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एक बहिन को, उसके भाई के सामने नंगा नही होना चाहिए था।”

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इस स्थिति मे  राखी  की गोरी-गोरी टांगे, मुझे देखने को मिल जाती थी और उसकी साडी भी सिमट कर उसके ब्लाउस के बीच मे आ जाती थी और उसके मोटे-मोटे चुंचो के, ब्लाउस के पर से दर्शन होते रहते थे। कई बार उसकी साडी जांघो के उपर तक उठ जाती थी और ऐसे समय, मे उसकी गोरी-गोरी, मोटी-मोटी केले के तने जैसी चिकनी जांघो को देख कर मेरा लंड खडा हो जाता था। मेरे मन मे कई सवाल उठने लगते। फिर मैं अपना सिर झटक कर काम करने लगता था। मैं और बहिन कपडो की सफाई के साथ-साथ तरह-तरह की गांव भर की बाते भी करते जाते। कई बार हमे उस सुम-सान जगह पर ऐसा कुछ् दीख जाता था जीसको देख के हम दोनो एक दुसरे से अपना मुंह छुपाने लगते थे। कपडे धोने के बाद हम वहीं पर नहाते थे, और फिर साथ लाया हुआ खाना खा, नदी के किनारे सुखाये हुए कपडे को इकट्ठा कर के घर वापस लौट जाते थे। मैं तो खैर लुन्गी पहन कर नदी के अंदर कमर तक पानी में नहाता था, मगर राखी  नदी के किनारे ही बैठ कर नहाती थी। नहाने के लिये राखी  सबसे पहले अपनी साडी उतारती थी फिर अपने पेटिकोट के नाडे को खोल कर, पेटिकोट उपर को सरका कर अपने दांत से पकड लेती थी।  इस तरीके से उसकी पीठ तो दिखती थी मगर आगे से ब्लाउस पुरा ढक जाता था। फिर वो पेटिकोट को दांत से पकडे हुए ही अंदर हाथ डाल कर अपने ब्लाउस को खोल कर उतारती थी और फिर पेटिकोट को छाती के उपर बांध देती थी। जीससे उसके चुंचे पुरी तरह से पेटिकोट से ढक जाते थे, कुछ भी नजर नही आता था, और घुटनो तक पुरा बदन ढक जाता था। फिर वो वहीं पर नदी के किनारे बैठ कर, एक बडे से जग से पानी भर-भर के पहले अपने पुरे बदन को रगड-रगड कर साफ करती थी और साबुन लगाती थी, फिर नदी में उतर कर नहाती थी।  राखी  की देखा-देखी, मैने भी पहले नदी के किनारे बैठ कर अपने बदन को साफ करना सुरु कर दीया, फिर मैं नदी में डुबकी लगा के नहाने लगा। मैं जब साबुन लगाता तो अपने हाथो को अपनी लुन्गी में घुसा के पुरे लंड और गांड पर चारो तरफ घुमा-घुमा के साबुन लगा के सफाई करता था। क्योंकि मैं भी  राखी  की तरह बहुत सफाई पसंद था।

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जब मैं ऐसा कर रहा होता तो मैने कई बार देखा की  राखी  बडे गौर से मुझे देखती रहती थी, और अपने पैर की एडीयां पत्थर पर धीरे-धीरे रगड के साफ करती होती। मैं सोचता था वो शायद इसलिये देखती है की, मैं ठीक से सफाई करता हुं या नही। इसलिये मैं भी बडे आराम से खूब दीखा-दीखा के साबुन लगाता था की कहीं डांट ना सुनने को मिल जाये की, ठीक से साफ-सफाई का ध्यान नही रखता हुं मैं। मैं अपनी लुन्गी के भितर पुरा हाथ डाल के अपने लौडे को अच्छे तरीके से साफ करता था। इस काम में मैने नोटिस किया की, कई बार मेरी लुन्गी भी इधर-उधर हो जाती थी। जीस से  राखी  को मेरे लंड की एक-आध झलक भी दीख जाती थी। जब पहली बार ऐसा हुआ, तो मुझे लगा की शायद  राखी  डांटेगी, मगर ऐसा कुछ नही हुआ। तब निश्चींत हो गया, और मजे से अपना पुरा ध्यान साफ सफाई पर लगाने लगा। राखी  की सुंदरता देख कर मेरा भी मन कई बार ललचा जाता था। और मैं भी चाहता था की मैं उसे सफाई करते हुए देखुं। पर वो ज्यादा कुछ देखने नही देती थी और घुटनो तक की सफाई करती थी, और फिर बडी सावधानी से अपने हाथो को अपने पेटिकोट के अंदर ले जा कर अपनी छाती की सफाई करती। आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। जैसे ही मैं उसकी ओर देखता तो, वो अपना हाथ छाती में से निकाल कर अपने हाथो की सफाई में जुट जाती थी। इसलिये मैं कुछ नही देख पाता था और चुंकि वो घुटनो को मोड के अपनी छाती से सटाये हुए होती थी, इसलिये पेटिकोट के उपर से छाती की झलक मिलनी चाहीए, वो भी नही मिल पाती थी। इसी तरह जब वो अपने पेटिकोट के अंदर हाथ घुसा कर अपनी जांघो और उसके बीच की सफाई करती थी। ये ध्यान रखती की मैं उसे देख रहा हुं या नही। जैसे ही मैं उसकी ओर घुमता, वो झट से अपना हाथ नीकाल लेती थी, और अपने बदन पर पानी डालने लगती थी। मैं मन-मसोस के रह जाता था। एक दिन सफाई करते-करते  राखी  का ध्यान शायद मेरी तरफ से हट गया था। और बडे आराम से अपने पेटिकोट को अपने जांघो तक उठा के सफाई कर रही थी। उसकी गोरी, चीकनी जांघो को देख कर मेरा लंड खडा होने लगा और मैं, जो की इस वक्त अपनी लुन्गी को ढीला कर के अपने हाथो को लुन्गी के अंदर डाल कर अपने लंड की सफाई कर रहा था, धीरे-धीरे अपने लंड को मसलने लगा। तभी अचानक  राखी  की नजर मेरे उपर गई, और उसने अपना हाथ नीकाल लिया और अपने बदन पर पानी डालती हुइ बोली,
” क्या कर रहा है ? जल्दी से नहा के काम खतम कर। ”
मेरे तो होश ही उड गये, और मैं जल्दी से नदी में जाने के लिये उठ कर खडा हो गया, पर मुझे इस बात का तो ध्यान ही नही रहा की मेरी लुन्गी तो खुली हुइ है, और मेरी लुन्गी सरसराते हुए नीचे गीर गई। मेरा पुरा बदन नन्गा हो गया और मेरा ८।५ ईंच का लंड जो की पुरी तरह से खडा था, धूप की रोशनी में नजर आने लगा। मैने देखा की राखी  एक पल के लिये चकित हो कर मेरे पुरे बदन और नन्गे लंड की ओर देखती रह गई। मैने जल्दी से अपनी लुन्गी उठाइ और चुप-चाप पानी में घुस गया। मुझे बडा डार लग रहा था की अब क्या होगा। अब तो पक्की डांट पडेगी। मैने कनखियों से  आभा की ओर देखा तो पाया की वो अपने सिर को नीचे कीये हल्के-हल्के मुस्कुरा रही है। और अपने पैरो पर अपने हाथ चला के सफाई कर रही है। मैने राहत की सांस ली। और चुप-चाप नहाने लगा। उस दिन हम ज्यादातर चुप-चाप ही रहे। घर वापस लौटते वक्त भी राखी  ज्यादा नही बोली। दुसरे दिन से मैने देखा की  राखी , मेरे साथ कुछ ज्यादा ही खुल कर हंसी मजाक करती रहती थी, और हमारे बीच डबल मीनींग (दोहरे अर्थो) में भी बाते होने लगी थी। आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। पता नही  राखी  को पता था या नही पर मुझे बडा मजा आ रहा था। मैने जब भी किसी के घर से कपडे ले कर वापस लौटता तो  राखी  बोलती,
“क्यों, रधिया के कपडे भी लाया है धोने के लिये, क्या ?”
तो मैं बोलता, “हां ।”,
इस पर वो बोलती,
“ठीक है, तु धोना उसके कपडे बडा गन्दा करती है। उसकी सलवार तो मुझसे धोई नही जाती।”
फिर् पुछती थी,
“अंदर के कपडे भी धोने के लिये दिये है, क्या ?”
अंदर के कपडो से उसका मतलब पेन्टी और ब्रा या फिर अंगिया से होता था। मैं कहता, ” नही. “, तो इस पर हसने लगती और कहती,
“तु लडका है ना, शायद इसलिये तुझे नही दिये होन्गे, देख अगली बार जब मैं मांगने जाउन्गी, तो जरुर देगी।”
फिर, अगली बार जब वो कपडे लाने जाती तो सच-मुच में, वो उसकी पेन्टी और अंगिया ले के आती थी और बोलती,
“देख, मैं ना कहती थी की, वो तुझे नही देगी और मुझे दे देगी, तु लडका है ना, तेरे को देने में शरमाती होगी, फिर तु तो अब जवान भी हो गया है।”
मैं अन्जान बना पुछता की क्या देने में शरमाती है रधिया, तो मुझे उसकी पेन्टी और ब्रा या अंगिया फैला कर दिखाती और मुस्कुराते हुए बोलती,
“ले, खुद ही देख ले।”
इस पर मैं शरमा जाता और कनखियों से देख कर मुंह घुमा लेता तो, वो बोलती,
“अरे, शरमाता क्यों है ?, ये भी तेरे को ही धोना पडेगा।”,
कह के हसने लगती।
हालांकि, सच में ऐसा कुछ नही होता और ज्यादातर मर्दो के कपडे मैं और औरतों के  आभा ही धोया करती थी। क्योंकि, उस में ज्यादा मेहनत लगती थी। पर पता नहीं क्यों  राखी , अब कुछ दिनो से इस तरह की बातों में ज्यादा दिलचस्पी लेने लगी थी। मैं भी चुप-चाप उसकी बातें सुनता रहता और मजे से जवाब देता रहता था। जब हम नदी पर कपडे धोने जाते तब भी मैं देखता था की, मां, अब पहले से थोडी ज्यादा खुले तौर पर पेश आती थी। पहले वो मेरी तरफ पीठ करके अपने ब्लाउस को खोलती थी, और पेटिकोट को अपनी छाती पर बांधने के बाद ही मेरी तरफ घुमती थी। पर अब वो इस पर ध्यान नही देती, और मेरी तरफ घुम कर अपने ब्लाउस को खोलती और मेरे ही सामने बैठ कर मेरे साथ ही नहाने लगती। जबकि पहले वो मेरे नहाने तक इन्तेजार करती थी और जब मैं थोडा दूर जा के बैठ जाता, तब पुरा नहाती थी। मेरे नहाते वक्त उसका मुझे घुरना बा-दस्तूर जारी था। मुझ में भी अब हिम्मत आ गई थी और मैं भी, जब वो अपनी छातियों की सफाई कर रही होती तो उसे घुर कर देखता रहता।  आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। राखी  भी मजे से अपने पेटिकोट को जांघो तक उठा कर, एक पत्थर पर बैठ जाती, और साबुन लगाती, और ऐसे एक्टींग करती जैसे मुझे देख ही नही रही है। उसके दोनो घुटने मुडे हुए होते थे, और एक पैर थोडा पहले आगे पसारती और उस पर पुरा जांघो तक साबुन लगाती थी। फिर पहले पैर को मोडे कर, दुसरे पैर को फैला कर साबुन लगाती। पुरा अंदर तक साबुन लगाने के लिये, वो अपने घुटने मोडे रखती और अपने बांये हाथ से अपने पेटिकोट को थोडा उठा के, या अलग कर के दाहिने हाथ को अंदर डाल के साबुन लगाती। मैं चुंकि थोडी दुर पर उसके बगल में बैठा होता, इसलिये मुझे पेटिकोट के अंदर का नजारा तो नही मिलता था। जीसके कारण से मैं मन-मसोस के रह जाता था कि, काश मैं सामने होता। पर इतने में ही मुझे गजब का मजा आ जाता था। उसकी नन्गी, चीकनी-चीकनी जांघे उपर तक दीख जाती थी। राखी  अपने हाथ से साबुन लगाने के बाद बडे मग को उठा के उसका पानी सीधे अपने पेटिकोट के अंदर डाल देती और दुसरे हाथ से साथ ही साथ रगडती भी रहती थी। ये इतना जबरदस्त सीन होता था की मेरा तो लंड खडा हो के फुफकारने लगता और मैं वहीं नहाते-नहाते अपने लंड को मसलने लगता। जब मेरे से बरदास्त नही होता तो मैं सीधा नदी में, कमर तक पानी में उतर जाता और पानी के अंदर हाथ से अपने लंड को पकड कर खडा हो जाता, और  राखी  की तरफ घुम जाता। जब वो मुझे पानी में इस तरह से उसकी तरफ घुम कर नहाते देखती तो मुस्कुरा के मेरी तरफ् देखती हुई बोलती,
“ज्यादा दुर मत जाना, किनारे पर ही नहा ले। आगे पानी बहुत गहरा है।”मैं कुछ नही बोलता और अपने हाथो से अपने लंड को मसलते हुए नहाने की एक्टींग करता रहता। इधर राखी  मेरी तरफ देखती हुइ, अपने हाथो को उपर उठा-उठा के अपनी कांख की सफाई करती। कभी अपने हाथो को अपने पेटिकोट में घुसा के छाती को साफ करती, कभी जांघो के बीच हाथ घुसा के खुब तेजी से हाथ चलाने लगती, दुर से कोई देखे तो ऐसा लगेगा के मुठ मार रही है, और शायद मारती भी होगी। कभी-कभी, वो भी खडे हो नदी में उतर जाती और ऐसे में उसका पेटिकोट, जो की उसके बदन से चीपका हुआ होता था, गीला होने के कारण मेरी हालत और ज्यादा खराब कर देता था। पेटिकोट चीपकने के कारण उसकी बडी-बडी चुचियां नुमायां हो जाती थी। कपडे के उपर से उसके बडे-बडे, मोटे-मोटे निप्पल तक दीखने लगते थे। पेटिकोट उसके चुतडों से चीपक कर उसकी गांड की दरार में फसा हुआ होता था, और उसके बडे-बडे चुतड साफ-साफ दीखाई देते रहते थे। वो भी कमर तक पानी में मेरे ठीक सामने आ के खडी हो के डुबकी लगाने लगती और मुझे अपने चुचियों का नजारा करवाती जाती। मैं तो वहीं नदी में ही लंड मसल के मुठ मार लेता था। हालांकि मुठ मारना मेरी आदत नही थी। घर पर मैं ये काम कभी नही करता था, पर जब से  राखी  के स्वभाव में परिवर्तन आया था, नदी पर मेरी हालत ऐसी हो जाती थी की, मैं मजबुर हो जाता था। आप ये कहानी निऊ हिंदी सेक्स स्टोरी डॉट कॉम पर पड़ रहे है। अब तो घर पर मैं जब भी ईस्त्री करने बैठता, तो मुझे बोलती,देख, ध्यान से ईस्त्री करियो। पिछली बार श्यामा बोल रही थी की, उसके ब्लाउस ठीक से ईस्त्री नही थे।”मैं भी बोल पडता,ठीक है, कर दुन्गा। इतना छोटा-सा ब्लाउस तो पहनती है, ढंग से ईस्त्री भी नही हो पाती। पता नही कैसे काम चलाती है, इतने छोटे-से ब्लाउस में ?”
तो  राखी  बोलती,अरे, उसकी छातियां ज्यादा बडी थोडे ही है, जो वो बडा ब्लाउस पहनेगी, हां उसकी सांस के ब्लाउस बहुत बडे-बडे है। बुढीया की छाती पहाड जैसी है।”


कह कर  आभा हसने लगती। फिर मेरे से बोलती,
“तु सबके ब्लाउस की लंबाई-चौडाई देखता रहता है, क्या ? या फिर ईस्त्री करता है।”
मैं क्या बोलता, चुप-चाप सिर झुका कर ईस्त्री करते हुए धीरे से बोलता,
“अरे, देखता कौन है ?, नजर चली जाती है, बस।”
ईस्त्री करते-करते मेरा पुरा बदन पसीने से नहा जाता था। मैं केवल लुन्गी पहने ईस्त्री कर रहा होता था।  राखी  मुझे पसीने से नहाये हुए देख कर बोलती,
“छोड अब तु कुछ आराम कर ले, तब तक मैं ईस्त्री करती हुं.”
राखी ये काम करने लगती। थोडी ही देर में उसके माथे से भी पसीना चुने लगता और वो अपनी साडी खोल कर एक ओर फेंक देती और बोलती,
“बडी गरमी है रे, पता नही तु कैसे कर लेता है, इतने कपडो की ईस्त्री,,? मेरे से तो ये गरमी बरदास्त नही होती।”
इस पर मैं वहीं पास बैठा उसके नन्गे पेट, गहरी नाभी और मोटे चुंचो को देखता हुआ बोलता,
“ठंडी कर दुं, तुझे ?”
“कैसे करेगा ठंडी ?”
“डण्डेवाले पंखे से। मैं तुझे पंखा झाल देता हुं, फेन चलाने पर तो ईस्त्री ही ठंडी पड जायेगी।”
“रहने दे, तेरे डण्डेवाले पंखे से भी कुछ नही होगा, छोटा-सा तो पंखा है तेरा।”,
कह कर अपने हाथ उपर उठा कर, माथे पर छलक आये पसीने को पोंछती तो मैं देखता की उसकी कांख पसीने से पुरी भीग गई है, और उसकी गरदन से बहता हुआ पसीना उसके ब्लाउस के अंदर, उसकी दोनो चुचियों के बीच की घाटी मे जा कर, उसके ब्लाउस को भीगा रहा होता। घर के अंदर, वैसे भी वो ब्रा तो कभी पहनती नही थी। इस कारण से उसके पतले ब्लाउस को पसिना पुरी तरह से भीगा देता था और, उसकी चुचियां उसके ब्लाउस के उपर से नजर आती थी। कई बार जब वो हल्के रंग का ब्लाउस पहनी होती तो उसके मोटे-मोटे भुरे रंग के निप्पल नजर आने लगते। ये देख कर मेरा लंड खडा होने लगता था। कभी-कभी वो ईस्त्री को एक तरफ रख के, अपने पेटिकोट को उठा के पसीना पोंछने के लिये अपने सिर तक ले जाती और मैं ऐसे ही मौके के इन्तेजार में बैठा रहता था। क्योंकि इस वक्त उसकी आंखे तो पेटिकोट से ढक जाती थी, पर पेटिकोट उपर उठने के कारण उसकी टांगे पुरी जांघ तक नन्गी हो जाती थी, और मैं बिना अपनी नजरों को चुराये उसकी गोरी-चीट्टी, मखमली जांघो को तो जी भर के देखता था। राखी , अपने चेहरे का पसीना अपनी आंखे बंध कर के पुरे आराम से पोंछती थी, और मुझे उसके मोटे कन्दली के खम्भे जैसी जांघो का पुरा नजारा दिखाती थी। गांव में औरते साधारणतया पेन्टी नही पहनती है। कई बार ऐसा हुआ की मुझे उसके झांठो की हलकी-सी झलक देखने को मिल जाती। जब वो पसीना पोंछ के अपना पेटिकोट नीचे करती, तब तक मेरा काम हो चुका होता और मेरे से बरदास्त करना संभव नही हो पाता। मैं जल्दी से घर के पिछवाडे की तरफ भाग जाता, अपने लंड के खडेपन को थोडा ठंडा करने के लिये। जब मेरा लंड डाउन हो जाता, तब मैं वापस आ जाता।  राखी  पुछती,
“कहां गया था ?”
तो मैं बोलता,
“थोडी ठंडी हवा खाने, बडी गरमी लग रही थी।”
“ठीक किया। बदन को हवा लगाते रहना चाहिये, फिर तु तो अभी बडा हो रहा है। तुझे और ज्यादा गरमी लगती होगी।”
“हां, तुझे भी तो गरमी लग रही होगी  राखी  ? जा तु भी बाहर घुम कर आ जा। थोडी गरमी शांत हो जायेगी।”
और उसके हाथ से ईस्त्री ले लेता। पर वो बाहर नही जाती और वहीं पर एक तरफ मोढे पर बैठ जाती। अपने पैर घुटनो के पास से मोड कर और अपने पेटिकोट को घुटनो तक उठा के बीच में समेट लेती।  राखी  जब भी इस तरीके से बैठती थी तो मेरा ईस्त्री करना मुश्कील हो जाता था। उसके इस तरह बैठने से उसकी, घुटनो से उपर तक की जांघे और दीखने लगती थी।

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