"दिल अपना प्रीत परायी"
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प्रिय दोस्तों..प्रस्तुत है एक और नयी कहानी , उम्मीद करता हूँ मेरी अन्य कहानियों की तरह ईस कहानी को भी आप सब की भरपूर सराहना मिलेगी..ईसी उम्मीद के साथ ।
अपडेट~ 1
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“तुझे ना देखू तो चैन मुझे आता नहीं , इक तेरे सिवा कोई और मुझे भाता नहीं कही मुझे प्यार हुआ तो नहीं कही मुझे प्यार हुआ तो नहीं .......... नाआअन ऩा ऩा ना नना ”
कमरे की खिड़की से बाहर होती बरसात को देखते हुए मैं ये गाना सुन रहा था धीमी आवाज में बजते इस गाने को सुनते हुए बाहर बरसात को देखते हुए पता नहीं मैं क्या सोच रहा था, शायद ये उस हवा का असर था जो हौले हौले से मेरे गालो को चूम कर जा रही थी या फिर उस अल्हड जवानी का नूर था जो अब दस्तक दे रही थी
पता नहीं कब मेरे होंठ उस गाने के अल्फाजो को गुनगुनाने लगे थे चेहरे पर एक मुस्कान थी जिसका कारण मैं नहीं जानता था... पर कुछ तो था इन फिज़ाओ में कोई तो बात थी इन हवाओ में जो सब कुछ अच्छा अच्छा सा लग रहा था पहले का तो पता नहीं पर अब दिल ये जरुर कहता था की कोई तो हो , मतलब..............
“क्या बात है आज तो साहब का मूड अलग अलग सा लग रहा है ये बरसात की बुँदे ये चेहरे पर हसी और रोमांटिक गाने आज तो बदले बदले लग रहे हो ”
“आप कब आई भाभी , ” मैंने पीछे मुड कर कहा
“क्या फरक पड़ता है देवर जी, अब आपको हमारा होश कहा आजकल भाभी आपको दिखाई कहाँ देती है वैसे भी ”
“क्या भाभी आपको तो बस मौका चाहिए टांग खीचने का ”
“अच्छा, बच्चू , और जो मेरा गला बैठ गया कितनी देर से चिल्ला रही हु मैं की स्पीकर की आवाज कम कर लो, कम कर लो..नीचे से मम्मी जी गुस्सा कर रही है ”
“मैं कम ही तो है भाभी ”
“मम्मी जी को पसंद नहीं घर में डेक बजाना पर आप मानते नहीं हो ”
“भाभी इसके सहारे ही तो थोडा टाइम पास हो जाता है ”
“मुझे नहीं पता मैं बस बोलने आई थी अच्छा, मौसम थोडा मस्ताना है तो ऐसे में एक एक कप चाय हो जाये ”
“मैं भी आपको ये ही कहने वाला था भाभी ”
“बनाती हु रसोई में आ जाना जल्दी ही ”
“आता हु ”
मैंने एक गहरी साँस ली और डेक को बंद किया और सीढ़ियाँ उतरते हुए निचे आने लगा तभी मम्मी से मुलाकात हो गयी
“ओये, कितनी बार तुझे कहा की बरसात में आँगन में पानी इकठ्ठा हो जाता है फिर नाली जाम हो जानी है तो साफ कर दिया कर पर तूने तो कसम खा ली है की मम्मी का कहा नहीं करना ”
“मैं , अभी कर दूंगा मम्मी जी
“ये तो तू कब से बोल रहा है कुछ दिन पहले जब बरसात आई थी तब भी ऐसे ही बोल रहा था नालायक कुछ जिम्मदार बन तू कब तक मुझसे बाते सुनता रहेगा ”
“मैं करता हु ”
मुझे बरसात में भीगना बहुत बुरा लगता था पर क्या करू आँगन में पानी इकठ्ठा हो जाता तो भी दिक्कत तो मैंने कपडे उतारे और कच्छे बनियान में ही लग गया पानी बाहर निकालने को, पर बरसात को भी पता नहीं क्या दुश्मनी थी अपने से वो भी तेज होने लगी
बदन में हल्ल्की हलकी सी कम्पन होने लगी बरसात की ठंडी बुँदे मेरे वजूद को भिगोने लगी बनियान मेरे जिस्म से चिपकने लगी तो एक कोफ़्त सी होने लगी मैं तेजी से झाड़ू को बुहारते हुए पानी को इधर उधर कर रहा था पर मरजानी बारिश भी आज अपने मूड में थी
तभी मैंने देखा की भाभी एक बाल्टी और डिब्बा लिए मेरी ही और आ रही है
“आप क्यों भीगते हो भाभी मैं कर तो रहा हु ”
“तुझे तो पता है मुझे बारिश में भीगना कितना अच्छा लगता है और इसी बहाने तेरी मदद भी हो जाएगी वर्ना शाम हो जानी पर तूने न ख़तम करना ये काम ”
वो बाल्टी में पानी इकट्ठा कर के फेकने लगी और मैं नाली को साफ़ करने लगा तभी मेरी नजर भाभी पर पड़ी और मेरी नजर रुक सी गयी , देखा तो मैंने उसे कितनी बार था पर इस पल मेरी नजरो ने वो देखा जो मैंने पहले कभी नहीं देखा था या यु कहू की कभी महसूस नहीं किया था
काली साड़ी में वो बारिश में भीगती, उसने जो साड़ी के पल्लू को अपनी कमर में लगाया हुआ था तो उसके पेट पर पड़ती वो बारिश की बुँदे जैसे चूम रही हो उसकी नरम खाल को, उसने जो धीरे से अपने चेहरे पर आ गयी जुल्फों की उन गीली लटो को अहिस्ता से कान के पीछे किया तो मैंने जाना की नजाकत होती क्या है
पता नहीं ये मेरी नजर का खोट था या कोई और दौर था पर कुछ भी था आज पहली बार महसूस हुआ था उसके हाथो में पड़ी वो चूडिया जो खनक पर बरसात के शोर के साथ अपना संगीत बाँट रही थी या फिर उसके होंठो पर वो लाल लिपिस्टक जिसे बुँदे अपने साथ हलके हलके से बहा रही थी
भीगी साड़ी जो उनके बदन से इस तरह चिपकी हुई थी पता नहीं क्यों मुझे जलन सी हुई वो खूबसूरत सा चेहरा, पतली कमर वो सलीका साड़ी बंधने का वो बड़ी बड़ी आँखे एक मस्तानापन सा था उनमे, तभी मर ध्यान टुटा मैंने नजर नीची कर ली और नाली साफ़ करने लगा पर दिल ये क्या सोचने लगा था ये मैं नहीं जानता था
करीब आधे घंटे तक हम पानी साफ करते रहे बरसात भी अब मंद हो चली थी भाभी मेरी और आ ही रही थी की तभी उनका शायद पैर फिसला और गिरने से बचने के लिए उसने अपना हाथ मेर कंधे पर रखा मैं एक दम से हडबडा गया पर किस तरह से थाम ही लिया
पर मेरा हाथ भाभी के कुलहो पर आ गया , वो अधलेटी सी मेरी बाहों में थी आँखे बंद हो गयी उनके आज पहली बार उनको मैंने यु छुआ था मेरी नजरे भाभी के ब्लाउज से दिखती उनकी चूची की उस घाटी पर जो लगी तो हट ना पाई
“अब छोड़ो भी , ”उन्होंने कहा तो मुझे होश आया
मैंने देखा मेरा हाथ भाभी के कुलहो पर था तो मुझे शर्म सी आई और मैंने अपना हाथ हटा लिया भाभी ने कुछ नहीं बोला बस अंदर चली गयी मैं बाल्टी उठाने को हुआ तो मैंने देखा मेरे कच्छे में तनाव था , ओह कही भाभी ने देखा तो नहीं
अगर देख लिया तो क्या सोचेगी वो कही मेरे बारे में कुछ गलत तो नहीं सोचेंगे मैं शर्म से पानी पानी हो गया पर पता नहीं क्यों अच्छा भी लगा पता नहीं ये उफनती हुई सांसो में जो एक खलबली सी मची थी या फिर ऊपर आसमान में उमड़ते हुए उन बादलो का जोश था जो अभी अभी ठन्डे हुए थे पर फिर से बरसने को मचल रहे थे
उस एक पल में भाभी का वो रूप किसी हीरोइन से कम ना लगा कुछ देर बाद काम समेट कर मैं अन्दर गया भीगा हुआ तो था ही बस अब नहा कर कपडे बदलने थे मैं बाथरूम में गया पर दरवाजा बंद था मैंने हलके से खटखटाया
“मैं हु अन्दर ” भाभी की आवाज आई
“भाभी ”
“मुझे थोडा टाइम लगेगा तुम बाहर नलके पे नहा लो ”
“मैं पर भाभी ”
“पर वर क्या अब चैन से नहाने भी ना दोगे क्या वैसे तो रोज क्या नलके पे नहीं नहाते हो ”
“भाभी वो दरअसल मेरा कच्छा बाथरूम में है ”
“तू भी ना , अच्छा रुक एक मिनट जरा ”
तभी सिटकनी खुलने की आवाज आई और फिर भाभी का हाथ बाहर आया कच्छा पकड़ते हुए जो उनकी गीली उंगलिया मेरी हथेली से छू गयी कसम से पुरे बदन में करंट सा दौड़ गया कंपकंपाहट लगने लगी
“अब छोड़ भी मेरा हाथ या ऐसे ही खड़ा रहेगा ”
“सॉरी भाभी ” मैंने जल्दी से हाथ हटाया और दौड़ पड़ा नलके की और...
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प्रिय दोस्तों..प्रस्तुत है एक और नयी कहानी , उम्मीद करता हूँ मेरी अन्य कहानियों की तरह ईस कहानी को भी आप सब की भरपूर सराहना मिलेगी..ईसी उम्मीद के साथ ।
अपडेट~ 1
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“तुझे ना देखू तो चैन मुझे आता नहीं , इक तेरे सिवा कोई और मुझे भाता नहीं कही मुझे प्यार हुआ तो नहीं कही मुझे प्यार हुआ तो नहीं .......... नाआअन ऩा ऩा ना नना ”
कमरे की खिड़की से बाहर होती बरसात को देखते हुए मैं ये गाना सुन रहा था धीमी आवाज में बजते इस गाने को सुनते हुए बाहर बरसात को देखते हुए पता नहीं मैं क्या सोच रहा था, शायद ये उस हवा का असर था जो हौले हौले से मेरे गालो को चूम कर जा रही थी या फिर उस अल्हड जवानी का नूर था जो अब दस्तक दे रही थी
पता नहीं कब मेरे होंठ उस गाने के अल्फाजो को गुनगुनाने लगे थे चेहरे पर एक मुस्कान थी जिसका कारण मैं नहीं जानता था... पर कुछ तो था इन फिज़ाओ में कोई तो बात थी इन हवाओ में जो सब कुछ अच्छा अच्छा सा लग रहा था पहले का तो पता नहीं पर अब दिल ये जरुर कहता था की कोई तो हो , मतलब..............
“क्या बात है आज तो साहब का मूड अलग अलग सा लग रहा है ये बरसात की बुँदे ये चेहरे पर हसी और रोमांटिक गाने आज तो बदले बदले लग रहे हो ”
“आप कब आई भाभी , ” मैंने पीछे मुड कर कहा
“क्या फरक पड़ता है देवर जी, अब आपको हमारा होश कहा आजकल भाभी आपको दिखाई कहाँ देती है वैसे भी ”
“क्या भाभी आपको तो बस मौका चाहिए टांग खीचने का ”
“अच्छा, बच्चू , और जो मेरा गला बैठ गया कितनी देर से चिल्ला रही हु मैं की स्पीकर की आवाज कम कर लो, कम कर लो..नीचे से मम्मी जी गुस्सा कर रही है ”
“मैं कम ही तो है भाभी ”
“मम्मी जी को पसंद नहीं घर में डेक बजाना पर आप मानते नहीं हो ”
“भाभी इसके सहारे ही तो थोडा टाइम पास हो जाता है ”
“मुझे नहीं पता मैं बस बोलने आई थी अच्छा, मौसम थोडा मस्ताना है तो ऐसे में एक एक कप चाय हो जाये ”
“मैं भी आपको ये ही कहने वाला था भाभी ”
“बनाती हु रसोई में आ जाना जल्दी ही ”
“आता हु ”
मैंने एक गहरी साँस ली और डेक को बंद किया और सीढ़ियाँ उतरते हुए निचे आने लगा तभी मम्मी से मुलाकात हो गयी
“ओये, कितनी बार तुझे कहा की बरसात में आँगन में पानी इकठ्ठा हो जाता है फिर नाली जाम हो जानी है तो साफ कर दिया कर पर तूने तो कसम खा ली है की मम्मी का कहा नहीं करना ”
“मैं , अभी कर दूंगा मम्मी जी
“ये तो तू कब से बोल रहा है कुछ दिन पहले जब बरसात आई थी तब भी ऐसे ही बोल रहा था नालायक कुछ जिम्मदार बन तू कब तक मुझसे बाते सुनता रहेगा ”
“मैं करता हु ”
मुझे बरसात में भीगना बहुत बुरा लगता था पर क्या करू आँगन में पानी इकठ्ठा हो जाता तो भी दिक्कत तो मैंने कपडे उतारे और कच्छे बनियान में ही लग गया पानी बाहर निकालने को, पर बरसात को भी पता नहीं क्या दुश्मनी थी अपने से वो भी तेज होने लगी
बदन में हल्ल्की हलकी सी कम्पन होने लगी बरसात की ठंडी बुँदे मेरे वजूद को भिगोने लगी बनियान मेरे जिस्म से चिपकने लगी तो एक कोफ़्त सी होने लगी मैं तेजी से झाड़ू को बुहारते हुए पानी को इधर उधर कर रहा था पर मरजानी बारिश भी आज अपने मूड में थी
तभी मैंने देखा की भाभी एक बाल्टी और डिब्बा लिए मेरी ही और आ रही है
“आप क्यों भीगते हो भाभी मैं कर तो रहा हु ”
“तुझे तो पता है मुझे बारिश में भीगना कितना अच्छा लगता है और इसी बहाने तेरी मदद भी हो जाएगी वर्ना शाम हो जानी पर तूने न ख़तम करना ये काम ”
वो बाल्टी में पानी इकट्ठा कर के फेकने लगी और मैं नाली को साफ़ करने लगा तभी मेरी नजर भाभी पर पड़ी और मेरी नजर रुक सी गयी , देखा तो मैंने उसे कितनी बार था पर इस पल मेरी नजरो ने वो देखा जो मैंने पहले कभी नहीं देखा था या यु कहू की कभी महसूस नहीं किया था
काली साड़ी में वो बारिश में भीगती, उसने जो साड़ी के पल्लू को अपनी कमर में लगाया हुआ था तो उसके पेट पर पड़ती वो बारिश की बुँदे जैसे चूम रही हो उसकी नरम खाल को, उसने जो धीरे से अपने चेहरे पर आ गयी जुल्फों की उन गीली लटो को अहिस्ता से कान के पीछे किया तो मैंने जाना की नजाकत होती क्या है
पता नहीं ये मेरी नजर का खोट था या कोई और दौर था पर कुछ भी था आज पहली बार महसूस हुआ था उसके हाथो में पड़ी वो चूडिया जो खनक पर बरसात के शोर के साथ अपना संगीत बाँट रही थी या फिर उसके होंठो पर वो लाल लिपिस्टक जिसे बुँदे अपने साथ हलके हलके से बहा रही थी
भीगी साड़ी जो उनके बदन से इस तरह चिपकी हुई थी पता नहीं क्यों मुझे जलन सी हुई वो खूबसूरत सा चेहरा, पतली कमर वो सलीका साड़ी बंधने का वो बड़ी बड़ी आँखे एक मस्तानापन सा था उनमे, तभी मर ध्यान टुटा मैंने नजर नीची कर ली और नाली साफ़ करने लगा पर दिल ये क्या सोचने लगा था ये मैं नहीं जानता था
करीब आधे घंटे तक हम पानी साफ करते रहे बरसात भी अब मंद हो चली थी भाभी मेरी और आ ही रही थी की तभी उनका शायद पैर फिसला और गिरने से बचने के लिए उसने अपना हाथ मेर कंधे पर रखा मैं एक दम से हडबडा गया पर किस तरह से थाम ही लिया
पर मेरा हाथ भाभी के कुलहो पर आ गया , वो अधलेटी सी मेरी बाहों में थी आँखे बंद हो गयी उनके आज पहली बार उनको मैंने यु छुआ था मेरी नजरे भाभी के ब्लाउज से दिखती उनकी चूची की उस घाटी पर जो लगी तो हट ना पाई
“अब छोड़ो भी , ”उन्होंने कहा तो मुझे होश आया
मैंने देखा मेरा हाथ भाभी के कुलहो पर था तो मुझे शर्म सी आई और मैंने अपना हाथ हटा लिया भाभी ने कुछ नहीं बोला बस अंदर चली गयी मैं बाल्टी उठाने को हुआ तो मैंने देखा मेरे कच्छे में तनाव था , ओह कही भाभी ने देखा तो नहीं
अगर देख लिया तो क्या सोचेगी वो कही मेरे बारे में कुछ गलत तो नहीं सोचेंगे मैं शर्म से पानी पानी हो गया पर पता नहीं क्यों अच्छा भी लगा पता नहीं ये उफनती हुई सांसो में जो एक खलबली सी मची थी या फिर ऊपर आसमान में उमड़ते हुए उन बादलो का जोश था जो अभी अभी ठन्डे हुए थे पर फिर से बरसने को मचल रहे थे
उस एक पल में भाभी का वो रूप किसी हीरोइन से कम ना लगा कुछ देर बाद काम समेट कर मैं अन्दर गया भीगा हुआ तो था ही बस अब नहा कर कपडे बदलने थे मैं बाथरूम में गया पर दरवाजा बंद था मैंने हलके से खटखटाया
“मैं हु अन्दर ” भाभी की आवाज आई
“भाभी ”
“मुझे थोडा टाइम लगेगा तुम बाहर नलके पे नहा लो ”
“मैं पर भाभी ”
“पर वर क्या अब चैन से नहाने भी ना दोगे क्या वैसे तो रोज क्या नलके पे नहीं नहाते हो ”
“भाभी वो दरअसल मेरा कच्छा बाथरूम में है ”
“तू भी ना , अच्छा रुक एक मिनट जरा ”
तभी सिटकनी खुलने की आवाज आई और फिर भाभी का हाथ बाहर आया कच्छा पकड़ते हुए जो उनकी गीली उंगलिया मेरी हथेली से छू गयी कसम से पुरे बदन में करंट सा दौड़ गया कंपकंपाहट लगने लगी
“अब छोड़ भी मेरा हाथ या ऐसे ही खड़ा रहेगा ”
“सॉरी भाभी ” मैंने जल्दी से हाथ हटाया और दौड़ पड़ा नलके की और...