाते ही मजा आ जाएगा"
"ऐसी बात है क्या ? " शिखा खुश होते हुए बोली, "जल्दी से दे दो फिर, मुझे देर हो रही है" ।
"क्योँ जल्दी मचा रही है ? ", वह दुकान से बाहर आ गया, " यह चॉकलेट मैन्ने सिर्फ तेरे ही लिए संभाल कर रखी है, मीना भी मांग रही थी पर मैन्ने टाल दिया । "
इतना कह कर लच्छू ने दुकान का शटर गिराया और दुकान के पिछवाड़े मेँ बने स्टोर की तरफ चल पड़ा ।
"यह कहाँ जा रहे हो तुम ?", शिखा ने हैरान होकर पूछा, "क्या चाॅकलेट दुकान पर नहीँ है ?"
"वह सिर्फ तेरे लिए है, भला मैँ उसे दुकान पर कैसे रख सकता था । स्टोर मेँ संभाल कर रखा है, चल मैँ तुझे दे देता हूँ । "
शिखा अच्छी तरह जानती थी कि वह बहुत ठरकी है । वह बस इसी वजह से थोड़ा झिझक रही थी ।
" नहीँ तो फिर रहने दो, फिर कभी ले लूंगी", ऐसा कह कर शिखा ने निकल जाना चाहा । "ओह हो मैन्ने अब तेरी वजह से ही दुकान बंद कर दी है और तू कहती है कि फिर कभी, अभी नहीँ तो फिर कभी नहीँ, अच्छे बच्चे जिद नहीँ करते चुप चाप मेरे पीछे आ जा"
शिखा ना चाहते हुए भी दुकान के पिछवाड़े मेँ बने उस स्टोर की तरफ चल दी । शायद उसने यही सोचा होगा कि ये बुड्ढा भला मेरा क्या बिगाड़ लेगा । जो होगा देखा जाएगा, इसे तो मैँ आसानी से देख लूँगी ।
नीना बहुत शरारती थी वह खास कर उन लोगोँ को पागल बनाती थी जो उसे ललचाई हुई नजर से देखते थे, बस मीठी मीठी बातेँ करना और स्कर्ट को अदा से उठाकर जांघ दिखाना, बस फिर तो हर आदमी उसके इशारे पर बंदर की तरह नाचने लगता । इस खेल मेँ सीखा भी कभी कभार अहम रोल निभा देती ।
कई बार एैसा करते रहने पर भी उनकी घंटी कोई नहीँ बचा सका इस बात पर उन दोनोँ को बहुत नाराज था । मीना की दोस्ती ने शिखा को भी चंचल और निडर बना दिया था । बस शरारतेँ करना, उछलना कूदना और लोगोँ को अपने मटकते कूल्हे दिखाकर आकर्षित करना उनका मुख्य शौक था ।
लच्छू सिंह रिटायर फौजी था, सन 1962 की लड़ाई मेँ टांग पर गोली लगने की वजह से वह रिटायर हुआ था । उम्र 55 के करीब पहुंच चुकी थी लेकिन डील डॉल वही पुख्ता था, 50 किलो की बोरी एक ही झटके मेँ उठाकर फेंक देता था । आदमी बहुत दमदार था पत्नी का स्वर्गवास हो चुका था, दो पुत्र थे वह भी अपने अपने काम धंधोँ मेँ लग कर अपना अपना परिवार संभाल रहे थे ।
गवर्मेंट से अच्छी खासी पेंशन मिल जाती थी परंतु शौकिया तौर पर उसने अपने मकान में एक परचून की दुकान खोल रखी थी । शिखा और नीना पर उसकी बहुत नज़र थी । गोली लगने की वजह से वह थोड़ा लंगड़ा कर चलता था, करीब एक साल से शिखा और नीना तितली की तरह लक्ष्मण सिंह के आसपास मंडरा रही थीं । बहुत से महंगे महंगे गिफ्ट वे लच्छू सिंह से एैंठ चुकी थी । जब भी लच्छू सिंह उन पर हाथ रखता, तो वह मछली की तरह से फिसलकर दूर खड़ी हो जाती ।
बेचारा बुढ़े सियार की तरह इन छोटे छोटे अंगूरोँ को देखकर लार टपकाता रह जाता । लोगोँ ने उसे बहुत बार समझाया कि अंगूर खट्टे हैँ पर वह यह बात मानने को तैयार ही नहीँ था । बस वो अपने होठोँ से टपकती लार को साफ करते हुए यही कहता कि, "बकरी की माँ कब तक खैर मनाएगी, इस छुरी के नीचे एक ना एक दिन तो जरुर आएगी"। बस इसी वाक्य के साथ वह अपना ल** सहलाता हुआ खामोश बैठ जाता ।
मोहल्ले से कुछ ही दूर उसका मकान था, दुकान के साथ एक छोटा सा स्टोर भी था । जब कभी भी शिखा या मीना उसकी दुकान पर पहुंचती तो लच्छू सिंह की बांछै खिल जाती । वह एक साइड से अपनी लुंगी खिसका कर, टांग पर टांग रखकर बड़े मजे से बैठ जाता । इस तरह उसका लिंग मुंड थोड़ा सा बाहर चमकने लगता । बस इस तरह वह अपना काम करता और शिखा या मीना अपना मतलब सीधा कर चलती बनती । ऐसे बहुत दिन गुजर गए और बहुत सारा सामान शिखा और मीना ने ऐंठ लिया तो लच्छू सिंह बहुत झुंझलाया, "अब तो हिसाब बराबर कर ही लेना चाहिए" बस वह थान कर बैठ गया ।
शिखा भी उस दिन कुछ फुर्सत से थी, वह बैठे बैठे सोच रही थी क्योँ ना लच्छू सिंह से पटा कर एक चॉकलेट खाई जाए । बस मौका देखकर वह लच्छू सिंह की दुकान पर जा पहुंची । हमेशा की तरह उसे देख कर लच्छू सिंह खुश हो गया । "हूँ . . . कैसे याद आई लच्छू की बेबी ?" वह शिखा की मस्त चूचियाँ देखते हुए मुस्कुराया ।
"बस लच्छू जी, वक्त बेवक्त आपकी याद आ ही जाती है । "
" हाय मर जाऊँ ! " वह चलता हुआ बोला, "अब कैसे याद आई हमारी ?"
"बस ऐसे ही तुंहारे ख्याल मेँ गुम थी, फिर सोचा कि चलो चॉकलेट के बहाने लच्छू जी को देख आया जाए "
" कुर्बान जाऊँ तेरी जवानी पर ", वह अपने हाथ मलता हुआ उठ खड़ा हुआ, "आज तो मैन्ने तेरे लिए ऐसी चॉकलेट का इंतजाम किया है कि बस तुझे खाते ही मजा आ जाएगा"
"ऐसी बात है क्या ? " शिखा खुश होते हुए बोली, "जल्दी से दे दो फिर, मुझे देर हो रही है" ।
"क्योँ जल्दी मचा रही है ? ", वह दुकान से बाहर आ गया, " यह चॉकलेट मैन्ने सिर्फ तेरे ही लिए संभाल कर रखी है, मीना भी मांग रही थी पर मैन्ने टाल दिया । "
इतना कह कर लच्छू ने दुकान का शटर गिराया और दुकान के पिछवाड़े मेँ बने स्टोर की तरफ चल पड़ा ।
"यह कहाँ जा रहे हो तुम ?", शिखा ने हैरान होकर पूछा, "क्या चाॅकलेट दुकान पर नहीँ है ?"
"वह सिर्फ तेरे लिए है, भला मैँ उसे दुकान पर कैसे रख सकता था । स्टोर मेँ संभाल कर रखा है, चल मैँ तुझे दे देता हूँ । "
शिखा अच्छी तरह जानती थी कि वह बहुत ठरकी है । वह बस इसी वजह से थोड़ा झिझक रही थी ।
" नहीँ तो फिर रहने दो, फिर कभी ले लूंगी", ऐसा कह कर शिखा ने निकल जाना चाहा । "ओह हो मैन्ने अब तेरी वजह से ही दुकान बंद कर दी है और तू कहती है कि फिर कभी, अभी नहीँ तो फिर कभी नहीँ, अच्छे बच्चे जिद नहीँ करते चुप चाप मेरे पीछे आ जा"
शिखा ना चाहते हुए भी दुकान के पिछवाड़े मेँ बने उस स्टोर की तरफ चल दी । शायद उसने यही सोचा होगा कि ये बुड्ढा भला मेरा क्या बिगाड़ लेगा । जो होगा देखा जाएगा, इसे तो मैँ आसानी से देख लूँगी ।