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पुलिस वाले जाटों ने अंधेरी रात में चोदा

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सभी पाठकों को मेरा नमस्कार.. मैं हिमांशु बजाज आज एक और कहानी के साथ आप सबके सामने हाज़िर हूँ, यह कहानी एक पाठक की है जिनका मेल मुझे मिला और उन्होंने कहा- मैं भी काफी समय अपनी कहानी लिखने के लिए सोच रहा था लेकिन समझ नहीं पा रहा था शुरुआत कैसे करुं..
तो उन्होंने उनके साथ जो भी घटना घटी और जो भी बातें विस्तार में उन्होंने मुझे बताई.. वो मैं आपको अपने शब्दों में बताने जा रहा हूँ.. उन्हीं की तरफ से..
तो कहानी की शुरुआत करता हूँ!


मेरा नाम राहुल है, मैं 21 साल का हूँ, मेरा रंग गोरा है और शरीर भी भरा भरा है लेकिन मर्दाना न होकर जनाना बनावट का है यानि त्वचा काफी नर्म और कोमल है, कोई मुझे चुटकी से हल्का सा भी काट लेता है तो दो दिन तक लाल रहता है वहाँ.. इसी वजह से मेरे साथी संगी मुझसे मज़ाक करते हुए मुझे छेड़ते रहते हैं लेकिन मैं भी सबको हंसी में टाल देता हूँ।
मुझे मर्दों में रुचि है इस बात का मुझे तब पता चला मैं आठवीं क्लास में था.. खैर वो एक लंबी कहानी है फिर कभी बताऊँगा… फिलहाल मैं अभी की ही एक घटना बता रहा हूँ।
मैं दिल्ली में जॉब करता हूँ और नजफगढ़ के दिचाऊं गांव में अपने मामा के यहाँ रह रहा हूँ। मैं ऑफिस से घर और घर से ऑफिस बस इतना ही बाहर निकलता हूँ इसलिए गांव में एक दो घरों के अलावा किसी को नहीं जानता और न ही कोई मुझे जानता है।

बात लगभग दो महीने पहले की है, मार्च का पहला या दूसरा हफ्ता चल रहा था और मैं ऑफिस से घर जा रहा था। बस ने मुझे नांगलोई छोड़ दिया और मैं नजफगढ़ जाने वाली सवारी का इंतज़ार करने लगा..
रात के 11.30 बज चुके थे और रात काफी हो गई थी.. गांव का माहौल होने के कारण सड़क पर एक्का दुक्का वाहन ही दिख रहे थे और रोज़ की तरह मेरे चेहरे पर चिंता के भाव थे कि इस समय कोई सवारी मिलेगी या नहीं।

कई बार तो ऐसा होता था कि किसी से लिफ्ट मांग कर ही घर पहुंच पाता था.. आज भी हालात कुछ ऐसे ही लग रहे थे।
मैंने आधा घंटा इंतज़ार किया और फिर पैदल ही नजफगढ़ वाले रोड पर चल पडा़ ताकि कोई उस तरफ जा रहा हो तो उसके साथ ही निकल जाऊँ। गांव के लोग इस मामले में काफी दिलदार होते हैं कि अगर रात को कोई गांव का बंदा रास्ते पर अकेला जा रहा होता है तो खुद ही लिफ्ट दे देते हैं।
लेकिन आज तो चलते चलते काफी दूर आ गया था मैं… सड़क पर रात का सन्नाटा था और हल्की हल्की ठंड भी शुरु हो गई थी जिससे रोड पर लगी लाइटें धुंधलाई सी रोशनी दे रही थीं, मैं सहमा हुआ अकेला सड़क पर चला जा रहा था।
फिर मेरे कानों में भट भट करती एक बाइक की आवाज़ आने लगी.. उम्मीद हुई है कि शायद यह बाइक उसी तरफ जा रही हो!
बाइक पास आते देख मैंने मुड़कर देखा तो बुलेट बाइक पर दो पुलिस वाले गश्त लगा रहे थे।
मुझे अकेला चलते हुए देखकर बाइक मेरे पास लाकर रोक दी।
दोनों ही गबरु जवान थे लगभग 25-26 साल के..

मेरी नजर उनकी वर्दी पर पड़ी …दोनों ही कांस्टेबल थे..आगे वाले का नाम शायद जगबीर पढ़ा जा रहा था और पीछे वाले का प्रवीण..
भरे हुए शरीर पर कसी हुई खाकी वर्दी और पैरों में काले जूते.. दोनों की जांघें इतनी भारी थीं कि मेरे जैसी दो बन सकती थीं उनमें ..
दोनों एक दूसरे से सटे हुए बैठे थे और पिछले वाले का एक हाथ अगले वाले की जांघ पर रखा हुआ था.. क्या मोटी मोटी उंगलियाँ थीं..
और दूसरे हाथ में डंडा घूम रहा था..

देखने में दोनों ही अच्छे थे लेकिन पीछे वाला ज्यादा ही आकर्षित कर रहा था, मुझे उसकी खाकी शर्ट के ऊपर वाले खुले बटन में से बाहर आ रहे छाती के बाल ज्यादा आकर्षित कर रहे थे।
आगे वाले बंदे से सटा होने के कारण उसकी जिप का उभार नहीं देख पा रहा था जिसको देखने के लिए मेरी नजरें पूरी कोशिश कर रहीं थीं।

बाइक रोक कर आगे वाले ने पूछा- क्यों बे.. इतनी रात को अकेला क्यूं चल रहा है सड़क पर? कहीं किसी ने तेरी गर्दन पर चाकू रख दिया तो हमारी परेशानी बढ़ जाएगी.. बता कहाँ जा रहा है?
मैंने घबराते हुए कहा- सर दिचाऊं गांव जा रहा हूँ..
‘क्यूं?’
‘सर। घर है मेरा वहाँ पर…’
‘तो अभी कहाँ से आ रहा है?’
‘सर ऑफिस से…’

‘ठीक है.. हम भी वहीं जा रहे हैं, तुझे वहाँ तक छोड़ देंगे.. आज लद ले (बैठ ले) बाइक पे!’
पीछे वाला थोड़ा आगे खिसक गया और मैं बैठने लगा..
फिर पीछे वाला बोला- रुक एक मिनट, मैं 1 नं (पेशाब) करके आता हूँ..

यह कहकर वो पास ही रोड के किनारे टांगें चौड़ी करके खड़ा हो गया और अपने दोनों हाथों को आगे ले जाकर पैंट की जिप खोलकर खडा़ हो गया.. मोटी सी मूत की धार उसकी टांगों के बीच में से नीचे गिरती दिखाई दे रही थी जो नीचे गहरे झाग बना रही थी.. और मेरी नजरें उस पर से हट ही नहीं रही थी।
पेशाब करते करते एक बार उसने पीछे मुड़कर देखा तो मैं उसी को देख रहा था। उसने दोबारा मुंह फेर लिया और हमारी तरफ मुड़ते हुए जिप बंद करता हुआ आने लगा।
उसको जिप बंद करता देख मेरे मुंह में पानी आ गया और होंठ खुल गए.. मेरी यह हरकत भी उसने शायद सरसरी नज़र से देख ली थी लेकिन बिना कुछ रिएक्ट किए वो बाइक के पास आ गया और बोला- चल बैठ जा बाइक पर..

मैंने कहा- सर, आप बैठ जाइये पहले..
‘जैसा कह रहा हूँ वैसा कर, ज्यादा कानून मत चला समझा.. एक तो रात का वक्त है और बकचोदी मार रहा है..’

यह सुनकर मैं चुपचाप बीच में बैठ गया और वो अपनी भारी सी टांग को घुमाता हुआ मेरे पीछे आकर बैठ गया..
बाइक स्टार्ट हुई और हम गांव की सड़क पर चल पड़े।

रात काफी हो चुकी थी और गांव में तो एक कबूतर भी नहीं मिलता रात के वक्त सड़कों पर.. इसलिए दूर दूर तक कोई वाहन नहीं दिख रहा था.. बस रात का सन्नाटा और भट भट करती बुलेट बाइक सड़क पर चली जा रही थी।
सड़कों पर स्पीड ब्रेकर से गुजरते हुए जो झटके लग रहे थे उनके चलते पीछे वाले (प्रवीण) का भारी सा हाथ मेरी आधी जांघ को कवर कर चुका था.. मेरी कोमल जांघों पर उसकी सख्त उंगलियाँ मुझे अलग से महसूस हो रहीं थीं। वो मेरी पीठ से सट चुका था और उसकी छाती मेरी पीठ को गर्म कर रही थी जिसका अहसास मुझे वासना की ओर धेकल रहा था..
इधर आगे की तरफ मेरी चूचियाँ जगबीर की पीठ से रगड़ खा रही थीं.. मेरे फॉर्मल पैंट का जिप वाला भाग उसकी मोटी गांड से सट चुका था और मेरा हाथ उसकी गोल कसी हुई जांघ पर जाकर कांपने लगा था।

जगबीर बोला- क्या हुआ भाई, ठंड लग रही है क्या?
मैंने कहा- सर.. थोड़ी थोड़ी लग रही है..
तो पीछे से प्रवीण हंसने लगा और बोला- कोई बात नहीं, थोड़ी देर की ही बात है!

यह कहते हुए एक स्पीड ब्रेकर आया और बाइक पर हल्का सा झटका लगते ही प्रवीण हल्का सा उछला और उसकी जिप का भाग मेरी गांड से बिल्कुल सट गया। अब उसकी बालों वाली छाती मेरी पीठ से बिल्कुल सट गई थी, उसकी जिप का एरिया मेरे चूतड़ों में घुसने को हो रहा था और उसकी मोटी मोटी गर्म जांघें मेरी नर्म नर्म जांघों से सटी हुई मुझे ऊपर से नीचे तक गर्म कर रही थीं..
आगे की कहानी दूसरे भाग में.. बस थोड़ा सा इंतज़ार..

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